बीकानेर का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास पढ़कर ही इस बात की जानकारी मिल सकती है कि मानव सभ्यता कितने लम्बे और विकट संघर्षों के बाद वर्तमान युग के सुखद काल में पहुंची है।
परम्परागत इतिहास ग्रन्थों में सामान्यतः राजकुलों की वंशावलियों, राजाओं के कालखण्डों, उनके द्वारा शासित प्रदेशों, राजा, राजकुमार, सेनापति एवं अन्य राजपुरुषों द्वारा किए गए युद्धों, उनके द्वारा अर्जित विजयों, उनके द्वारा बनवाए गए सार्वजनिक उपयोग के भवनों, देवालयों, जलाशयों आदि का कालक्रमानुसार विवरण लिखा जाता है। इस ऐतिहासिक विवरण को राजनैतिक इतिहास कहा जाता है।
आधुनिक काल में इतिहास का तात्पर्य राजाओं एवं राजकुमारों के सिंहासनारोहण, उनके द्वारा लड़े गए युद्धों एवं उनकी विजयों तथा उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह गया है। अब इतिहास में युग-युगीन सामाजिक एवं आर्थिक प्रवृत्तियों को भी प्रमुखता से स्थान दिया जाने लगा है।
किसी भी क्षेत्र के सामाजिक इतिहास में समाज में विभिन्न कालखण्डों में प्रचलित सामाजिक वर्गीकरण अर्थात् वर्ण अथवा जातीय व्यवस्थाओं, धार्मिक परिस्थितियों, रीति-रिवाजों, पर्वों, त्यौहारों, मेलों एवं सांस्कृतिक परम्पराओं आदि को प्रमुखता से स्थान दिया जाता है।
आर्थिक इतिहास में उस युग में प्रचलित आर्थिक गतिविधियों, भूमि प्रबंधन व्यवस्थाओं, भूराजस्व के आकलन की विधियों एवं दरों के साथ-साथ उस युग के वाणिज्य, व्यापार, कृषि, पशुपालन, उद्योग, व्यवसाय, मुद्रा, यातायात एवं दूरसंचार के साधन, वस्तुओं के मूल्य, सेवाओं का पारिश्रमिक एवं उनके भुगतान की विधियां आदि विविध आर्थिक कार्यकलापों का कालक्रमनासार विवरण लिखा जाता है।
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में प्रकाश में आए कर्नल टॉड के ग्रंथ ‘एनल्स एण्ड एण्टीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ से लेकर वर्तमान समय तक बीकानेर के राजनीतिक इतिहास पर अनेक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं जिनमें युगीन सांस्कृतिक परिवेश एवं आर्थिक प्रवृत्तियों की भी संक्षिप्त रूपरेखा दी गई है।
भारतवर्ष के पश्चिम में विगत हजारों सालों से थार का विशाल मरुस्थल मौजूद है जिसमें जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर तथा बीकानेर रियासतें पूर्णतः मरुस्थलीय रियासतें थीं।
जोधपुर रियासत में अरावली पर्वतमाला से निकलने वाली बरसाती नदियों का थोड़ा-बहुत जल जाता था जिसके कारण जोधपुर रियासत में मरुस्थली की विभीषिका का प्रभाव कम हो जाता था।
जैसलमेर एवं बीकानेर रियासतों में एक भी नित्यवाही अथवा बरसाती नदी नहीं होने से इन रियासतों में सैंकड़ों मील तक रेतीले धोरों के प्रसार के अतिरिक्ति और कुछ दिखाई नहीं देता था। इस कारण इन दोनों रियासतों की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियाँ बहुत विकट थीं।
प्रस्तुत ग्रंथ में बीकानेर क्षेत्र का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास प्रस्तुत किया गया है जिससे इस रियासत की कठिन परिस्थितियों का वास्तविक चित्र सामने आता है।
भौगोलिक एवं जलवायवीय कठिनाइयों के चलते बीकानेर के निवासियों का जीवन जितना अधिक कठिनाइयों से भरा था, उतना ही रोचक उनके इतिहास को जानना है।
ग्रंथ में प्रयुक्त सामग्री का मुख्य आधार राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर, अनूप संस्कृत पुस्तकालय बीकानेर एवं शार्दूल संग्रहालय, लालगढ़ पैलेस बीकानेर में संयोजित सामग्री को बनाया गया है। इस सामग्री में बीकानेर रियासत की पत्रावलियों, बहियों एवं अन्य अभिलेखों को प्रमुखता दी गई है। इस सामग्री के साथ-साथ मुगल कालीन रुक्कों, परवानों, बहियों तथा ब्रिटिश कार्यालयों के पत्राचार, रिपोर्ट्स, सेंसस, गजट्स, गजेटियर्स आदि से भी सहायता ली गई है।
इस ग्रंथ का लेखन इतिहास के शिक्षकों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं इतिहास में रुचि रखने वाले पाठकों के उपयोग हेतु किया गया है। आशा है, यह पुस्तक उनके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकेगी।।
–डॉ. मोहनलाल गुप्ता