जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीका ने ई.1485 में कच्ची ईंटों के एक दुर्ग की नींव रखी। इस दुर्ग को बीकाजी की टेकड़ी कहते हैं।
बाद में बीकाजी की टेकड़ी में लाल बलुआ पत्थर से भी निर्माण करवाए गए। इस पत्थर को दुलमेरा पत्थर भी कहते हैं। तीन साल बाद जब ई.1488 में बीकानेर नगर की नींव रखी गई तो बीकाजी की टेकड़ी को बीकानेर नगर की सीमा में ले लिया गया। अब यह दुर्ग बीकानेर के जूनागढ़ किले के दक्षिण-पश्चिम में लक्ष्मीनाथजी के मंदिर के निकट एक ऊंची चट्टान पर स्थित है।
बीकानेर राज्य की स्थापना जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र बीका द्वारा ईस्वी 1485 में की गई। यह एक रेगिस्तानी राज्य था। इस कारण इसे मुसलमानों के बहुत कम आक्रमण झेलने पड़े। जिस समय मराठे राजपूताना राज्यों को रौंद रहे थे, तब मराठों ने बीकानेर राज्य पर एक भी आक्रमण नहीं किया। फिर भी एक बार बीकानेर, किशनगढ़ एवं जोधपुर के राठौड़ राजाओं ने मराठों की एक सेना से सम्मुख युद्ध किया था जिसमें तीनों राठौड़ राजाओं की हार हुई थी।
अंग्रेजों के समय बीकानेर के महाराजा गंगासिंह एवं सादूलसिंह ने भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बीकाजी की टेकड़ी मरु दुर्ग तथा स्थल दुर्ग की श्रेणी में आता है। निर्माण के समय इस दुर्ग के चारों ओर विशाल मरुस्थल मौजूद था। दुर्ग का निर्माण कार्य नापोजी की देखरेख में हुआ। आजादी के बाद यह दुर्ग पूरी तरह भग्नावस्था में पहुंच गया किंतु बाद में इसकी मरम्मत करवाकर पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।
बीकाजी की टेकड़ी के निकट राव बीका, राव नरूजी, राव लूणकर्ण तथा राव जैतसिंह के स्मारक बने हुए हैं। इन स्मारकों में इन राजाओं के अंतिम संस्कार की तिथियों एवं उनके साथ सती हुई स्त्रियों की जानकारी दी गई है। बीकाजी का स्मारक मूलतः लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ था किंतु बाद में इसे संगमरमर से बनाया गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता