नागौर नगर के अस्तित्व में आने का काल निर्धरित नहीं किया जा सकता किंतु माना जाता है कि इसे नागों ने बसाया। नाग जाति का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। यह एक क्षत्रिय जाति थी। महाभारत के युद्ध के पश्चात् कुरूवंश की सत्ता कमजोर हो जाने से नाग जाति जांगल प्रदेश में अपना नवीन राज्य स्थापित करने में सफल रही।
उनके शासनकाल में जांगल प्रदेश की राजधानी अहिच्छत्रपुर अथवा नागपत्तन थी। राजस्थान में नागजाति के शासन करने का उल्लेख दूसरी शताब्दी ईस्वी से आठवीं शताब्दी ईस्वी तक मिलता है। इस क्षेत्र के नागों को चौहानों ने विस्थापित किया।
इस नगर से नागों के विस्थापित होने तथा चौहानों के सत्ता में आने के इतिहास के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है। बिजोलिया अभिलेख में कहा गया है कि चौहानों का पूर्वज सामन्त जांगलदेश का राजा था जिसकी राजधानी अहिछत्रपुर थी।
सामन्त का शासन काल ई.817 के लगभग निश्चित किया गया है। अहिच्छत्रपुर अथवा नागपत्तन से चलकर ही चौहानों ने सांभर तथा सपादलक्ष क्षेत्र पर अधिकार किया और वहाँ से आगे बढ़कर अजमेर, दिल्ली, रणथम्भौर, नाडोल, मण्डोर, पाली, जालोर, सिवाना, सिरोही तथा आबू, कोटा, बूंदी आदि स्थानों पर अधिकार जमाया।
ई.1192 तक अहिच्छत्रपुर अथवा नागपत्तन चौहानों के अधिकार में रहा किंतु मुहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) की पराजय के साथ ही दिल्ली, हांसी, अजमेर तथा नागौर आदि क्षेत्र चौहानों के हाथ से निकल गये। बाद में मुसलमानों ने चौहानों से रणथम्भौर, जालोर, नाडौल, मण्डोर, सिवाना तथा अन्य स्थान भी छीन लिये।
ई.1408 तक नागौर निरन्तर मुसलमानों के अधीन बना रहा। ई.1406 में राठौड़ चूण्डा मण्डोर का राव हुआ। उसने मुसलमानों से नागौर, डीडवाना, सांभर तथा अन्य क्षेत्र छीने किंतु नागौर शीघ्र ही पुनः मुसलमानों के हाथों में चला गया। ई.1427 में मण्डोर के राव रणमल ने पुनः नागौर छीना किंतु ई.1447 से पहले नागौर फिर से मुसलमानों के अधीन चला गया।
ई.1453 से 56 के बीच मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने दो बार नागौर को अपने अधीन किया। ई.1465 में जोधपुर के राठौड़ राव जोधा के पुत्र बीका ने नागौर को अपने अधीन किया किंतु उसका यह अधिकार अस्थाई ही था। नागौर मुसलमानों के अधीन बना रहा। नागौर के मुस्लिम शासक कभी स्वतंत्र रहकर, कभी गुजरात राज्य के अधीन रहकर तथा कभी दिल्ली सल्तनत के अधीन रहकर शासन करते थे।
ई.1532 में राव मालदेव जोधपुर का राजा हुआ। उसने नागौर, मेड़ता, फलौदी, बीकानेर, जैसलमेर तथा अजमेर आदि नगर अपने अधीन कर लिये। ई.1542 में शेरशाह सूरी ने नागौर, अजमेर तथा जोधपुर आदि अपने अधीन कर लिये। इस प्रकार नागौर सूरी साम्राज्य का अंग बन गया। उसने नियाजी खाँ को नागौर का फौजदार नियुक्त किया।
शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद नागौर मुगलों के अधीन आ गया। ई.1638 में शाहजहाँ ने जोधपुर नरेश गजसिंह के ज्येष्ठ पुत्र राठौड़ अमरसिंह को नागौर का शासक बनाया किंतु ई.1644 में अमरसिंह की हत्या हो गई और नागौर अमरसिंह के पुत्र रायसिंह को तथा रायसिंह के बाद रायसिंह के पुत्र इन्द्रसिंह को प्राप्त हुआ।
जोधपुर नरेश जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने नागौर सहित पूरा मारवाड़ खालसा घोषित कर दिया। फर्रूखसीयर ने ई.1715 में जोधपुर नरेश अजीतसिंह के पुत्र अभयसिंह को नागौर परगने का शासक बनाया।
ई.1723 में इन्द्रसिंह नागौर का परगना पुनः अपने नाम लिखवा लाया। ई.1724 में अपने पिता अजीतसिंह की हत्या करवाकर अभयसिंह जोधपुर का राजा बना। राजा बनते ही उसने इन्द्रसिंह को बेदखल कर दिया तथा अपने छोटे भाई बख्तसिंह को नागौर का शासक नियुक्त किया।
बख्तसिंह ने ही अभयसिंह के कहने पर महाराजा अजीतसिंह की हत्या की थी तथा इसी हत्या के पुरस्कार में बख्तसिंह को नागौर की जागीर प्राप्त हुई थी। अभयसिंह के मरने के बाद बख्तसिंह जोधपुर राज्य का स्वामी हुआ। तब से लेकर स्वतंत्रताप्राप्ति तक नागौर मारवाड़ राज्य के परगने के रूप में रहा।
राजाधिराज बख्तसिंह ने Nagaur नगर के चारों ओर सुदृढ़ प्राचीर बनवाई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नगर प्राचीर से बाहर भी अनेक मौहल्ले विकसित हो गये हैं। नगर की प्राचीर काफी ऊंची एवं चौड़ी थी। नगर में प्रवेश के लिए 6 मुख्य द्वार थे।
इनमें से तीन द्वार दक्षिण दिशा में तथा शेष प्रत्येक दिशा में एक-एक द्वार स्थित है। इन्हें नकास दरवाजा, माही दरवाजा, नया दरवाजा, दिल्ली दरवाजा, अजमेरी दरवाजा तथा कुम्हारी दरवाजा कहा जाता है।
प्रत्येक दरवाजे के बाहर एक तालाब है। नकास दरवाजा के पास झड़ा तालाब, माही दरवाजा के पास बख्तसागर, नया दरवाजा के पास प्रताप सागर, दिल्ली दरवाजा के पास शक्कर तालाब, अजमेरी दरवाजा के पास समस तालाब तथा कुम्हारी दरवाजा के पास लाल सागर नामक तालाब है। नगर के मध्य में गिनाणी तालाब है।
नगर परकोटे के भीतर नागौर का दुर्ग स्थित है जिसकी नींव चौथी शताब्दी ईस्वी में रखी गई मानी जाती है। किसी समय नागौर नगर में 151 मंदिर थे। इनमें से बंशीवाले का मंदिर तथा ब्रह्माणी माता का मंदिर मुस्लिम आक्रमणों से भी पुराने हैं।
मुसलमानों के नागौर में आने के बाद सभी प्राचीन देवालय नष्ट कर दिये गये किंतु बंशीवाला मंदिर तथा ब्रह्माणी माता का मंदिर किसी तरह बच गये। ये दोनों मंदिर पास-पास बने हुए हैं। इनका प्राचीन निर्माण अब बहुत ही कम बचा है तथा अधिकांश निर्माण बाद का है।
मुस्लिम आक्रमण में अन्य मंदिरों के समान ये दोनों मंदिर भी तोड़े गये होंगे किंतु अवसर पाकर इनका पुनर्निर्माण किया गया होगा। बंशीवाले मंदिर से ई.1470 का एक लेख प्राप्त हुआ है जिसमें कहा गया है कि इस तिथि को विट्ठलजी की प्रतिमा का निर्माण किया गया।
Nagaur जिले के खाटू कलां से मुसलमानों का इस जिले में सबसे पुराना अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह ई.1203 का है। अतः स्पष्ट है कि पृथ्वीराज चौहान की पराजय (ई.1191) के बाद चौहानों का समस्त क्षेत्र मुसलमानों के अधिकार में चला गया। ई.1476 में जिस समय मूर्ति का निर्माण हुआ, नागौर मुसलमानों के ही अधीन था। इस समय कोई नवीन मंदिर बनाया जाना संभव नहीं था।
राठौड़ राव चूण्डा अथवा बीका द्वारा कुछ समय के लिये नागौर पर अधिकार करने के दौरान ही बंशीवाले मंदिर तथा ब्रह्माणी माता के मंदिर का पुनर्निमाण किया गया होगा तथा बाद में ई.1476 में मूर्ति बनाकर स्थापित की गई होगी।
इस धारणा की पुष्टि इस बात से भी होती है कि मंदिर परिसर से मूर्ति निर्माण का लेख तो मिला है किंतु मंदिर के निर्माण की सूचना देने वाला लेख प्राप्त नहीं हुआ है। निर्माण का लेख मुस्लिम आक्रमण में नष्ट हो गया होगा। इस नगर से अनेक शिलालेख प्राप्त हुए हैं। जनरल कनिंघम लिखता है कि औरंगजेब ने जितने मंदिर Nagaur में तोड़े उनसे अधिक मस्जिदें बखतसिंह ने तोड़ीं। इस कारण नागौर की शहरपनाह में फारसी भाषा के कई शिलालेख उल्टे-पुल्टे चुने हुए हैं।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



