जोधपुर तथा शैफशोयुन – दो रेगिस्तानों में बसे जुड़वां शहर हैं। जोधपुर एशिया के थार रेगिस्तान के पूर्वी छोर पर स्थित है जबकि शैफशोयुन (Chefchaouen) अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के पश्चिमी छोर पर स्थित मोरक्को नाम देश में स्थित है।
जोधपुर तथा शैफशोयुन एक जैसी कई विशेषताएं एवं साम्यताएं लिये हुए हैं जिन्हें देखकर हैरानी होती है। सबसे पहली साम्यता यह है कि दोनों ही शहर विश्व के दो विख्यात मरुस्थलों के छोर पर स्थित हैं तथा दोनों ही शहर एक पहाड़ी की तलहटी में बसे हैं। तीसरी साम्यता यह है कि इन दोनों शहरों में कम चौड़ाई वाली गलियां स्थित हैं।
यह भी एक अविश्वसनीय दिखाई देने वाला साम्य है कि जोधपुर तथा शैफशोयुन शहरों की स्थापना भी लगभग एक ही समय में हुई। जोधपुर शहर की स्थापना ईस्वी 1459 में राव जोधा ने की तथा शैफशोयुन शहर की स्थापना ईस्वी 1471 में मोउले अली बेन मौउसा बेन रैचेड अल अलामी ने की। जोधपुर तथा शैफशोयुन दोनों ही नगरों के इतिहास में किलों का बड़ा महत्व है। जोधपुर शहर के इतिहास में मेहरानगढ़ दुर्ग का बहुत बड़ा योगदान है, शैफशोयुन शहर के इतिहास में मूरिश फोर्ट का बहुत बड़ा योगदान है।
जोधपुर तथा शैफशोयुन दोनों नगरों में सबसे बड़ी साम्यता यह है कि दोनों ही शहरों का भीतरी और पुराना हिस्सा नीले रंग से पुता हुआ है। अंतर यह है कि जोधपुर वासियों ने सूर्य के तेज प्रकाश के चौंधे एवं गर्मी से राहत पाने के लिये अपने घरों के बाहर नीला रंग पुतवाने की परम्परा आरम्भ की किंतु शैफशोयुन में यह परम्परा यहूदी धार्मिक मान्यताओं के कारण आरम्भ हुई। यहूदियों में धार्मिक मान्यता है कि यदि धागों को तेखेलेल (प्राकृतिक नील) से रंग कर उससे धार्मिक शॉल बुना जाये तो व्यक्ति को सदैव ईश्वर का स्मरण रहता है। इसी मान्यता के चलते शैफशोयुन में घरों की दीवारों को भी नीला रंगने की परम्परा आरम्भ हुई।
चूंकि जोधपुर तथा शैफशोयुन दोनों शहर रेगिस्तान के छोरों पर स्थित हैं इसलिए हो सकता है कि शैफशोयुन शहर के निवासियों ने भी जोधपुर के लोगों की तरह गर्मी से राहत पाने के लिये नीले रंग को अपनाया। जिस प्रकार नीले रंग वाले घरों के साथ-साथ जोधपुर में सफेद रंग से पुते हुए मकान भी दिखाई देते हैं, ठीक वैसे ही शैफशोयुन शहर में भी कुछ मकान बाहर से सफेद चूने अथवा सफेद रंग से पोते गये हैं।
जोधपुर तथा शैफशोयुन दोनों ही शहरों में परम्परागत रूप से बने मकानों की पहली मंजिल के गलियारों पर रेलिंग लगाने की स्टाइल से लेकर खिड़कियों में ग्रिल की डिजाइनें भी साम्य रखती हैं। यहां तक की सीढ़ियों और बरामदों में भी बहुत कुछ साम्यता है। घरों की सबसे ऊपरी मंजिल की छतों पर केलू लगाने का प्रचलन लम्बे समय तक जोधपुर में रहा है। कई घरों में आज भी यह देखने को मिल जायेगी। यह परम्परा शैफशोयुन में वर्तमान में भी प्रचलन में है।
जिस प्रकार जोधपुर में चटख रंगों के सूती साफे पहने जाते हैं, उसी प्रकार शैफशोयुन में आदिवासी लोग चटख रंगीन सूती धागों से बुने हुए टोप पहनते हैं। उनके टोप चटख रंगों के धागों से सजाये जाते हैं। शैफशोयुन के आदिवासी आज से 1400 साल पहले स्पेन से निष्कासित मूरिश लोगों के वंशज हैं। ये आदिवासी शहर के बहुसंख्यक लोगों से बिल्कुल अलग दिखाई देतेे हैं।
जिस प्रकार थार के रेगिस्तानी अंचल में चूल्हों में लकड़ी की आग पर रोटियां बनाने की परम्परा सम्पूर्ण भारत में रही है। उसी प्रकार आज भी इस शहर में लकड़ी की आंच पर रोटियां सेकी जाती हैं जिसके कारण इन रोटियों की बाहरी सतह कुरकुरी और स्वादिष्ट होती है। आज से कुछ साल पहले तक पतली देहयष्टि वाली बकरियां जोधपुर में घर-घर पाली जाती थीं ओर हजारों मील दूर स्थित मोरक्को के शहर में भी इसी प्रकार की देहयष्टि वाली बकरियां पाली जाती हैं।
जोधपुर तथा शैफशोयुन में एक और बड़ा साम्य है। जिस प्रकार जोधपुर पर्यटन के लिये यूरोप एवं अमरीकी देशों में विख्यात है, उसी प्रकार मोरक्को का यह शहर भी पर्यटन के लिये विश्व मानचित्र पर अच्छा नाम रखता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता