Monday, September 16, 2024
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जैसलमेर दुर्ग की स्थापना

थार मरुस्थल में स्थित लोद्रवा राज्य के भाटी शासक रावल जैसल ने बारहवीं सदी ईस्वी में जैसलमेर दुर्ग की स्थापना की थी किंतु स्थापना वर्ष के सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं।

लोद्रवा के शासक रावल दुसाज के दो पुत्र थे- ज्येष्ठ जैसलदेव एवं कनिष्ठ विजयराज।[1]  किसी कारण से रावल दुसाज ने अपने ज्येष्ठ पुत्र जैसलदेव को युवराज घोषित न करके कनिष्ठ पुत्र विजयराज को लोद्रवा का उत्तराधिकारी बनाया। [2] बड़े पुत्र जैसल को लोद्रवा राज्य में तन्नोट की जागीर दी गई।

रावल दुसाज के पश्चात् विजयराज लोद्रवा का शासक बना जो लांझा विजयराज के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। [3] लांझा विजयराज का विवाह गुजरात के चौलुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज की पुत्री से हुआ। इस रानी के पेट से भोजदेव नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। [4] रावल लांझा विजयराज की मृत्यु के पश्चात् भोजदेव युवावस्था में रावल बना। भोजदेव को युवा जानकर भोजदेव का ताऊ जैसल सम्पूर्ण लोद्रवा राज्य प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करने लगा।[5]

ई.1178 में गोर के शासक शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने गुजरात विजय हेतु अन्हिलवाड़ा पाटन की ओर प्रयाण किया। [6] जैसलदेव ने मुहम्मद गौरी को मार्ग में स्थित लोद्रवा पर भी आक्रमण करने की प्रेरणा प्रदान की।[7]  मुहम्मद गौरी ने लोद्रवा पर आक्रमण करके युवा रावल भोजदेव को मार डाला। उसके बाद जैसलदेव ई.1178 में लोद्रवा का शासक हुआ। जैसलदेव ने लोद्रवा को असुरक्षित जानकर जैसलमेर के अभेद्य दुर्ग तथा नगर का निर्माण किया। [8]

इस प्रकार जैसलमेर दुर्ग का निर्माण काल वि.सं.1234 (ई.1178) के पश्चात् होना चाहिए किन्तु सभी राजस्थानी ख्यातें तथा इतिहास की पुस्तकें जैसलमेर की स्थापना वि.सं.1212 (ई.1155) में हुई बतलाती है। [9]

ख्यातकारों एवं अन्य लेखकों के विवरण

मूथा नैणसी, कर्नल टॉड, जगदीशसिंह गहलोत, लखमीचन्द, अजीतसिंह, ऊमजी, आदि इतिहासकारों ने जैसलमेर की स्थापना का समय वि.सं.1212 अर्थात् ई.1155 सावण सुदी (नैणसी के अनुसार सावण बदि) 12 रविवार मूल नक्षत्र मानते हैं।[10]  इन इतिहासकारों के अनुसार जैसलदेव वि.स.1209 अर्थात् ई.1152 में गजनी के सुल्तान शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी की सैनिक सहायता से रावल भोजदेव को पराभूत करके लोद्रवा का शासक बना।[11]

जैसलदेव ने तीन वर्ष पश्चात् लोद्रवा दुर्ग को चौरस भूमि पर स्थित होने के कारण घातक समझ कर डूंगरी मीलासर नामक स्थान पर एक दुर्ग बनाना आरम्भ किया। [12] उस समय 120 वर्षीय (नैणसी के अनुसार 140 वर्षीय) वृद्ध एवं विद्वान् ब्राह्मण ईसा (ईश्वर) ने जैसलदेव को लोद्रवा से 12 किलोमीटर (4 कोस) पूर्व में गोरहरे पर्वत पर दुर्ग बनाने का स्थान बताया जहाँ पेयजल का ऐतिहासिक कूप (कोहिर) भी था। [13]

 जैसल ने सामरिक दृष्टि से इस स्थान को दुर्ग बनाने के लिए अधिक उपयुक्त समझा। [14] मेरनाथ बाबा की सलाह पर वि.सं. 1212/ई.1955 श्रावण सुदी 12 आदित्यवार मूलनक्षत्र में लंका के आकार के त्रिकुटाचल मेरु (तीन कोने वाले पर्वत) पर जैसलमेर दुर्ग की नींव रक्खी गई। [15] जैसल ने वि.सं.1219 में इस दुर्ग में अपनी राजधानी स्थापित की। राजधानी स्थापित करने के पांच वर्ष पश्चात् किंतु दुर्ग सम्पूर्ण होने के पूर्व ही विसं.1224 श्रावण सुदी पूर्णिमा को उसका निधन हो गया।[16]  इस प्रकार सभी राजस्थानी इतिहासकारों ने जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का काल वि.सं. 1212 बताया है। [17]

फारसी तवारीखें

फारसी तवारीखों में जैसलमेर की स्थापना के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है किंतु तवारीखों में वर्णित समसामयिक घटनाओं से जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का वास्तविक काल ज्ञात हो जाता है। मूथा नैणसी, कर्नल टॉड, जगदीशसिंह गहलोत, लखमीचन्द, अजीतसिंह, ऊमजी, आदि विद्धानों ने जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का समय परम्परागत प्रचलित अवधारणा के आधार पर वि.सं.1212 इसलिए स्वीकार कर लिया कि क्योंकि वे फारसी तवारीखों के इतिहास से अनभिज्ञ थे। फारसी तवारीखों के अनुसार गयासुद्दीन शाम ने ई.1173 में गजनी विजय की तथा अपने भाई शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को गजनी का शासक नियुक्त किया। शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने ई.1174 में गुर्जल, ई.1175 में मुल्तान और ई.1176 में भाटियों के दुर्ग उच्छ को विजय किया। [18]

गौरी ने सिंध के नगर थट्टा तथा अरोर पर आक्रमण किया। उस समय जैसलदेव ने सुल्तान से मित्रता करने का प्रयास किया।[19]  गौरी ने अन्हिलवाड़ा पाटन अभियान में जैसलदेव की सहायता अपने लिए लाभदायक समझी।[20]  रणनीतिक दृष्टि से भी गुजरात के चौलुक्यों के पराक्रमी दौहित्र रावल भोजदेव से लोद्रवा को पहले छीन लेना उचित भी था।  [21]

मुहम्मद गौरी अपने पूर्ववर्ती सुल्तान मुहम्मद गजनवी के सोमनाथ अभियान वाली भूल दोहराना नहीं चाहता था। [22] इसलिए उसने जैसलदेव के साथ लोद्रवा पर ई.1178/वि.सं.1234 में आक्रमण किया।[23]  रावल भोजदेव इस युद्ध में मारा गया और लोद्रवा का भाटी राज्य जैसलदेव को प्राप्त हुआ। [24]

ऐसी स्थिति में जैसलदेव जैसलमेर दुर्ग की स्थापना ई.1155/वि.सं.1212 में कैसे कर सकता था? अतः फारसी तवारीखों के आधार पर राजस्थानी ख्यातों की तिथि गलत सिद्ध होती है।

शिलालेख

बिजडासर तथा धानव तालाब गोवर्द्धनों से रावल लांझा विजयराज भाटी के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। [25] उसके प्रथम शिलालेख की तिथि भट्टिक संवत् 541/वि सं.1222 भाद्रपद शुक्ल 10 रविवार ई.1165 की है तथा अन्तिम शिलालेख पर अंकित तिथि भट्टिक संवत् 552/वि.सं.1132 श्रावण वदि 8 ई.1176 की है।[26] 

ई.1178/वि.सं.1234 में लोद्रवा पर गौरी के आक्रमण के समय वहाँ का शासक भोजदेव था। अतः रावल लांझा विजयराज की मृत्यु वि.सं.1234/ई.1178 के पूर्व तथा वि.सं.1232/ई.1176 के पश्चात् ही हुई। इस प्रकार रावल लांझा विजयराज के शिलालेख फारसी तवारीखों में उल्लिखित घटना की सत्यता का समर्थन करते हैं। इसलिए जैसलमेर की स्थापना का काल वि.सं. 1212/ई.1155 मानना उचित नहीं है। इसकी स्थापना का समय वि.सं.1234/ई.1178 के पश्चात ही होना चाहिए।

विजयराज एवं भोजदेव के नामों का विलोपन

अनुमान लगाया जाता है कि जैसलदेव तथा उसके उत्तराधिकारियों ने भाटी शासकों की नामावली में से अपने प्रतिद्वन्द्वी राजाओं लांझा विजयराज एवं भोजदेव के शासनकाल (वि.स.1212-1234) के 22 वर्ष को हटाने तथा जैसलदेव का महत्व बनाये रखने के लिए जैसलमेर की स्थापना का काल रावल दुसाज के शासनकाल के अन्त (वि.सं.1212) से मान लिया हो। इस प्रकार के अन्य उदाहरण भी इतिहास में मिलते है।

विजयराज लांझा एवं भोजदेव दोनों पराक्रमी शासक थे ओर दोनों ही राजगद्दी पर रहते हुए काल कवलित हुए थे [27] किंतु जैसलदेव के समर्थकों ने भाटी शासकों की नामावली में उनका नामोल्लेख नहीं किया। इस कारण जैसलमेर दुर्ग की स्थापना के काल के सम्बन्ध में यह विवाद उत्पन हुआ।

जैसलमेर राज्य का विभाजन

रावल दुसाज के पश्चात् जैसलदेव एवं विजयराज में उत्तराधिकार का संघर्ष हुआ होगा। परिणामस्वरुप लोद्रवा से लांझा विजयराज एवं तन्नोट से जैसलदेव ने शासन किया। सम्भव है कि रावल दुसाज के पश्चात् जैसलदेव ने अपने उत्तराधिकार-संघर्ष जैसलमेर से वि.सं.1212 में आरम्भ किया हो और 22 वर्ष पश्चात् समूचे राज्य पर आधिपत्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की हो। इसलिए उसने बाद में वहाँ दुर्ग बनाकर राजधानी स्थापित की। इस कारण दुर्ग की स्थापना का काल वि.सं.1212 मान लिया गया हो।

नैणसी का विवरण

ख्यातकार मूथा नैणसी ने अपनी ख्यात के लिए भाटियों के इतिहास का संग्रह गौकल रतनू (चारण) बिठ्ठलदास (बही भाट) तथा महता लक्खा (जैसलमेर राज्य का कर्मचारी) की सहायता से किया। [28]

इन लोगों ने परम्परागत प्रचलित धारणा के आधार पर जैसलमेर का स्थापना काल वि.सं.1212 लिखवा दिया। नैणसी ने इस सामग्री का संग्रह जैसलमेर की स्थापना के पांच सौ वर्ष के बाद किया था। उसकी ख्यात में संवत् सम्बन्धी अनेक त्रुटियां हैं। नैणसी के आधार पर राजस्थान के अन्य इतिहासकारों ने भी जैसलमेर की स्थापना का काल वि.सं.1212 लिखा होगा।

भटिट्क संवत्

जैसलमेर रियासत में 12वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से 14वीं शताब्दी के मध्य तक लगभग पौने दो सौ वर्ष की अवधि में जैसलमेर क्षेत्र में मिले समस्त शिलालेखों में भट्टिक संवत् प्रयुक्त हुआ।

देरावर दुर्ग के निर्माता रावल देवराज,[29]  उत्तरभिड किवाड़ भाटी का विरुद्ध धारणा करने वाले रावल लांझा, विजयराज [30] एवं जैसलमेर पर पुनः भाटी राज्य स्थापित करने वाले रावल छड़सिह [31] के अभिलेखों में भट्टिक संवत् का प्रयोग हुआ है। राज्य की ख्यातों में जैसलमेर की स्थापना का उल्लेख भी भट्टिक सवत् में हुआ होगा किन्तु वि.सं. एवं भट्टिक संवत् में 680 अथवा 681 वर्ष का अन्तर निश्चित नहीं है। [32]

 ऐसी स्थिति में भट्टिक संवत् की तिथि को वि.सं. में रुपान्तर करते समय वंशावली के आधार पर इतिहास लिखने वाले चारणों एवं बही-भाटों से भूल भी हो सकती है। भट्टिक संवत् में दशहरे के पश्चात् नया वर्ष प्रारंभ होता था किंतु राजस्थान के अन्य राजपूत राज्यों में नये वर्ष का प्रारम्भ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता था।

जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का काल

जैसलमेर के स्थापना काल को निश्चित करने के पूर्व जैसलदेव के शासन काल को निश्चित करना आवश्यक है। वह वि.स.1234 में भोजदेव के पश्चान् भाटी राज्य का शासक बना। इस तिथि को आधार मान कर जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का सम्भावित काल निकाला जा सकता है।

लखमीचन्द के अनुसार जैसलदेव ने राज्यारोहण के तीन वर्ष पश्चात् (वि.स.1234 ़ 3) वि.सं.1237 में जैसलमेर के दुर्ग की नींव रखी। [33] उसने दुर्ग की स्थापना के सात वर्ष पश्चात् [34] (वि.सं.1237 + 7) = वि.सं.1244 में इसे राजधानी के रूप में विकसित किया।[35]  अजीतसिंह ने जैसलदेव का शासनकाल (1209 से 1224) = पन्द्रह वर्ष लिखा है। उपरोक्त सामग्री के साथ यदि स्थानीय इतिहासकारों द्वारा उल्लिखित पन्द्रह वर्ष जैसलदेव का शासनकाल सही मान लें तो उसका राज्यकाल (वि.सं.1234 + 15) वि.सं.1234 से 1249 तक निश्चित होता है। नैणसी ने राजधानी स्थापित करने के पांच वर्ष पश्चात् जैसलदेव के काल कवलित होने का उल्लेख किया है। [36]

 इससिए जैसलमेर नगर को राजधानी बनाने का समय (वि.सं.1249-5) = वि.सं.1244 और दुर्ग का निर्माण का समय वि.सं.1244-3) = वि.सं.1241 निश्चित होगा। कर्नल टॉड एवं जगदीश सिंह गहलोत दोनों लखमीचन्द, अजीतसिंह तथा ऊमजी की भांति एक मत है कि जैसलदेव का शासन काल वि.सं.1212 से 1224 अर्थात 12 वर्ष का था। तदनुसार उसने (वि.सं.1234 + 12) = वि.सं.1246 तक राज्य किया। यदि नैणसी द्वारा उल्लिखित जैसलदेव के पांच वर्ष के शासन काल को इसमें सम्मिलित करके परीक्षण करें तो जैसलमेर की स्थापना की तिथि (वि.सं.1246-5) = वि.सं.1241 आएगी।

स्थानीय एवं राजस्थानी इतिहासकारों में जैसलमेर की स्थापना के काल में तीन वर्ष का अन्तर आता है। यदि हम जैसलमेर की स्थापना वर्ष वि.सं.1241-1244 का जैसलदेव के परवर्ती शासकों के शासन काल से विश्लेषण करें तो जैसलमेर की स्थापना के काल को निश्चित करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

जैसलदेव के पश्चात् उसका कनिष्ठ पुत्र शालिवाहन और शालिवाहन के पश्चात् उसका पुत्र बीझलदेव [37] तत्त्पश्चात् जैसलदेव का ज्येष्ठ पुत्र कल्हण वि.सं. 1247 लखमीचन्द) [38] 1256 (गहलोत)[39]  एवं 1257 (टॉड)[40]  में सिंहासन पर बैठा। नैणसी ने शालिवाहन का शासन काल 22 वर्ष [41] (काशी संस्करण में 22 वर्ष के साथ 2, 12 वर्ष भी लिखा है। बीझलदेव का शासन काल केवल 2 मास का था [42] जिसका इस सन्दर्भ में कोई महत्व नहीं है।

गहलोत, टॉड, लखमीचन्द, अजीत सिंह, ऊमजी तथा नैणसी रावल जैसलदेव का राज्यकाल क्रमशः 12, 15 तथा 5 वर्ष लिखते हैं। यदि कल्हण के राज्यारोहण की तिथि (वि.सं.1256-57) में से शालिवाहन और बीझल देव का 12 वर्ष का शासनकाल घटा दें तो जैसलदेव के शासन काल की अन्तिम सीमा वि.सं. (1256-1257-12) अर्थात् 1244 आ जावेगी।

यदि इसमें से जैसलदेव का शासन काल घटा देवें तो उसके राज्यारोहण का काल क्रमशः वि.सं.1233, 1230 एवं 1234 के लगभग आता है। उपलब्धऐतिहासिक सामग्री के आधार पर जैसलदेव के राज्यारम्भ का समय वि.सं. 1434 निश्चित किया जा चुका है। लखमीचन्द के अनुसार राज्यारोहण के सात वर्ष पश्चात् जैसलदेव ने जैसल दुर्ग में राजधानी स्थापित की। यदि इस तथ्य को सही मान लें तो जैसलमेर दुर्ग की स्थापना का काल वि.सं.1240-41 आता है तथा नैणसी के विवरण के आधार पर राजधानी स्थापित करने के पांच वर्ष पश्चात् (वि.सं.1240-41+ 5) अर्थात् वि.सं.1245-46 में उसकी मृत्यु का समय निश्चित होता है।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि जैसलमेर नगर की स्थापना वि.सं.1240-41 से 1244 (ई.1183-84 से 1187) के बीच हुई होगी। जैसलमेर दुर्ग की स्थापना किसी भी स्थिति में वि.सं.1212/ई.1155 में नहीं हो सकती।


[1] लखमीचन्द, तवारीख जैसलमेर, पृ. 27; अजीतसिंह, भाटीनामा, पृ. 17, 18; नैणसी, ख्यात, भाग 2 (काशी संस्करण), पृ. 278-79; जोधपुर संस्करण, पृ. 32; ऊमजी की ख्यात; दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 549.

[2] ऊमजी की ख्यात- विशेष प्रेम के कारण दूसरी रानी के पुत्र विजयराज को उत्तराधिकारी बनाया।

[3] लखमीचन्द, तवारीख जैसलमेर, पृ. 27; अजीतसिंह, भाटीनामा पृ. 17; नैणसी, भाग 2, (काशी संस्करण) पृ. 275.

[4]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 27; भाटीनामा, पृ. 17; नैणसी, भाग 2, पृ. 286 तथा दशरथ शर्मा; राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 549.

[5] तवारीख जैसलमेर, पृ. 27; भाटीनामा, पृ. 17; नैणसी, भाग 2, पृ. 278, (काशी संस्करण); बांकीदास की ख्यात पृ. 110.

[6]  याहिया, तारीख-ए-मुबारिकशाही, पृ. 6; नैणसी, भाग 2, पृ. 278; जोधपुर संस्करण पृ. 34; बांकीदास पृ. 110; तवारीख जैसलमेर पृ. 28; भाटीनामा पृ. 19; ऊमजी की ख्यात।

[7] तवारीख जैसलमेर, पृ. 28; भाटीनामा, पृ. 19; नैणसी, भाग 2, पृ. 278-79, जोधपुर संस्करण 34; ऊमजी की ख्यात।

[8] नैणसी, भाग 2, पृ. 280; तवारीख जैसलमेर, पृ. 29; भाटीनामा, पृ. 18; ऊमजी की ख्यात।

[9] ऊमजी बहीभाट की ख्यात –

संवत् बारहसौ बारोतरे, श्रवण मास सुमरे.

आदम थापे जोरवर, गढ़ जो जैसलमेर।। 9।।

जुवारजी बहीभाट की ख्यात – श्रवण मास द्वादस सवत, नींव है जैसलमेर किलारी; तवारीख जैसलमेर में वि.स.1212 श्रावण सुदी 12 लिखा है।

भाटीनामा –

लियो राज महाराज, बाद फिर कोट करायो।

वारस श्रावण सुद, भूलरवि मोरथ आयो।।

शुभ वेला दोनों मोरथ, बारह सौ बारह की साल, पृ. 19; नैणसी भाग 2 में वि.सं.1212 श्रावण बदी 12 आदित्यवार मूलनक्षत्र में जैसलमेर की स्थापना, जोधपुर संस्करण, पृ. 36; संवत् 1212 रा श्रावण बद 12 आदित्यवार मूल नक्षत्र रावल जैसल जैसलमेर री रांग मंडाई।

[10] लखमीचन्द, अजीतसिंह तथा ऊमजी और नैणसी, गहलोत और टॉड में अन्तर केवल सुदि और वदि का है।

[11] तवारीख जैसलमेर, पृ. 28; भाटीनामा, 18; बांकीदास पृ. 110; नैणसी, भाग 2, पृ. 278-279; टॉड, राजस्थान, भाग 2, पृ. 1204 में इसका नाम करीम खाँ लिखता है; ऊमजी की ख्यात।

[12] तवारीख जैसलमेर, पृ. 29; दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 280, ऊमजी की ख्यात।

[13] नैणसी, भाग 2, पृ. 279.

लूद्रवा हुन्ती उगमण, पंच कोसे मायं

ऊपाड़े जो मण्डज्यो, तिल रह अमर नाम।

तवारीख जैसलमेर, पृ. 29 –

जैसलनामा भूपति, यदुवंशी एक थाय

कोई कालरे आन्तरे, एथ रहसी आय।।9।।

भाटीनामा पृ. 19-

ईसाल ब्राह्मण रे कहे, करनो कोट कबूल।

गोरहरे पहाड़ पर, कूवो जैसलु मूल।।

आया था कोई काल में, अर्जुन कृष्ण अधरि।

कूवो सुदर्शन चक्र खोद कियो पताला नीर।।

ऊमजी की ख्यात –

लंका ज्यी अगजीत है, वणा भाट रे घेर।

रघु रहसी भाटिया, आदम जैसलमेर।। 9।।

श्री कृष्ण हम उचरै, सुण पाण्डुनन्द एक बात।

     कही काल के मायने, मम वंशी राज करे विख्यात।।

[14]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 29; भाटीनामा, पृ. 18; ऊमजी की ख्यात।

[15]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 29; ऊमजी की ख्यात।

[16] तवारीख जैसलमेर, पृ. 28; नैणसी, भाग 2, पृ. 273; जोधपुर संस्करण, पृ. 36; भाटीनामा पृ. 19.

[17]  रतनसिंह, जैसलमेर की स्थापना, राजस्थान हिस्ट्री प्रोसीडिंग्स।

[18] याहिया, तारीख-ए-मुबारिकशाही, पृ. 6.

[19] तवारीख जैसलमेर, पृ. 27; भाटीनामा, पृ. 17-18; नैणसी, भाग 2, पृ. 277; ऊमजी की ख्यात।

[20] याहिया, तारीख-ए-मुबारिकशाही पृ. 6; तवारीख जैसलमेर, पृ. 28; भाटीनामा, पृ. 17-18; ऊमजी की ख्यात।

[21]  दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 284.

[22]  ऊमजी की ख्यात।

[23]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 27-28; भाटीनामा पृ. 19; नैणसी, भाग 2, पृ. 279; ऊमजी की ख्यात।

[24]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 28; भाटीनामा, पृ. 18; ऊमजी की ख्यात; दशरण शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 287.

[25] दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज भाग 1 पृ. 281.

[26]  उपरोक्त।

[27] तवारीख जैसलमेर, पृ. 27-28; भाटीनामा, पृ. 17-18; नैणसी, भाग 2, पृ. 279; ऊमजी की ख्यात।

[28] दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 280; ऊमजी की ख्यात।

[29]  दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 280-281.

[30] तवारीख जैसलमेर पृ. 26-27; भाटीनामा पृ. 18; नैणसी, भाग 2, पृ. 275; दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 281.

[31] जगदीशसिंह गहलोत, राजपूताने का इतिहास, भाग 1, पृ. 665.

[32]  दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजेज, भाग 1, पृ. 280.

[33] तवारीख जैसलमेर, पृ. 28.

[34]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 29, भाटीनामा, पृ. 19.

[35] भाटीनामा, पृ. 19.

[36]  नैणसी, भाग 2, पृ. 279.

[37] तवारीख जैसलमेर, पृ. 29-30; भाटीनामा, पृ. 20-21, नैणसी, भाग 2, पृ. 280.

[38]  तवारीख जैसलमेर, पृ. 30.

[39]  गहलोत, राजपूताने का इतिहास भाग 1, पृ. 661.

[40] टॉड, राजस्थान, भाग 2, पृ. 105.

[41]  नैणसी, भाग 2, पृ. 280.

[42] नैणसी भाग 2, पृ. 282; भाटीनामा, पृ. 20-21; तवारीख जैसलमेर, पृ. 30; नैणसी, भाग 2, जोधपुर संस्करण पृ. 37; ऊमजी की ख्यात।

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