जैतारण दुर्ग
जैतारण दुर्ग का निर्माण जोधपुर के राठौड़ों ने करवाया। वर्तमान समय में जैतारण दुर्ग ब्यावर जिले में स्थित है। आजादी के बाद जब जोधपुर राज्य का राजस्थान में विलय किया गया था तब जैतारण को पाली जिले में रखा गया था किंतु वर्ष 2023 में जब ब्यावर जिले का निर्माण किया गया तब जैतारण को ब्यावर जिले में स्थानांतरित कर दिया गया।
जैतारण को राव मालदेव के राठौड़ सामंतों जैता तथा कूपा से भी जोड़ा जाता है जिन्होंने जोधपुर राज्य की तरफ से शेरशाह सूरी के विरुद्ध सुमेर-गिर्री के युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। लोगों में यह भी धारणा है कि जैतारण कस्बा जैती गुर्जरी के नाम से जाना गया।
रियासती काल में जैतारण जोधपुर राज्य का एक परगना था जिसमें नीमाज, रायपुर तथा रास मुख्य जागीरी ठिकाने आते थे। इनमें से रायपुर सबसे बड़ा ठिकाना था जिसमें साढ़े सैंतीस गांव थे। जैतारण नगर बसने से पहले इस क्षेत्र पर सिंधल राठौड़ शासन करते थे। यहाँ ई.1302 मेें सिंधल राठौड़ों द्वारा एक नगर बसाया गया था किन्तु बाद में वह नगर उजड़ गया। वर्तमान में जहाँ जैतारण बसा हुआ है वहाँ जेता नाम का एक गूजर अपनी ढाणी में रहता था जिसके नाम पर यह जयतारण कहलाया।
जोधपुर नरेश राव सूजा (ई.1491 से ई.1515) की मृत्यु के बाद इस पर सैयद महमूद तथा शाह कुलीखान ने अधिकार कर लिया। ई.1556 में जब अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने इस नगर को जीतकर जोधपुर नरेश (मोटा राजा उदयसिंह) को दे दिया। उसी काल का बना हुआ जैतारण दुर्ग तथा कुछ अन्य भवन अब भी यहाँ मौजूद हैं। अब इस किले की प्राचीर तथा बुर्ज ही शेष हैं। झण्डा पोल भी उसी समय की इमारत है जो अब नगर के बीच में आ गई है।
अगेवा दुर्ग
जैतारण से 6 किलोमीटर दूर आगेवा गांव में एक मध्यकालीन दुर्ग है। यह संभवतः राठौड़ राजपूतों द्वारा बनाया गया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता