राजपुरोहितों की जागरवाल उपजाति का गांव चम्पाखेड़ी नागौर जिले की डेगाना पंचायत समिति में स्थित है। विक्रम संवत 1591 की वैशाख शुक्ला तृतीया को चाम्पोजी पुरोहित ने खेजड़ी का वृक्ष रोपकर इस गांव की स्थापना की। इस अवसर पर मेड़ता का राव वीरमदेव भी उपस्थित था। लगभग पांच सौ साल पुराना गांव होने से इस गांव का मारवाड़ के इतिहास में विशेष महत्व है।
इस गांव में तथा आस-पास इतनी खेजड़ियां लगाई गईं कि यह पूरा गांव खेजड़ियों का बाग दिखाई देता है। वि.सं. 1956 के अकाल में ये खेजड़ियां लोगों को जीवित रखने में सहायक सिद्ध हुईं। ग्रामीणों ने खेजड़ियों की सूखी छाल उतारकर उसे कूट-पीस कर रोटियां बनाई।
औरंगजेब के शासनकाल में चम्पाखेड़ी गांव के जगन्नाथ और सूरदास ने गांवों की जब्ती के विरोध में औरंगजेब के सामने सत्याग्रह किया तथा औरंगजेब द्वारा दुर्व्यवहार किये जाने पर जगन्नाथ ने पेट में कटार भौंककर प्राण त्याग दिये। बादशाह को चम्पाखेड़ी, भूरियासण, चावण्डियां, पांचडोलियां, पुरोहितासणी एवं टुंकलिया पुनः बहाल करने पड़े। गांव के तालाब की पाल पर जगन्नाथ की छतरी आज भी खड़ी है।
गांव में सभी व्यक्ति शिक्षित हैं। गांव में न तो शराब पी जा सकती हे और न ही कोई व्यक्ति शराब पीकर आ सकता है। गांव की सीमा में शिकार करना वर्जित है। इस गांव की आबादी में तीन व्यक्ति प्रतिवर्ष की ही वृद्धि दर्ज की जा रही है, जो विस्मयकारी है।
ई.1891 में इस गांव की जनसंख्या 452 थी, जो 100 वर्ष बाद 735 ही हुई। इस प्रकार मात्र 3 व्यक्ति प्रतिवर्ष बढ़े। यहाँ सोने एवं चांदी के तारों से कसी हुई जूतियां बड़े पैमाने पर बनती है। पर्यटकों को ऊंटों एवं घोड़ों की सवारी भी करवाई जाती है।
कालबेलियों की बीन और जोगियों की पूंगी से उठी सुमधुर संगीत लहरियां पर्यटकों को अपने सम्मोहन में बांध लेती है। इस गांव के निवासियों ने देश-विदेश में अनेक बड़े व्यवसाय स्थापित किये हैं।



