खाचरियावास दुर्ग ‘भूमि दुर्ग’ श्रेणी का है जो खारड़े की कठोर धरती पर बना हुआ है। समतल भूमि पर बने हुए दुर्ग को स्थल दुर्ग भी कहते हैं। यह दुर्ग रामगढ़ जागीर में आता था जिसका पुराना नाम नलवा था।
वर्तमान समय में खाचरियावास दुर्ग सीकर जिले की दांता-रामगढ़ तहसील में स्थित है। किसी समय यह शेखावाटी क्षेत्र का एक प्रमुख ठिकाना था।
खाचरियावास दुर्ग के चारों ओर लगभग 18 फुट चौड़ी तथा 20 फुट गहरी विशाल परिखा खोदी गई है। दुर्ग के चारों ओर प्राचीर बनी हुई है जिसमें बंदूकों और तोपों की मारें बनी हुई हैं। दुर्ग की नींव दूल्हे सिंह ने रखी थी। उसके वंशज ठाकुर चतरपालसिंह ने दुर्ग में भव्य दीवानखाना तथा महल बनवाये।
ठाकुर विजयसिंह ने दुर्ग के चारों ओर बुर्जों का तथा दुर्ग के भीतर महलों का निर्माण करवाया। उसने चारों कोनों पर चार बुर्ज बनवाईं जहाँ से तोपें चलाई जाती थीं। विजयसिंह, उस समय प्रचलित झाड़शाही के सिक्के को अपनी हथेली से रगड़कर उसके अक्षर मिटा देता था तथा अंग्रेजों के विक्टोरिया सिक्के को मोड़कर दोहरा कर देता था।
खाचरियावास दुर्ग के विजयपोल के दरवाजे को उसने अकेले ही खड़ा कर दिया था। यह दरवाजा उसी के नाम पर विजयपोल कहलाता है। उसका वंशज कल्याणसिंह जयपुर रियासत के जागीरदारों में से पहला जागीरदार था जिसने सबसे पहले स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह ने कल्याणसिंह को जयपुर राज्य की चीफ कोर्ट का जज नियुक्त किया था।
दुर्ग के प्रमुख भवनों में कंवरपदा का महल, मोतीमहल, सूरजमहल, सुरेन्द्र भवन आदि बने हुए हैं। रानियों के लिये दो पृथक रनिवास हैं। बाहरवाली बुर्ज में अनाज पीसने की विशाल चक्की लगवाई गई थी जो अब यहाँ नहीं है। किले में दादू पंथ का स्थान तथा रामकुई भी दर्शनीय है।
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत खाचरियावास गांव के ही रहने वाले थे जो बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी रहे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता