Thursday, November 21, 2024
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खण्डेला दुर्ग

खण्डेला दुर्ग सीकर जिले में स्थित है। खण्डेला दुर्ग कब एवं किसने बनवाया, इसका पूर्ण इतिहास ज्ञात नहीं होता। खण्डेला की स्थापना लगभग 1000 साल पहले शिशुपाल वंशी राजाओं ने की थी। संभवतः उन्हीं के शासन काल में इस स्थान पर कोई दुर्ग बना होगा तथा उसी दुर्ग का समय-समय पर जीर्णोद्धार एवं पुनर्निर्माण होता रहा होगा।

मुगल बादशाह अकबर के समय खण्डेला पर निर्वाण राजपूत शासन करते थे। वे लम्बे समय से यहाँ शासन करते आ रहे थे। ई.1218 में रचित बीसलदेव रासो में खण्डेला के निर्वाणों का उल्लेख हुआ है।

सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में निर्वाण राजा पीथा की राजकुमारी किशनावती का विवाह अमरसर के राजा शेखा के प्रपौत्र राजकुमार रायसल शेखावत से हुआ। रायसल ने अकबर की शह पाकर अपने श्वसुर का राज्य छीन लिया और खण्डेला का राजा बन गया। उसने ई.1538 से 1615 तक खण्डेला पर शासन किया। रायसल के वंशजों ने शेखावाटी क्षेत्र का विकास किया तथा वहाँ कई दुर्ग, हवेलियां एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। संभवतः उस समय खण्डेला दुर्ग में भी बड़े निर्माण कार्य हुए होंगे।

राजा रायसल शेखावत के सात पुत्र हुए जिनमें से सबसे छोटे पुत्र को उसने रेवासा तथा खण्डेला दुर्ग दिये। रायसल के बाद उसका तीसरे नम्बर का तथा सबसे छोटा पुत्र गिरधर खण्डेला दुर्ग का स्वामी हुआ। ई.1623 में किसी सैयद ने गिरधर की हत्या कर दी। इस कारण गिरधर का पुत्र द्वारकादास खण्डेला दुर्ग का स्वामी हुआ। द्वारकादास के बाद उसका पुत्र बरसिंह खण्डेला की गद्दी पर बैठा। बरसिंह दक्षिण के मोर्चे पर मुगलों की तरफ से लड़ता हुआ काम आया। तब बरसिंह का पुत्र बहादुरसिंह खण्डेला दुर्ग का अधिपति हुआ।

बरसिंह के बाद बहादुरसिंह भी दक्षिण के मोर्चे पर पहुंचा। वहाँ किसी मुगल सेनापति ने बहादुरसिंह का अपमान कर दिया। बहादुरसिंह नाराज होकर खण्डेला लौट आया। औरंगजेब ने अपनी सेना से खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कराया। बादुरसिंह दुर्ग छोड़कर भाग गया। मुगल सेना ने दुर्ग के भीतर स्थित समस्त मंदिरों को तोड़कर मूर्तियों को मस्जिदों के मार्ग में डाल दिया। जब मुगल सेना चली गई तब बहादुरसिंह ने पुनः दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

बहादुरसिंह के तीन पुत्र थे जिनमें से केसरीसिंह सबसे बड़ा था। उसने अपना आधा राज्य अपने मंझले भाई फतेहसिंह को दे दिया तथा खण्डाला छोड़कर खाटू में जाकर रहने लगा। कुछ दिन बाद केसरीसिंह ने फतेहसिंह की हत्या करवाई तथा पुनः खण्डाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उस समय दिल्ली के तख्त पर मुगल बादशाह फर्रूखसीयर का शासन था। फर्रूखसीयर ने खण्डेला के विरुद्ध सेना भेजी। इस पर शेखावाटी के समस्त सरदार एकत्रित होकर मुगलों के विरुद्ध लड़ने के लिये आये। उन्होंने देवली गांव के निकट मुगल सेना को रोका।

शेखावतों की इकट्ठी शक्ति के समक्ष मुगलों के पांव उखड़ गये किंतु इसी बीच मनोहरपुर के ठाकुर को लगा कि जीत का श्रेय खण्डेला के ठाकुर केसरीसिंह को मिलने वाला है, इसलिये वह अपनी सेना लेकर युद्ध से अलग हो गया। इसी बीच केसरीसिंह के विश्वासपात्र कासली ठाकुर का वध हो गया। दांता का लाडखानी ठाकुर युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गया। केसरीसिंह ने अपने छोटे भाई उदयसिंह से प्रार्थना की कि वह शेखावतों के मान की रक्षा करे। उदयसिंह ने केसरीसिंह का भरपूर साथ दिया किंतु मुगलों ने युद्ध क्षेत्र में ही केसरीसिंह को मार डाला और उदयसिंह को कैद कर लिया।

जब मुगल सेना उदयसिंह को लेकर अजमेर चली गई तो उदयपुर और कासली के ठाकुरों ने मिलकर खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस पर उदयसिंह ने अजमेर के सूबेदार से कहा कि यदि आप मुझे छोड़ दें तो मैं दुर्ग जीतकर आपको दे दूंगा। सूबेदार ने उदयसिंह को छोड़ दिया। उदयसिंह ने खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण किया तथा दुर्ग को जीतकर मुगलों को समर्पित कर दिया। मुगल सूबेदार ने उदयसिंह से कुछ राशि लेकर खण्डेला का दुर्ग उदयसिंह को ही दे दिया।

उदयसिंह ने खण्डेला का दुर्ग हाथ में आते ही समस्त बुराइयों की जड़ मनोहरपुर के ठाकुर पर आक्रमण किया। मनोहरपुर का ठाकुर भागकर जयपुर नरेश की सेवा में चला गया। जयपुर नरेश ने उसे सुरक्षा तो दी किंतु मनोहरपुर को अपना करद (कर देने वाला) राज्य बना लिया। यहीं से शेखावाटी क्षेत्र में जयपुर नरेश का हस्तक्षेप आरम्भ हुआ और धीरे-धीरे करके शेखावाटी के समस्त ठिकाणे, जयपुर राज्य के अधीन करद राज्य बन गये।

जयपुर नरेश जयसिंह ने खण्डेला ठिकाणे के दो टुकड़े कर दिये। 60 प्रतिशत हिस्सा उदयसिंह के पुत्र सवाईसिंह के पास तथा 40 प्रतिशत हिस्सा स्वर्गीय फतहसिंह के पुत्र दीपसिंह के पास रहा। खण्डेला के ठाकुर को शेखावतों का सरदार मान लिया गया। जब उदयसिंह का पुत्र सवाईसिंह किसी युद्ध अभियान पर जयपुर नरेश के साथ गया तो उदयसिंह ने खण्डेला दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। सवाईसिंह युद्ध का मैदान छोड़कर खण्डेला आया तथा उसने अपने पिता को वहाँ से मार भगाया। इस पर उदयसिंह नारू चला गया। भारत को आजादी मिलने तक इसी सवाईसिंह के वंशज खण्डेला पर शासन करते रहे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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