उदयपुर में पीछोला तालाब की बड़ी पाल के दक्षिणी छोर के निकट के माछला मगरा (मत्स्य शैल) नाम पहाड़ पर एकलिंग गढ़ नामक दुर्ग स्थित है। इसके निर्माण आदि के सम्बन्ध में अधिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं।
एकलिंग गढ़ उदयपुर नगर की रक्षा के काम आता था। इसमें सैनिक नियुक्त रहते थे। जब मराठा सरदार माधोजी सिंधिया ने उदयपुर पर आक्रमण किया तब महारणा अरिसिंह (द्वितीय) (ई.1761-73) ने एकलिंग गढ़ पर दुश्मनभंजन नामक तोप चढ़वाई। लगभग छः माह तक इस गढ़ की तोपों से मराठों पर गोले बरसाये जाते रहे जिसके कारण मराठे उदयपुर शहर पर अधिकार नहीं कर सके।
एकलिंग मंदिर गढ़
उदयपुर से 13 मील उत्तर में स्थित भगवान एकलिंग का मंदिर भी एक तरह का दुर्ग ही है। इसके चारों ओर ऊंचा परकोटा बना हुआ है जिसे महाराणा मोकल ने बनवाया था।
इस दुर्ग में किसी प्रकार की सेना अथवा तोपें आदि नियुक्त नहीं की जाती थीं किंतु एकलिंग ही मेवाड़ के वास्तविक शासक माने जाते थे, इसलिये उनके इस मंदिर को दुर्ग की तरह बनाया गया। इस मंदिर के परिसर में महाराणाओं के कई महत्वपूर्ण शिलालेख लगे हुए हैं।
महाराणा भीमसिंह के समय ई.1809 में पिण्डारी अमीर खाँ ने इस गढ़ को घेर लिया तथा महाराणा से ग्यारह लाख रुपये फिरौती की मांग की और फिरौती न मिलने पर इसे नष्ट कर देने की धमकी दी। महाराणा रुपये तो नहीं दे सका किंतु अमीरखां मंदिर को तोड़े बिना ही वहाँ से चला गया। उसका प्रतिनिधि जमशेद खाँ लम्बे समय तक मेवाड़ में लूट-खसोट मचाता रहा जिसे जमशेदगर्दी कहते हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता