लोहियाणा दुर्ग इस समय अस्तित्व में नहीं है। किसी समय यह मारवाड़ एवं मेवाड़ की सीमाओं पर स्थित एक महत्वपूर्ण दुर्ग था किंतु अब यह काल के गाल में समा गया है।
राजस्थान के इतिहास में ऐसे सैंकड़ों किलों के नाम मिलते हैं जो किसी समय राजपूत राजाओं एवं जागीरों के मुख्य केन्द्र हुआ करते थे किंतु अब या तो वे केवल खण्डहरों के रूप में बचे हैं या फिर उनके नाम प्राचीन ख्यातों में ही मिलते हैं। बहुत से छोटे दुर्ग सामंतों की राजधानी के रूप में काम करते थे तथा वही दुर्ग किसी बड़े राजा के राज्य की रक्षापंक्ति के रूप में भी काम करते थे। इन किलों में आपत्ति काल में स्थानीय जनता को सुरक्षा भी प्राप्त होती थी।
जालोर जिले में जसवंतपुरा के निकट अरावली पर्वतमाला में यह दुर्ग बना हुआ था। महाराणा प्रताप ने भी कुछ समय के लिये इस दुर्ग में निवास किया तथा लोहियाणा के ठाकुर से सैनिक सहायता प्राप्त की।
उन्नीसवीं शताब्दी आते-आते लोहियाणा ठिकाने की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई तथा लोहियाणा का राणा सालजी, मारवाड़ राज्य में डाके डालने लगा। इस समय यह दुर्ग मारवाड़ राज्य के अधीन था तथा मारवाड़ राज्य अंग्रेजों द्वारा भारत में स्थापित अंग्रेजी सरकार के अधीन था।
अंग्रेजों से हुई संधि के अनुसार मारवाड़ के राजा का कर्तव्य था कि वह अपने राजय में शांति स्थापित करे। इसलिये ई.1883 में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंतसिंह (द्वितीय) ने आक्रमण करके दुर्ग को नष्ट कर दिया तथा वहाँ हल चलवा दिया।
अब इस दुर्ग का उल्लेख केवल प्राचीन ख्यातों में ही मिलता है।