Saturday, November 2, 2024
spot_img

राजस्थान के पठार

राजस्थान में विस्तृत अरावली पर्वत तथा मध्यप्रदेश में विस्तृत विंध्याचल पर्वत के बीच छोटे-बड़े पठारी भू-भाग स्थित हैं जिन्हें राजस्थान के पठार कहते हैं।

गुरुशिखर से नीचे उड़िया पठार है जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 1360 मीटर है। यह राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार है।

दूसरे नम्बर पर आबू पठार आता है जिस पर आबू नगर बसा हुआ है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 1200 मीटर है। कुंभलगढ़ और गोगुंदा के बीच भोराठ का पठार है जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 1225 मीटर है।

मालवा के पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 360-460 मीटर है यह दक्षिण पूर्व में चित्तौड़गढ़ जिले तक विस्तृत है।

चित्तौड़गढ़ जिले में भैंसरोड़गढ़ से भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया तक ऊपरमाल का पठार है। उदयपुर जिले की जयसमंद झील से प्रतापगढ़ तक लासड़िया का पठार है।

चित्तौड़गढ़ जिले में मेसा का पठार है जिस पर चित्तौड़ का दुर्ग स्थित है। माही बेसिन में प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के बीच छप्पन नदी नालों का प्रवाह क्षेत्र छप्पन का मैदान कहलाता है।

हाड़ौती पठार

हाड़ौती पठार को दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के पठार भी कहते हैं। यह पठार मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में चंबल नदी के सहारे पूर्वी भाग में विस्तृत है और राजस्थान का 9.6 प्रतिशत भू-भाग घेरे हुए है। हाड़ौती पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 300-460 मीटर है।

यह उत्तर-पश्चिम में अरावली के महान सीमा-भ्रंश द्वारा सीमांकित है और राजस्थान की सीमा के पार बुंदेल-खण्ड के पूर्ण विकसित कगारों तक फैला हुआ है।

हाड़ौती पठार के अंतर्गत ऊपरमाल का पठार और मेवाड़ का पठार जिसमें झालावाड़ से बूंदी, बारां और कोटा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और बांसवाड़ा के कुछ भाग सम्मिलित हैं। यह पठारीय भाग आगे चलकर मालवा के पठार में मिल जाता है।

इस क्षेत्र का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी सहायक नदियों जैसे काली सिन्ध, परवान और पार्वती के द्वारा सिंचित है। अतः कृषि के संदर्भ में भी यह राजस्थान का महत्वपूर्ण भाग है। इस भू-भाग का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः है।

हाड़ौती पठार दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(अ) विंध्यन कागार भूमि

यह कागार भूमि क्षेत्र बड़े-बड़े बलुआ पत्थरों से निर्मित है जो स्लेटी पत्थरों के द्वारा पृथक दिखाई देता है। कागारों का मुख बनास और चंबल के बीच दक्षिण, दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर है तथा बुंदेलखण्ड में पूर्व की तरफ फैले हैं।

उत्तरपश्चिम में चंबल के बायें किनारे पर तीव्र ढाल वाले कागार दिखाई देते हैं। तत्पश्चात एक कागार खण्ड स्थित है जो धौलपुर और करौली के क्षेत्रों पर फैला है। इस क्षेत्र का कागार भूमियों की ऊँचाई 350 मीटर से 550 के बीच है।

(ब) दक्कन लावा पठार

मध्यप्रदेश के विन्ध्यन पठार के पश्चिमी भाग तीन सकेंद्रीय कागारों के रूप में विस्तृत हैं। यह तीन संकेंद्रीय कागार तीन प्रमुख बलुआ पत्थरों की परिव्यक्त शिलाओं के बीच-बीच में स्लेटी पत्थर भी मिलते हैं।

दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की यह भौतिक इकाई ऊपरमाल (उच्च पठार या पथरीला) के नाम से जानी जाती है। यह एक विस्तृत और पथरीली भूमि है जिसमें कोटा-बूंदी पठारी भाग भी सम्मिलित हैं।

इस भू-भाग में नदी घाटियों में कहींकहीं काली मिट्टी के क्षेत्र मिलते हैं। अपरदन पुरानी भूमि सतहों को अनावृत करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पुरानी स्थलाकृति का धरातल काफी हद तक वर्तमान स्थलाकृति के अनुरूप था।

चंबल और इसकी सहायक नदियों यथा, कालीसिन्ध और पार्वती ने कोटा में एक त्रिकोणीय कांपीय बेसिन का निर्माण किया है जिसकी औसत ऊँचाई 210 मीटर से 275 मीटर के बीच है।

बूंदी व मुकन्दवाड़ा की पहाड़ियां इसी पठारीय भाग में हैं। नदियों ने इस पठारीय भू-भाग को काट-काट कर काफी विच्छेदित कर दिया है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source