जयपुर आर्काइव्ज में महाराजा सवाई जयसिंह के नाम बुंदेला राजाओं के पत्र संग्रहीत हैं। इन पत्रों से प्रकट होता है कि पन्ना, ओरछा आदि के बुंदेला राजाओं ने जयपुर के राजा सवाई जयसिंह को अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में मराठों की तरफ किए गए अभियान में अफगानों के विरुद्ध सक्रिय सहयोग दिया था।
महाराजा सवाई जयसिंह ई.1713 से 1717 तक मुगलों की तरफ से मालवा का सूबेदार रहा था। इस दौरान मुहम्मद खाँ बंगश के विरुद्ध एक बड़ा अभियान किया गया था। इस अभियान के इतिहास की दृष्टि बुंदेला राजाओं के पत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन पत्रों की प्रतियां सीतामउ की रघुबीर लाइब्रेरी में भी उपलब्ध हैं। इस आलेख में कुछ महत्वपूर्ण बुंदेला राजाओं के पत्र की नकल दी जा रही है।
जयसिंह-बुंदेला सहायोग के इतिहास की पुष्टि विलियम इरविन द्वारा लिखे गए फर्रखाबाद के बंगश नवाब और बुंदेला छत्रसाल के बीच हुए युद्ध ‘‘बंगंश-बुंदेला युद्ध’ के वर्णन से भी होती है।
छत्रसाल बुंदेला द्वारा महाराजा जयसिंह को लिखा गया पत्र – जेठ बदी 11 संवतु 1779 मुकाम सोहरापुर (10 मई 1721)
श्री राधाकृष्ण
श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा सवाई जै सिंघ जू देव सेते श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा छत्रसाल जू देव के बांचने अपर उहाँ के समाचार सदा भले चाहिजे इहाँ के समाचार भले हैं अया हकीकति तो महाराज को इहाँ की लिखवोई करे है अरु पाँचनि को लिखिवो करे है तिन मालुम करी है अब हकीकति यह है जु हम नदी नदी चले आए अए दलेल खाँ उहाँ ते चार कोस एक गाँउ पैलानी के परगने को सोरहापुर तहाँ मेल्यो हतो असवार हजार तेरह चौदह वहिलदार जुरि गये हते सु वे ही दिन रात के उठि भाग्यो सो केउल जागा होई सब भागे बहुतेक तो जमुना पार उतर गये अरु वहु पैलानी तरफ गयो सु अब हम पाछो करे चले जात हैं सु जो तो जुमना उतरी गयो तो कहा कीजे अरु इहि पार रहि है तो मारी जेंहै महाराज को बोल पर हुवे है अरु और हकीकती पाँचनि को लिखी है सु वे मालूम करी है पाती सिषायनु होई से लिखत रहिवो जेठ बदी 11 संवतु 1779 मुकाम सोहरापुर
महाराजा छत्रसाल द्वारा महाराजा सवाई जयसिंह के अधिकारियों को लिखा गया पत्र – जेठ बदि 30 संवतु 1779 मुकाम मौधा (5 मई 1721)
श्री गोपाल जू
श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा छत्रसाल जू देव येते पं श्री महता दयाराम श्री राव महासिंघ श्री प्रधान रसिक राई जोगु अपर इहाँ के समाचार भले हैं। तुम्हारे समाचार भले चाहिजे अपर हकीकत तो इहाँ की तुमको लिषवोई करे है अरु दलेला के भगे की सोंहरापुर तै सु आगे पुनि लिषी हती तहाँ जेठ बुदि 9 भौम (8 मई) को हमारे डेरा सोहरापुर आये बहु भागि के पैलानी को गाँव है अलौन दस कोस पर तहाँ जाई रह्यो जी इतौ तहाँ सोहरापुर हम पानी के सबब पाँच मुकाम करे जु नदी नदी हम चले आये तेसु वह नदी तो जमुना जी को गई अरु जानें यहि तरफ तहाँ पानी सात कोस पर मोधा रहे जु जेठ बुदि 3. खो को उहाँ तँ मौधा को कूच हाँ कछू हती नही राह चले जात हते अरु तोपखाना पुनि आगै पीछे चल्यो जातु हतो तहाँ वह आलौना तै राति मौधा प्रानि रहयो हतौ सुश्री कुवर जगतराज जू हरौल चले जात हते सुइनि सौ अरु दलेल खाँ सो दिखादा. भ्यो तहाँईनि हम लघायवरि पहुँचाई उस ही हम सब ठाकुर चले आये उते दलेल खाँ ही अस्वार हजार बारह तेरह सों होई फौज करि के आनि जुन्यो तहाँ तोपखानो थौरो सो जलेवा मैं हतो सो उठाढी भयो अरु अस्वारहि तीसु षढी भई तहाँ लड़ाई भई पैठापैठ भई मरामा रौ भलो भयौ सु दलेल खाँ माचौ गयो अर और जमातदार आाठ दस हते सरदार सरदार ते सब मारे गये अरुवार से पाचक और खेत में डटे रहे अरु और फौज सब भागी चार तरफ होई जु जिते भाग्यो सु तिते भाग्यो अरु भागे जात पुनि बहुत मारे गये अरु अपनी तरफ के ठाकुर दस बारहक तो जुडो अरु ठाकुर साठ घायल भये और सब बचे तुम इहि के मारबे की महाराज के फुरमाफिक बार बार लिख (त) हते सो अब यह मान्यौ गयो महाराज को बोलु उपर भयो अरु अब तरोहां पुनि थानो बैठारि है अरु और परगननि को बंदोबस्त करि है अब उहाँ की महाराज के हाथ है हमै तो महाराज के हुकम की करने है जब उहां की हकीकति होई सो सिताब लिखिजो जेठ बुदि 30 संवतु 1779 मुकाम मौधा।
बाँई और हाँसिये पर –
अरु पाछे ते दलेल खाँ को मूड दियाअै पठतत है इहा तै तो बुलायो है पैज लेवदारन के पाछे पहुचि है।
दतिया के राजा रामचंद्र द्वारा महाराजा जयसिंह को लिखा गया पत्र (27 मई 1721)
श्री गोपालजी
श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री सवाई जैसिंह जू ऐते श्री महाराज श्री राव रामचंद्र जू देव के बांच्ये अपर महाराज के समाचार सदा सर्वदा सकल साहन भंडार सहित दिन प्रति दिन घड़ी के भले चाहिये तो हमको परम आनंद होई इहाँ के समाचार भले हैं महाराज की कृपा है अपर पाती महाराज की आई सुभ समाचार पाये आगे दलले पठान के मारे की हकीकति पहिले महाराज को लिखी है जो जाहिर भई है अपर सब राजा मिलि कै हमसों कहत है कि पठानन को जोरा हमेशा कालपी (र) हेतु है सो तुम कालपी या परगने कनार में बैठो वा जाइगा पर अपने बैठे पठानन की राह बंद होत है ताको जो हुजूर तै महाराज निषहुत जाने तो महाराज के सिषापन मुवाफिक हम बैठे या मामले जु सिषायनु होई सो फरमाई पठै वो जेठ बुदि 12 सं. 1779 मुकाम मौधा।
ओरछा के राजा उदोतसिंह द्वारा जयसिंह को लिखा गया पत्र – अषाढ़ बदि 3 संवत 1779 मुकाम ओरछा (1 जून 1721)
श्री रामजी
श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा सवाई जयसिंह जू देव एते श्रीमहाराज धिराज श्री महाराजा श्री राजा उदौतसिंह जू देव के वांच्या परंच आपके समाचार सदा भले चाहिजे तो हमको परम आनंद होई इहाँ के समाचार भले है श्री रामजी की कृपा तें अपर आपके कहे मुवाफिक सब राजा इकट्टे होय पठाननि को तंबहि करयो दलेलखां मान्यो गयो सो हकीकति मुतसदीनु के वा वकीलनि के कहे जाहिर भई होय दरबार को साधनु सम्हार सब अपने हाथ है हम सब तो आपके कहे मुवाफिक काम करनो आयो है सो करयो है और करिवे तय्यार हैं भलो भरोसो अब आपको है और जेहि भांति हम आपकी मया को भलो भरोसो राखत है तैसेहि चंदेरी के श्री राजा दुर्जनसिंह जी देव राषत है आप पुनि मया (दया) कर मुतसदीन को फुरमावोजी (कि) जैसे इहां के काम की आपके कहे मुवाफिक तदबीर सम्हार केर रहत है तैसे ही इनके काम काज की सम्हार करे रहे हम सब ई भरोसे आपके है पाति समाचार लिखत रहियो अषाढ़ बदि 3 संवत 1779 मुकाम ओरछा।
राजा छत्रसाल का महाराजा जयसिंह को लिखा गया पत्र (12 जुलाई 1724)
‘श्री कृष्णोजयति’
श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा सवाई जैसिंह जू देव येते श्री महा- राजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा छत्रसाल जू देव के वाँचने पर उहाँ के समाचार भले चाहिजे इहाँ के समाचार महाराज के नाही पाये हैं सो विधिवार सब लिखवी कहाँ हो कहा की जतु है कहा मसलेहत है सो अपनी हकीकत लिखवी और जो मसलेहत सिषायनु हमको लिखनो हाय सो हमको लिखवी और इहाँ की हकीकत यह है जो बंगस यहाँ आयो है सो जमुना के पेले पार एक भोगनीपुर है तहाँ है सो फौज की जोर तोर करतु है और याहे पेले पार जमुना के दोय भैया जाय जुरे हैं श्री दीवान हिरदे साह जी और कंवर जगतराज जी सो अब तो जमुना जी आय गई है सो जमुनाजी बचाव करे है बहुरि जमुना उतरत लड़ाई इन्हें उन्लें ह्वै है सो यह हम आपुन लिखी है जो यो मारयो जाय तो हमारो बदनाम पानसाही में न होय यो वरहू उरझतु फिरतु है और जायगा जो हम लई है सो पातशाह के हुकम ते लई है और अपुन दिवाई है सावन सुदि 3 संवत 1781 मुकाम महेवा।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि बुंदेला राजाओं के पत्र इस बात की गवाही देते हैं कि वे इस काल में मुगलों के लिए युद्धरत सवाई जयसिंह का साथ दे रहे थे जबकि औरंगजेब के काल में बुंदेला राजाओं ने मुगलों के विरुद्ध सीधा मोर्चा खोल रखा था।