टॉडगढ़ अंग्रेजों के समय में मेरवाड़ा क्षेत्र में स्थित था। वर्तमान समय में टॉडगढ़ अजमेर संभाग के ब्यावर जिले की टाटगढ़ तहसील में स्थित है।
ई.1818 में कर्नल जेम्स टॉड पश्चिमी राजपूताना में पॉलिटिकल एजेंट बनकर आया। उसने मेवाड़ राज्य का इतना सुंदर प्रबंध किया कि ई.1819 में महाराणा भीमसिंह ने उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये मेरवाड़ा क्षेत्र में स्थित बोरसावड़ा नामक गांव का नाम बदल कर टॉडगढ़ कर दिया।
उन दिनों इस क्षेत्र मेरों का भारी उपद्रव रहता था। कर्नल टॉड ने मेवाड़ तथा जोधपुर राज्यों से मेरों के क्षेत्र लेकर मेरवाड़ा नामक एक अलग प्रांत का गठन किया तथा उसके केन्द्र में स्थित टॉडगढ़ में एक छोटा दुर्ग बनवाकर उसमें एक सैनिक टुकड़ी नियुक्त की जो न केवल मेरों को नियंत्रित करे अपितु राजस्व की वसूली भी करे।
कर्नल टॉड का पूरा नाम जेम्स टॉड था। उसका जन्म इंग्लैण्ड के लंदन शहर में ईस्वी 1782 में हुआ था। वयस्क होने पर वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी में भरती हो गया तथा भारत में एक सैनिक के रूप में ही आया था। बाद में उन्नति करता हुआ कर्नल के रैंक तक पहुंचा तथा राजपूाना में पॉलिटिकल ऑफीसर नियुक्त हुआ।
कर्नल जेम्स टॉड को राजपूताना राज्यों की दुर्दशा को देखकर बड़ा दुख होता था कि किस प्रकार मराठे और पिण्डारी मिलकर इस क्षेत्र के महान् राज्यों को नष्ट कर रहे थे। इसलिए उसने राजपूताने का एक विस्तृत नक्श तैयार किया जिसके आधार पर कम्पनी सरकार ने ई.1818 में पिण्डारियों के विरुद्ध एक बड़ी सशस्त्र कार्यवाही करके पिण्डारियों को नष्ट कर दिया।
टॉड ने एनल्स एण्ड एण्टिक्विटीज ऑफ राजस्थान तथा ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया नामक दो पुस्तकें लिखीं। उसे राजपूताना राज्यों से इतना अधिक लगाव था कि इंग्लैण्ड के लोग उस पर राजपूत राजाओं के साथ मिल जाने का आरोप लगाते थे। ईस्वी 1835 में 52 वर्ष की आयु में लंदन में जेम्स टॉड की मृत्यु हुई।
ई.1911 की असफल क्रांति के नायक राव गोपालसिंह खरवा तथा विजयसिंह पथिक को उनके साथियों सहित इसी दुर्ग में बंद करके रखा गया था। कुछ समय बाद गोपालसिंह खरवा यहाँ से फरार हो गये।
टॉडगढ़ में प्रतिवर्ष यूरोपीय देशों से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।