जायल क्षेत्र में आज से हजारों साल पहले आदिमानव का निवास था जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस काल में इस क्षेत्र में जल एवं जंगल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। जायल से प्रस्तर युगीन एवं ताम्र युगीन सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जायल नागौर जिले में है। जायल में तहसील एवं पंचायत समिति मुख्यलय भी कार्यरत हैं। वर्तमान समय में जायल उपखण्ड में 142 गांव हैं।
जायल उपखण्ड के गांव
| 1 | जायल | 2 | बरसूणा | 3 | रोटू |
| 4 | गुजरियावास | 5 | रोहिणा | 6 | अजबपुरा |
| 7 | जानवास | 8 | शिवनगर | 9 | गौराऊ |
| 10 | कठौती | 11 | डेहरोली | 12 | खिंयाला |
| 13 | नोखाजोधा | 14 | सांडिला | 15 | राजोद |
| 16 | जोचीणा | 17 | अहीरपुरा | 18 | धानणी |
| 19 | अड़सिंगा | 20 | दोतीणा | 21 | धाटियाद |
| 22 | जाखण | 23 | सिलारिया | 24 | बोड़िन्दकलां |
| 25 | सुरपालिया | 26 | पन्नापुरा | 27 | फरड़ोद |
| 28 | टालनियाऊ | 29 | कमेड़िया | 30 | धारणा |
| 31 | खाबड़ियाना | 32 | नोसरिया | 33 | मेरवास |
| 34 | मुन्दियाऊ | 35 | गडरिया | 36 | कुसिया |
| 37 | झाड़ेली | 38 | आकोड़ा | 39 | झलालड़ |
| 40 | बुरड़ी | 41 | निम्बोड़ा | 42 | टांगला |
| 43 | रामपुरा-1 | 44 | कांगसिया | 45 | टांगली |
| 46 | गुगरियाली | 47 | डोडू | 48 | छावटाकलां |
| 49 | गुढा रोहिली | 50 | मीठामांजरा | 51 | छावटाखुर्द |
| 52 | रामसर | 53 | आंवलियासर | 54 | बुगरड़ा |
| 55 | चवाद | 56 | नया गांव | 57 | रुणिया |
| 58 | तंवरा | 59 | जालनियासर | 60 | खानपुर मांजरा |
| 61 | चावली | 62 | बागरासर | 63 | लूणसरा |
| 64 | खारामांजरा | 65 | बोसेरी | 66 | गेलोली |
| 67 | ढाकासर | 68 | खेराट | 69 | कसनाऊ |
| 70 | डेह | 71 | सेडाऊ | 72 | भावला |
| 73 | किशनपुरा | 74 | जानेवा पूर्व | 75 | कालवी |
| 76 | सोमणा | 77 | जसनाथपुरा | 78 | मुण्डी |
| 79 | खंवर | 80 | जानेवा पश्चिम | 81 | अड़वड़ |
| 82 | छापड़ा | 83 | मांगलोद | 84 | ईग्यार |
| 85 | खेड़ाहीरावास | 86 | गोठ | 87 | खाटू कलां |
| 88 | रोल | 89 | तेजासर | 90 | धीजपुरा |
| 91 | डीडियाकलां | 92 | पीड़ियारा | 93 | खिंयावास |
| 94 | डीडियाखुर्द | 95 | दुगस्ताऊ | 96 | कचरास |
| 97 | नराधना | 98 | बोडिंद खुर्द | 99 | हीरासनी |
| 100 | खेरवाड़ | 101 | सोनेली | 102 | मोतीनगर |
| 103 | रुपाथल | 104 | ऐवाद | 105 | नीमनगर |
| 106 | जुंजाला | 107 | रातंगा | 108 | रुपनगर |
| 109 | खेड़ा नारनोलिया | 110 | सुवादिया | 111 | टाटरवा |
| 112 | गोतरड़ी | 113 | दुगोली | 114 | टाटरवी |
| 115 | बोड़वा | 116 | काशीपुरा | 117 | बरनेल |
| 118 | पातेली | 119 | रामपुरा-2 | 120 | फिरोजपुरा |
| 121 | तरनाऊ | 122 | बटवाड़ी | 123 | ज्याणी |
| 124 | ढेहरी | 125 | खारीजोधा | 126 | अम्बाली |
| 127 | मातासुख | 128 | गुमानपुरा | 129 | चावड़ानगर |
| 130 | छाजोली | 131 | ऊंचाईड़ा | 132 | दांता |
| 133 | कसारी | 134 | कुंवाड़खेड़ा | 135 | नूरियास |
| 136 | भीणियाद खास | 137 | भीणियाद “अ“ | 138 | भीणियाद “ब“ |
| 139 | पिण्डिया | 140 | उबासी | 141 | बेरासर |
| 142 | बालाजीनगर |
जायल उपखण्ड के प्रमुख कुछ गांव
जायल उपखण्ड के कुछ प्रमुख गांवों के बारे में इस वैबसाइट पर अलग-अलग ब्लॉग के रूप में जानकारी दी गई है। कुछ प्रमुख गांवों के बारे में नीचे जानकारी दी जा रही है।
डेह
डेह गांव जायल उपखण्ड में है। यह गांव नागौर से 20 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में चम्पानगरी नामक प्राचीन नगर के ध्वंसाशेषों के पास ही बसा हुआ है। कहा जाता है कि चम्पानगरी के उजड़ जाने पर वहाँ के निवासी इस स्थल पर आ गये जो कि चम्पानगरी से मात्र एक किलोमीटर दूर था।
चम्पानगरी ईसा की 10वीं एवं 11वीं शताब्दी में समृद्धि एवं वैभव के चरम पर थी किंतु 12वीं शती आते-आते किन्हीं कारणों से नष्ट हो गई। यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों, भवनों तथा स्मारकों के ध्वस्त अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
यहाँ से कुछ शिलालेख प्राप्त हुए हैं। डेह में स्थित एक जैन मंदिर में वि.सं. 1219 का लेख अंकित है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन चम्पानगरी के ध्वस्त होने के बाद किया गया। अनुमान होता है कि डेह शब्द ‘ढहने’ अथवा ‘दह’ (दहन) से अपभ्रंश होकर बना होगा।
खारी जोधा
जायल तहसील में स्थित खारी जोधा में विक्रम संवत 1006 का सागरू नाल का स्तम्भ देखने योग्य है। यह स्तंभ लगभग दस फुट ऊंचा है जिस पर गणेशजी की प्रतिमा उत्कीर्ण है। स्तम्भ पर खुदा लेख अब पढ़ने में नहीं आता किंतु सर्पिलाकार जंजीर तथा विक्रम 1006 स्पष्ट दिखाई देते हैं।
गांव के लोग इसे सागरूनाल का स्तम्भ कहते हैं। उनका मानना है कि राजा सागर ने अपने द्वारा खुदवाये तालाबों पर इस तरह के स्तम्भ लगवाये थे। अब यहाँ तालाब नहीं है किन्तु वर्षा का पानी अब भी इस क्षेत्र में इकट्ठा होता है। खारी जोधा में हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है।
झलालड़
जायल तहसील के झलालड़ गांव में उम्मेदसिंह के खेत से 22 अगस्त 1988 को लगभग तीन फुट ऊंची संगमरमर की 8 मूर्तियां मिली थीं। इनमें विष्णु, लक्ष्मी, महिषासुरमर्दिनी, गणपति तथा गौरीशंकर की हैं। गौरीशंकर की मूर्तियों की संख्या 3 है।
एक मूर्ति के नीचे ‘महामंडेलश्वर’ श्री कयंत्र सदेव मूर्ति नियंश्री अग्रेमहारानी श्री ललिता देवा द्वितीया’ उत्कीर्ण है। मूर्तियों पर से किसी संवत या राजा का नाम नहीं मिला है। मूर्तियों के पास से आठ खम्भे एवं चार तोरणद्वार भी मिले हैं।
ये मूर्तियां एक चौकोर स्थान पर आमने-सामने रखकर भूमि में दबाई गई थीं। संभवतः मुसलमानों से बचाने के लिए इन्हें भूमि में दबाया गया। इन मूर्तियों के लिए गांव वालों ने लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर बनवाया तथा ई.1039 की विजया दशमी को स्थापित कर दिया।
दोतीणा
दोतीणा गांव जायल पंचायत समिति में है। गांव में 10 फुट ऊंचा कलात्मक स्तम्भ दर्शनीय है जिसे सागरूनाल कहते हैं। स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा बहुत ही कलात्मक है तथा शिखरबंद मंदिर की आकृति में है। इसके एक ओर गणेशजी, दूसरी ओर विष्णु तथा एक देवयुगल उत्कीर्ण हैं। स्तम्भ के शिखर के ऊपरी भाग का अंकन भी बहुत कलात्मक है।
मध्य भाग में नरसिंह के मुख चारों दिशाओं में अंकित हैं जिनके नीचे झूलती हुई जंजीरें हैं। दो मगरमच्छ और एक सर्प भी उत्कीर्ण हैं। जहाँ यह स्तम्भ लगा हुआ है वहाँ अब तालाब नहीं हैं। गांव में सतीमाता का मंदिर दर्शनीय है जो वि.सं.1626 में अपने पुत्र के पीछे सती हुई थी।
उबासी
उबासी गांव जायल पंचायत समिति में है। उबासी में एक सागरूनाल दर्शनीय है। ऊंचे-नीचे रेतीले धोरों के बीच बसे इस गांव में लगभग एक दर्जन देवलियों के पास गांव के एक निजी बाड़े में इस सागरूनाल को देखा जा सकता है। दस फुट ऊंचे चौकोर स्तम्भ के एक ओर गणेशजी, एक ओर विष्णु तथा एक ओर देवयुगल अंकित हैं।
चारों तरफ ऊपर से नीचे तक जंजीरें लटक रही हैं। गांव वालों का विश्वास है कि राजा सागर ने यहाँ तालाब खुदवाया होगा। उसी के किनारे यह स्तम्भ लगवाया होगा। पास लगी देवलियां काफी पुरानी हैं। अनेक देवलियां रेत के धोरों में दब गई हैं। एक देवली पर विक्रम 1280 उत्कीर्ण है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



