शेखावत आम्बेर के कच्छवाहा शासक वंश की ही एक शाखा है। इनका कोई बड़ा स्वतंत्र राज्य नहीं था। ये स्थानीय शासकों की तरह शासन करते थे। शेखावाटी क्षेत्र में शेखावतों के लघु दुर्ग बड़ी संख्या में बने हुए हैं।
शेखावतों के लघु दुर्ग सीकर एवं झुंझुनूं जिलों में स्थित हैं। ये दुर्ग शेखावाटी क्षेत्र के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं तथा रियासती काल में इस क्षेत्र की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था के द्योतक हैं। शेखावतों के लघु दुर्ग आलेख में झुंझुनूं जिले के कुछ दुर्गों का परिचय दिया गया है। झुंझुनूं जिले में स्थित महनसर, नवलगढ़ एवं दलेलगढ़ दुर्गों का तथा सीकर जिले में स्थित दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, खाचरियावास, खण्डेला दुर्ग तथा फतहपुर नामक दुर्गों का वर्णन अलग आलेखों में किया गया है।
शेखावत शाखा के संस्थापक राव शेखा का जन्म ई.1433 में जयपुर के राजा उदयकरण (ई.1423-45) के पुत्र राव बालोजी के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ। शेखा के पिता बालोजी को अमरसर की जागीर प्राप्त हुई थी। ई.1445 में बालोजी का निधन हुआ, तब शेखाजी 12 वर्ष का था।
शेखा ने अपने पिता की जागीर संभाली तथा कड़े संघर्ष के उपरांत अपने लिये एक बड़ा राज्य खड़ा कर लिया। उसने अपने पिता बालोजी से प्राप्त अमरसर की जागीर के साथ 360 नये गांव जोड़ लिये। ये गांव चंदेला राजपूतों, निर्वाण राजपूतों, गौड़ राजपूतों एवं मुसलमानों आदि से छीने गये थे। शेखा के दादा अर्थात् आमेर के राजा उदयकरण ने शेखा को महाराव की उपाधि दी। शेखा के 12 पुत्र हुए जिनकी संतति शेखावत कहलाई तथा शेखावतों द्वारा शासित क्षेत्र शेखावाटी कहलाया।
शेखावतों ने रेवासा, खासाली, खण्डेला, उदयपुर (पुराना नाम कौसाम्बी), फतहपुर, झुंझुनूं, सीकर, खेतड़ी, सिंघाना, खाचरियावास, चूरू, बर, मुंदड़ी आदि लगभग 90 रेगिस्तानी ठिकानों पर अधिकार कर लिया। उदयपुर ठिकाणे के शेखावतों में शार्दूलसिंह अथवा साधु प्रसिद्ध योद्धा हुआ। उसकी मृत्यु के समय उसके अधीन शेखावाटी के लगभग 1000 गांव थे।
शार्दूलसिंह के तीन विवाह हुए। पहला विवाह ई.1698 में नाथासर के मनरूपसिंह बीका की पुत्री सहज कुंवर बीका से, दूसरा विवाह नाथासर के मुकुल सिंह बीका की पुत्र सिरे कंवर बीका से तथा तीसरा विवाह पूंगलोटा (डेगाना के निकट) के देवीसिंह मेड़तिया की पुत्री बखत कंवर से। ई.1742 में शार्दूलसिंह का निधन हो गया। उसके छः पुत्र थे जिसमें से एक पुत्र कंवरपदे में ही मर गया। इस कारण शार्दूलसिंह की मृत्यु के बाद झुंझुनूं राज्य उसके पांच पुत्रों में बंट गया। ये पांचों ठिकाणे पंचपाना कहलाते थे। ये ठिकाणे भारत की आजादी तक अस्तित्व में रहे।
शार्दूलसिंह की पहली पत्नी से जोरावरसिंह का जन्म हुआ जिसने जोरावरगढ़ का निर्माण करवाया। उसकी मृत्यु ई.1745 में हुई। उसके वंशज ताइन, मलसीसर, गांगियासर तथा मण्ड्रेला के ठिकाणेदार हुए। शार्दूलसिंह की तीसरी पत्नी से उत्पन्न ठाकुर किशनसिंह का जन्म ई.1709 में हुआ। किशनसिंह के वंशज खेतड़ी, अरूका, सीगड़ा तथा अलसीसर ठिकाणे के ठिकाणेदार हुए।
शार्दूलसिंह की तीसरी पत्नी से उत्पन्न बहादुरसिंह का जन्म ई.1712 में हुआ और वह बीस वर्ष की आयु में ई.1732 में मर गया। तीसरी पत्नी से उत्पन्न अखयसिंह का जन्म ई.1713 में हुआ। उसने अखैगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। वह ई.1750 में निःसंतान मृत्यु को प्राप्त हुआ।
शार्दूलसिंह की तीसरी पत्नी से उत्पन्न ठाकुर नवलसिंह बहादुर का जन्म ई.1715 में हुआ। उसके वंशज नवलगढ़, महनसर, दोरासर, मुकुंदगढ़, नरसिंहगढ़, बालूंदा तथा मण्डावा के ठाकुर हुए। ई.1780 में नवलसिंह की मृत्यु हुई।
शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी से उत्पन्न ठाकुर केसरीसिंह का जन्म ई.1728 में हुआ। उसके वंशज डूण्डलोद, सूरजगढ़ तथा बिसाउ के ठिकाणेदार हुए। केसरीसिंह का निधन ई.1768 में हुआ।
शेखावतों के लगभग सभी ठिकाणों को जयपुर नरेश जयसिंह के समय में जयपुर राज्य का करद राज्य बनाया गया। अर्थात् शेखावाटी के ठिकाणे जयपुर राज्य को कर देने लगे। जयपुर नरेश मुगलों का मातहत था। इस प्रकार शेखावाटी का यह सम्पूर्ण क्षेत्र मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
लगभग 500 वर्षों की अवधि में शेखावत ठाकुरों ने 50 से अधिक दुर्ग बनाये तथा कुछ दुर्ग जोहियों, भाटियों एवं अन्य राजपूतों से छीनकर अपने नियंत्रण में किये। शेखावतों के लघु दुर्ग अब भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान हैं किंतु उनमें से कुछ दुर्ग नष्ट हो गये हैं तथा कुछ दुर्ग खण्डहर रूप में विद्यमान हैं। अच्छी हालत वाले कुछ दुर्ग होटलों में बदल दिये गये हैं।
शेखावतों के लघु दुर्ग – मण्डावा दुर्ग
झुंझुनूं जिले में स्थित मण्डावा दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुंवर अखैराजसिंह द्वारा ई.1645 में करवाया गया। कहीं-कहीं उल्लेख मिलता है कि इस दुर्ग का निर्माण ई.1756 में ठाकुर नवलसिंह ने करवाया। जनाना महलों में अलग-अलग थीम पर निर्माण किये गये हैं। एक महल में भित्तिचित्र बने हुए हैं तथा दूसरे महल में संगमरमर का फव्वारा लगा हुआ है। बुर्ज में 7 फुट मोटी दीवार चिनी गई है। दीवानखाने को विभिन्न शस्त्रों तथा बड़े चित्रों से सजाया गया है। मण्डावा कस्बा चित्रित हवेलियों एवं भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
शेखावतों के लघु दुर्ग – बिसाउ दुर्ग
बिसाउ दुर्ग झुंझूनूं जिले में स्थित है। यह पंचपाना का महत्वपूर्ण ठिकाना था। महाराव शार्दूलसिंह ने बिसाउ का ठिकाणा अपने पुत्र महाराज केसरीसिंह को प्रदान किया था। महाराजकेसरीसिंह ने ई.1746 में बिसाउ दुर्ग का निर्माण करवाया। इसमें आठ बुर्ज तथा कई कचररियां बनी हुई हैं। उसका वंशज ठाकुर श्यामसिंह एक महान योद्धा था।
पंजाब के राजा रणजीतसिंह से उसके निकट सम्बन्ध थे। श्यामसिंह के समय में बिसाउ दुर्ग को सम्पत्ति एवं महत्ता दोनों की प्राप्ति हुई। वर्तमान में यह दुर्ग, गांव के बीच में स्थित है तथा अच्छी अवस्था में नहीं है। यह अपेक्षाकृत बहुत छोटा किंतु मजबूत दुर्ग है। गढ़ में प्रवेश के लिये दो द्वार हैं। दुर्ग के कुछ भवनों की दीवारों पर भित्ति चित्र बने हुए हैं। इस दुर्ग को कभी तोड़ा नहीं गया।
शेखावतों के लघु दुर्ग – डूण्डलोद गढ़
डूण्डलोद दुर्ग झुंझनूं जिले की नवलगढ़ तहसील में स्थित है तथा नवलगढ़ से केवल सात किलोमीटर दूर स्थित है। डूण्डलोद दुर्ग को रियासती काल में शिवगढ़ भी कहा जाता था।
डूण्डलोद दुर्ग का निर्माण ठाकुर केसरीसिंह ने ई.1750 में करवाया। उसके वंशज शिवसिंह ने उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में इस दुर्ग में कुछ निर्माण कार्य करवाये। पूरा दुर्ग प्राकार से घिरा हुआ है। दुर्ग का मुख्य द्वार 20 फुट ऊंचा है।
दुर्ग के स्थापत्य पर राजपूत एवं मुगल शैली के मिश्रण की छाप है। दीवान खाने में जाने के लिये सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है इसे पोट्रेट्स, लटकन एवं प्राचीन फर्नीचर से सजाया गया है। इसकी खिड़कियों पर कलात्मक कांच लगा हुआ है। कुछ पोट्रेट यूरोपियन ढंग से बनाये गये हैं।
दुर्ग में कई प्राचीन वस्तुएं रखी हुई हैं तथा एक पुस्तकालय भी है। दुर्ग में बने महलों की पहली मंजिल पर जनाना महल बने हुए हैं जिनका फर्नीचर बहुत ही कलात्मक है। इसमें कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। वर्तमान में दुर्ग झुंझुनूं जिले में स्थित है तथा इसके परिसर में हैरिटेज होटल संचालित किया जा रहा है।
शेखावतों के लघु दुर्ग – भोपालगढ़ (खेतड़ी)
शार्दूलसिंह के दूसरे पुत्र किशनसिंह को खेतड़ी का ठिकाणा प्राप्त हुआ था। उसके कई पुत्र हुए जिनमें से भोपालसिंह ने ई.1755 में खेतड़ी के पास की एक पहाड़ी पर अपने नाम से भोपालगढ़ बनाया। इसके महलों में कांच का सुंदर काम हुआ है तथा भित्तिचित्रों के माध्यम से नयनाभिराम दृश्य अंकित किये गये हैं।
देवगढ़
सीकर से लगभग 13 किलोमीटर दूर स्थित देवगढ़ की पहाड़ियों में लगभग 225 वर्ष पुराना दुर्ग देवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वैभव नष्ट हो चुका है किंतु इसके ध्वंावशेषों को देखना भी कम रोमांचकारी नहीं है।
मुकुंदगढ़
मुकुंदगढ़ का निर्माण महाराजा मुकुंदसिंह ने ई.1859 में करवाया। यह दो एकड़ क्षेत्र में बना हुआ है तथा इसका स्थापत्य परम्परागत राजपूत शैली का है। दुर्ग के महलों एवं कचहरियों की कलात्मक खिड़कियां एवं झरोखे देखते ही बनते हैं।
शेखावतों के लघु दुर्ग – अन्य दुर्ग
सूरजगढ़ दुर्ग का निर्माण ई.1778 में बिसाउ के महाराज सूरजमल ने करवाया। खेतड़ी दुर्ग का निर्माण ई.1755 में, अमरसर का दुर्ग ई.1477 में, सीकर दुर्ग का निर्माण ई.1784 में करवाया गया। लोसल का गढ़ बीच मैदान में स्थित है। इसमें तीन मंजिला रनिवास बना हुआ है। गाड़ोद दुर्ग की प्राचीर 25 फुट ऊंची हैं।
परसरामपुरा का गढ़ नदी के किनारे बना हुआ है। यहीं पर राजा सार्दुलसिंह की छतरी बनी हुई है। अलसीसर दुर्ग का निर्माण अलसीसर के ठाकुर द्वारा करवाया गया। ठाकुर का निवास इसी दुर्ग में बना हुआ है। टमकौर दुर्ग (बिशनगढ़) का निर्माण बिसाउ के महाराज केसरीसिंह ने ई.1767 में करवाया गया।
नुआ दुर्ग का निर्माण बिसाउ के महाराज केसरीसिंह द्वारा ई.1755 में करवाया गया। श्यामगढ़ दुर्ग का निर्माण ई.1805 में बिसाउ के महाराज श्यामसिंह द्वारा करवाया गया। उदयपुरवाटी दुर्ग का निर्माण ई.1761 में बिसाउ के महाराज केसरीसिंह द्वारा करवाया गया। ककरेउ कलां दुर्ग का निर्माण ई.1800 में बिसाउ के महाराज श्यामसिंह द्वारा करवाया गया।
इस आलेख में शेखावतों के लघु दुर्ग अत्यंत संक्षेप में लिखे गए हैं। अधिक जानकारी के लिए आप हमारी पुस्तक राजस्थान के प्रमुख दुर्ग पढ़ सकते हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता