नागौर से 70 कि.मी. पूर्व में स्थित रोटू ग्राम जायल तहसील में हैं। इस गांव के आसपास 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आखेट निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया गया है जहाँ हजारों की संख्या में काले हिरण एवं चिंकारा विचरण करते है। इस गांव की सीमा में सघन वृक्ष हैं।
वि.सं. 1572 वैशाख सुदि अक्षय तृतीया के दिन भगवान जाम्भोजी इस गांव में उमाबाई का भात (मायरा) भरने के लिए हजारों लोगों के साथ आये थे। उनके साथ जोधपुर नरेश राव जोधाजी, चित्तौड़गढ़ नरेश राणा सांगा, मलेरकोटड़ा (पंजाब) के शेख सद्दू और एक हजार पांच सौ साधु थे।
ग्राम में प्रवेश के समय जांभोजी ने एक सूखे वृक्ष को हरा कर दिया था, वह आज भी दर्शनीय है। भगवान जाम्भोजी ने अपने पराक्रम एवं दिव्य शक्ति से खेजड़ी वृक्ष के 3700 पेड़ लगाकर गांव की सीमा में अद्भुत बगीचा लगाया जो आज भी मौजूद है। जाम्भोजी के अनुयायी विश्नोईयों के 500 परिवार इस गांव में बसते हैं जो इन पेड़ों की सुरक्षा रखते हैं।
मीरांबाई के दादा तथा मेड़ता के राव दूदा को जांभोजी ने एक लकड़ी को अष्टधातु की तलवार में बदलकर प्रदान की थी। वह आज भी रोटू गांव के मंदिर में मौजूद है। जाम्भोजी उमाबाई का भात भरने के लिए आये, तब गांव में रथ से नीचे उतरते समय उन्होंने जिस पत्थर पर पैर रखा उस पत्थर पर पदचिह्न उत्कीर्ण हो गया था। वह पदचिह्न भी उस मंदिर में मौजूद है।
रोटू गांव की सीमा में सेणिया पाखण्डी रहता था उस पर प्रेत की छाया थी, उसे प्रेत से मुक्त करने के लिए जाम्भोजी ने उसे जमीन पर घसीटा था। घसीटने के स्थान पर आज भी चिह्न मौजूद हैं। उस स्थान पर घास आदि नहीं उगता है। उस स्थान को टोकीधोरा कहते हैं। यह गांव से पश्चिम दिशा में तीन मील दूर है।
जाम्भोजी ने एक नियम बनाया था ‘अमर रखावै थाट बैल बंध्या न करावै’ गांव की सीमा में पैदा होने वाले बकरे-बकरी को बेचा नहीं जाता हैं। बकरों का पालन-पोषण गांव के आर्थिक सहयोग से किया जाता है उन्हें नपुंसक भी नहीं बनाते हैं। बकरों के झुण्ड को थाट कहते हैं।
इस गांव में हिरण, मोर, चिड़िया एवं अन्य छोटे पक्षी लोगों के घरों में पालतू जानवरों की तरह बैठे रहते हैं। हाथ से पकड़ने पर भी डरते नहीं हैं। हिरणों के झुण्ड स्वच्छंद घूमते रहते हैं। वि.सं. 2004 में इस गांव का धूकलराम बिश्नोई शिकारियों का विरोध करते हुए शहीद हो गया था।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



