राव मालदेव ने लगभग 31 साल तक मारवाड़ राज्य पर शासन किया। वह अत्यंत विशाल राज्य का स्वामी था किंतु राव मालदेव के अभिलेख बहुत कम संख्या में मिले हैं जो कि एक आश्चर्य का विषय है।
थार मरुस्थल के मारवाड़ राज्य के राठौड़ शासकों में सर्वाधिक प्रतापी राजा राव मालदेव था। वह राव गांगा का पुत्र था और मुगल बादशाह हुमायूं, सूरी सुल्तान शेरशाह सूरी एवं मुगल बादशाह अकबर का समकालीन था। उसने ई.1531 से ई.1562 तक शासन किया।
जिस समय राव मालदेव मारवाड़ का शासक हुआ, उस समय मारवाड़ राज्य की सीमा मण्डोर से लेकर सोजत तक संकुचित थी। मालदेव ने अपने भुजबल से मरुस्थल के राठौड़ शासकों को अपने अधीन करके अपनी शक्ति बढ़ाई एवं तत्पश्चात् अपने राज्य का विस्तार करते हुए अजमेर को भी अपने राज्य में मिला लिया। राजस्थान का ऐसा कोई राज्य नहीं था, जिसका कुछ न कुछ भाग मालदेव ने न छीन लिया हो!
एक समय ऐसा भी आया जब मालदेव के राज्य की सीमा शेरशाह सूरी के साम्राज्य तक जा पहुंचीं। ई.1544 में सुमेर-गिर्री की लड़ाई में शेरशाह सूरी ने मालदेव को परास्त करके उसके राज्य एवं राजधानी दोनों पर अधिकार कर लिया। ई.1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद मालदेव ने अपनी राजधानी एवं राज्य दोनों पर वापस अधिकार कर लिया।
ऐसे प्रतापी एवं दीर्घ आयु वाले राजा के राज्यकाल के अब तक केवल तीन अभिलेख ही मिले हैं। मालदेव के दो अभिलेख उसकी विजयों से सम्बन्धित हैं एवं तृतीय अभिलेख में किसी स्थानीय शासक से युद्ध करने का उल्लेख है। ये अभिलेख इस प्रकार हैं-
1. सिवाणा अभिलेख संवत् 1594 (ई.1537)
इस अभिलेख में कहा गया है कि राव मालदेव द्वारा सिवाणा का दुर्ग संवत् 1594 के आषाढ़ कृष्णा को जीता गया। दुर्ग की चाबी मंगलिया देवा भादावत को दी गईं। अर्थात् देवा को सिवाणा दुर्ग का किलेदार नियुक्त किया गया। बांकीदास की ख्यात से ज्ञात होता है कि यह दुर्ग राव मालदेव ने राणा डूंगरसी जैतमल से जीता था। लेख के अन्त में लेख के लेखक का नाम पंचोली अचल गदाधर एवं लेख के उत्कीर्ण-कर्त्ताओं के नाम करमचन्द पुरबिया और केसव दिये गये हैं।
2. चांदेलाव अभिलेख संवत् 1606 (ई.1549)
यह अभिलेख आसाढ़ कृष्ण चतुर्थी, संवत् 1606 का है। इस लेख में महाराजा मालदेव के राज्यकाल में भाटी शंकर नामक व्यक्ति की नृत्यु व उसकी पत्नी वाल्हा वीसल के सती होने का उल्लेख है।
3. राणीसर अभिलेख संवत् 1613 (ई.1556)
इस अभिलेख में संवत् 1613 में राव मालदेव द्वारा पीथो नामक व्यक्ति से युद्ध करके राणीसर को हस्तगत करने का उल्लेख हुआ है। [1]
आशा की जा सकती है कि राव मालदेव के अभिलेख भविष्य में बड़ी संख्या में प्राप्त हो सकेंगे।
[1] कृष्णकुमार भार्गव, राव मालदेव के अभिलेख, राजस्थान हिस्ट्री प्रोसीडिंग्स, 1968, पृ. 247.