रमथेड़ा दुर्ग सपोटरा उपखण्ड में रणथम्भौर वन्यजीव अभयारण्य तथा भरतपुर पक्षी अभयारण्य के बीच एक पहाड़ी पर बना हुआ है तथा कैलादेवी अभयारण्य से मात्र 5 किलोमीटर दूर है। इसे रमथरा का दुर्ग भी कहा जाता है। वर्तमान समय में रमथेड़ा का दुर्ग करौली जिले के सपोटरा कस्बे के निकट है।
रमथेड़ा दुर्ग अपने निर्माण के समय गहन वन में स्थित था। इस कारण यह अरण्य दुर्ग की श्रेणी में आता था एवं घनघोर जंगलों के बीच होने से सेना को शत्रु की दृष्टि से आसानी से छिपाया जा सकता था और उचित समय पर दुर्ग से बाहर निकलकर शत्रु पर अचानक ही धावा करके उसे परास्त किया जा सकता था।
रमथेड़ा दुर्ग की स्थापना करौली के यादवों द्वारा की गई। इसके निर्माण का प्रारम्भिक समय ज्ञात नहीं है। ई.1645 में करौली के महाराजा ने अपने पुत्र भोजपाल को रामथरा का दुर्ग एवं जागीर प्रदान की। वर्तमान में ठाकुर बृजेंद्रराज पाल इस दुर्ग के स्वामी हैं।
रमथेड़ा दुर्ग के चारों ओर मजबूत एवं चौड़ी दीवार का परकोटा बना हुआ है। दुर्ग के भीतर सुंदर बहुमंजिला महल बने हुए हैं जिनमें 18वीं -19वीं शताब्दी के भित्ति चित्र बने हुए हैं। लोक किम्वदन्ति है कि भगवान राम ने लंका जाते समय कुछ समय के लिये रामथरा में विश्राम किया। इसी से इसका नाम रामथरा पड़ा। इस तरह की किम्वदन्तियां भारत में विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं मिलता किंतु लोकविश्वास में ऐसी बातें सदियों तक अस्तित्व बनाए रहती हैं।
रमथेड़ा दुर्ग में भगवान गणेश का मंदिर एवं एक शिव मंदिर दर्शनीय हैं। शिव प्रतिमा सफेद संगमरमर से बनी हुई है तथा 18वीं शताब्दी के मूर्तिशिल्प का प्रतिनिधित्व करती है।
वर्तमान समय में रमथेड़ा दुर्ग में एक होटल चलता है जिसमें देश-विदेश के पर्यटक आकर ठहरते हैं। पर्यटकों के लिए दुर्ग के साथ-साथ इस क्षेत्र का परिवेश भी आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता है। दुर्ग के चारों ओर हरियाली, निर्जन वन एवं पथरीला क्षेत्र देखने योग्य है। पर्यटकों को इस क्षेत्र में आकर एक अलग ही अनुभव होता है।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता