युग निर्माता राव जोधा शीर्षक से लिखी गई पुस्तक में मारवाड़ राज्य के अद्भुत राजा के जीवन संघर्ष, त्याग, तपस्या एवं बलिदान की गाथा लिखी गई है।
भारत में चौदहवीं शताब्दी का अंत तैमूर लंग के भयानक आक्रमण से हुआ। यह आक्रमण उत्तर भारत के लिये ऐसा नासूर बन गया जिसमें से शताब्दियों तक भारत की आत्मा का रक्त रिसता रहा। तैमूर लंग द्वारा उत्तरी भारत में लाखों लोगों की हत्या कर दिये जाने, हिन्दू तीर्थों का विनाश कर दिये जाने, बड़ी संख्या में गायों को मार दिये जाने, भारत के श्रेष्ठ कर्मकारों को पकड़कर समरकंद ले जाये जाने एवं दिल्ली का समस्त वैभव धूल में मिला दिये जाने के कारण दिल्ली सल्तनत धधकते हुए शमशान में बदल गई।
तैमूर के लौट जाने के बाद ईस्वी 1947 तक ऐसी कोई भारतीय शक्ति उठ खड़ी न हुई जो दिल्ली को राजधानी बनाकर पूरे भारत पर शासन कर सके। विदेशी आक्रांता इसके अपवाद रहे।
दिल्ली की ऐसी जर्जर स्थिति के कारण पूरे भारत में अफरा-तफरी मच गई और बंगाल, गुजरात, मालवा, ताप्ती नदी घाटी में स्थित खानदेश, काश्मीर, जौनपुर, सिंध तथा मुल्तान के प्रांत दिल्ली की अधीनता त्यागकर स्वतंत्र राज्यों के रूप में स्थापित हो गये। दक्षिण में बहमनी राज्य तथा शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य का उदय हुआ।
पश्चिमी भारत में स्थित राजपूताना में इस समय तक प्रतिहारों, चौहानों और परमारों की कमर टूट चुकी थी किंतु मेवाड़ अपने उत्थान के चरम पर था। आम्बेर के कच्छवाहे तथा मारवाड़ के राठौड़़ यद्यपि विगत कुछ शताब्दियों से अस्तित्व में थे किंतु मेवाड़ की शक्ति के समक्ष वे कुछ भी न थे।
इसी राजनीतिक पृष्ठ-भूमि में पंद्रहवीं शताब्दी के दूसरे दशक में पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी प्रदेश में राठौड़ शासक राव जोधा का जन्म हुआ। उसके जन्म से ठीक चार साल पहले दिल्ली के तख्त पर हर तरह से निर्बल सैयद बैठे जिनके कमजोर हाथों में दिल्ली सल्तनत की नैया बुरी तरह हिचकोले खाने लगी थी तथा मेवाड़ के सिसोदियों को और अधिक मजबूत हो जाने का अवसर मिल गया था।
राव जोधा के जन्म के समय मेवाड़ की गद्दी पर मेवाड़ का प्रबलतम महाराणा कुम्भा शासन कर रहा था। जिस समय कुम्भा के संकेत पर राव जोधा के पिता रणमल की हत्या हुई तथा मारवाड़ राज्य को मेवाड़ में मिलाया गया, उस समय जोधा 22 वर्ष का नवयुवक था।
कुम्भा जैसे प्रबल राजा की दाढ़ में से मण्डोर जैसे साधनहीन राज्य को निकालना एक निराश्रित, पितृहीन एवं राज्य विहीन राजकुमार के लिये असम्भव सा कार्य था। जोधा ने इस असम्भव दिखने वाले कार्य को सम्भव करके दिखाया। उसने तथा उसके पुत्रों ने लगभग पूरे थार मरुस्थल को अपने घोड़ों की टापों से रौंदकर अपने लिये एक विशाल राज्य की स्थापना की।
जोधा के वंशजों ने भारत में दूर-दूर तक अपने राज्य स्थापित कर लिये। इतना ही नहीं मारवाड़ राज्य, भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। इस अद्भुत राजा ने भारत के इतिहास को ऐसे स्वर्णिम पृष्ठ प्रदान किये जो अन्य राजाओं के वश की बात नहीं थी।
यह पुस्तक उसी महान राजा ‘राव जोधा’ को एक विनम्र श्रद्धांजलि है जिसने साढ़े तीन दशकों तक अपने शत्रुओं से लोहा लिया तथा देशी एवं विदेशी शक्तियों को अपने अधीन करके हिन्दू संस्कृति, धर्म और राष्ट्र की रक्षा की।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता