जिला मुख्यालय नागौर से 25 किलोमीटर दक्षिण में कई सौ वर्ष पुराना मून्दियाड़ गांव बसा हुआ है। मूंदड़ा महेश्वरियों द्वारा बसाये जाने से यह मून्दियाड़ कहलाता है। इस गांव में कई सौ वर्ष पुराना ब्रह्माणी माता का मंदिर है जिसकी एक दीवार पर वि.सं.1535 का एक शिलालेख उत्कीर्ण है। अब यह मून्दड़ों की माता का मंदिर कहलाता है। मंदिर लाल पत्थरों से निर्मित है जिन पर उत्कृष्ट शिल्प किया गया है।
मंदिर के पास लाल पत्थर की एक खण्डित मूर्ति विशेष रूप से दर्शनीय है। यह मूर्ति ब्रह्माजी की है। गांव के उत्तर-दक्षिण में स्थित सरोवर के पश्चिम में स्थित ब्रह्माणी माता का मंदिर अपने मूल स्वरूप में ब्रह्माजी का रहा होगा किंतु मध्यकाल में मुसलमान आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिये जाने के बाद यहाँ ब्रह्माजी की पूजा बन्द हो गई और बाद में स्थापित ब्रह्माणी माता, मून्दड़ों की माता के नाम से पूजी जाने लगी।
इस मंदिर में ब्रह्माणी माता की एक नवीन मूर्ति वि.सं.1925 में स्थापित की गई। सरोवर के पूर्वी घाट पर मध्यकाल के जागीरदारों एवं चारणों आदि की कलात्मक छतरियां बनी हुई हैं। एक विशाल छतरी में 300 वर्ष पुराना शिलालेख लगा हुआ है जिसकी तिथि पढ़ने में नहीं आती।
इस छतरी के मण्डप के भीतरी भाग में श्रीरामलीला एवं कृष्णलीला प्रसंगों को दिखाया गया है। छतरी के स्तंभ कलात्मक हैं। उन पर हाथी, मयूर तथा कपोत आदि पशु-पक्षी उकेरे गये हैं।
मून्दियाड़ गांव में स्थित गणेशजी का मंदिर बड़ा प्रसिद्ध है। यहाँ स्थापित गणेशजी की प्रतिमा रणथम्भौर से लाई गई थी। यहाँ पिछले तीन सौ वर्षों से प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है। यह गांव चम्पावत राठौड़ों तथा मुसलमानों के अधिकार में रहा तथा अन्त में चारणों को जागीर के रूप में प्राप्त हुआ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय यह चारणों के ही अधिकार में था। जब अप्पाजी सिंधिया ने नागौर पर आक्रमण किया तब मूंदियाड़ के चारण जागीरदार करणीदान ने अप्पाजी का साथ दिया था। गांव में मध्यकाल का बना हुआ एक छोटा दुर्ग भी दर्शनीय है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



