रियासती काल में फलौदी दुर्ग मारवाड़ राज्य के अंतर्गत स्थित था। वर्तमान समय में यह जोधपुर संभाग के फलौदी जिले में स्थित है।
संस्कृत शिलालेखों में फलौदी नगर का प्राचीन नाम फलवर्द्धिका तथा विजयपुर मिलता है। फलौदी नगर जोधपुर के शासक राव सूजा के पुत्र नरा ने बसाया। ई.1547 में जोधपुर के शासक राव मालदेव ने छल करके डूंगरसी से फलौदी छीन लिया और पन्द्रह वर्ष यहाँ राज्य किया। इसके बाद फलौदी दुर्ग जैसलमेर के रावल हरराज भाटी के पुत्र भाखरसी के अधिकार में चला गया।
मुगल बादशाह अकबर ने ई.1578 में फलौदी दुर्ग बीकानेर के राजा रामसिंह को सौंप दिया। ई.1615 में जहांगीर ने इसे जोधपुर के राजा सूरसिंह को दे दिया जिसने सुप्रसिद्ध इतिहासकार मुहता नैणसी के पिता मुहणौत जयमल को यहाँ का हाकिम नियुक्त किया।
फलौदी के रानीसर तालाब के किनारे पर लगे एक कीर्तिस्तम्भ पर वि.सं.1589 (ई.1532) का एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें राठौड़ वंशीय महाराजा सूरजमल (राव सूजा) का नाम दिया गया है।
फलौदी दुर्ग से पाँच शिलालेख प्राप्त हुए हैं। पहला गढ़ के भीतरी द्वार पर जोधपुर के राव सूजा के पुत्र नरा (नरसिंह देव) के समय का ई.1475 का है जिसमें इस पोल के निर्माण का उल्लेख किया गया है। दूसरा लेख गढ़ के बाहरी द्वार के एक स्तम्भ पर खुदा हुआ है जो ई.1516 का है। इसमें राठौड़ वंशीय महाराज नरसिंह के पुत्र महाराव हम्मीर द्वारा बनवाये गए उपर्युक्त द्वार के स्तम्भों के जीर्णोद्धार का उल्लेख है।
फलौदी दुर्ग की बाहरी दीवार में दो लेख हैं। इनमें से एक बीकानेर नरेश रायसिंह के काल का ई.1594 का तथा दूसरा जोधपुर नरेश जसवंतसिंह और महाराज कुमार पृथ्वीसिंह के समय का ई.1658 का है।
पांचवा लेख भी गढ़ की बाहरी दीवार पर उत्कीर्ण है जो जोधपुर नरेश विजयसिंह और कुंवर फतहसिंह के काल का ई.1753 का है। इसमें लिखा है कि जोगीदास ने इस गढ़ पर कब्जा कर लिया था तब जोधपुर नरेश ने फौज भेजकर गढ़ में सुरंग लगाकर कोट तोड़ा और जोगीदास को मार डाला।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता