आबू पर्वत की तलहटी में बनास नदी के किनारे परमारों की प्राचीन राजधानी चन्द्रावती के खण्डहर स्थित हैं जो आबू रोड से चार मील दक्षिण में हैं। इन्हीं खण्डहरों में चन्द्रावती दुर्ग के भी खण्डहर हैं। इस प्रकार चन्द्रावती दुर्ग अब अस्तित्व में नहीं है।
चन्द्रावती नगरी 11-12वीं सदी ईस्वी में बहुत समृद्ध थी। जैन मुनि सौभाग्यनंदि सूरि द्वारा ई.1515 में रचित ग्रंथ ‘विमल चरित्र’ के अनुसार इस क्षेत्र में परमारों के 1800 गांव थे। चन्द्रावती, धार नगरी से भी पहले की बसी हुई थी और परमारों के उत्कर्ष काल में कुछ समय के लिए पश्चिमी भारत की राजधानी रही।
चन्द्रवती दुर्ग एवं नगर सुदृढ़ परकोटे से सुरक्षित था। पण्डित लावण्य समय ने अपने ग्रंथ ‘विमल प्रबंध’ में लिखा है कि नगर में उत्तम कारीगरी किए गए भवन थे जो सात मंजिले थे। नगर में स्थान-स्थान पर कुएं, तालाब एवं बावड़ियां स्थित थीं। बावड़ियां संगमरमर पत्थर से बनी थीं। नगर में परदेशी व्यापारी भी आते थे। डॉ. भण्डारकर ने चंद्रावती तथा उसके निकट 360 जैन मंदिरों के अस्तित्व की संभावना व्यक्त की थी।
चंद्रावती के परमार शासकों में यशोधवल एवं धारावर्ष प्रतापी राजा हुए। धारवर्ष को धरणीशाह भी कहा जाता है। उसने ई.1163 से 1219 तक चंद्रावती क्षेत्र पर शासन किया। ई.1179 में उसने आबू पर्वत के नीचे हुई लड़ाई में मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी की सेना को परास्त किया। वह आरम्भ में स्वतंत्र शासक था किंतु बाद में उसने अजमेर के चौहानों की अधीनता स्वीकार कर ली एवं अपनी पुत्री ‘बुद्धिमती ऐच्छिनी’ का विवाह पृथ्वीराज चौहान से कर दिया। संभवतः पृथ्वीराज के पतन के बाद धारावर्ष, गुजरात के चौलुक्यों के अधीन हो गया।
ताजुल मासिर के अनुसार ई.1196 में दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने जब गुजरात के सोलंकी राज्य पर आक्रमण किया तब आबू पर्वत की तलहटी में एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें धारावर्ष गुजरात की सेना के दो मुख्य सेनापतियों में से एक था। यही धारावर्ष बाद में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के विरुद्ध भी लड़ा।
आबू पर्वत पर पाटनारायण के मंदिर में वि.सं. 1344 (ई.1288) का एक शिलालेख लगा है जिसमें कहा गया है कि वह एक बाण से एक साथ तीन भैंसों को बींध डालता था- एक बाण निहतं त्रिलुलायं यं निरीक्ष्य कुरूयोधसदृक्षं।
ई.1311 तक परमार शासक आबू क्षेत्र पर शासन करते रहे। इसके बाद राव लूम्बा ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इल्तुतमिश द्वारा चन्द्रावती दुर्ग एवं नगरी को भारी नुक्सान पहुंचाया गया। गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह (ई.1405-42) ने चित्तौड़ विजय के बाद गुजरात लौटते समय इस दुर्ग एवं नगरी को लगभग नष्ट कर दिया।
र्कनल टॉड ने उन्नीसवी शताब्दी के आरम्भ में इस नगरी में बीस भुजाओं वाले शिव की एक प्रतिमा देखी थी। साथ ही 2 फुट एवं उससे ऊँची 138 प्रतिमाएं इधर-उधर पड़ी हुई देखी थीं जिन्हें किसी सेना ने अपने स्थान से उठाकर फैंक दिया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता