खाटू का प्राचीन नाम षट्कप है। जब शक शासक भारत में आये थे, तब वे अपने साथ दो नवीन प्रकार के कूप (कुएं) भारत में लाये थे, जिन्हें शकन्धु (बावड़ी) तथा कर्कन्ध (रहट) कहा जाता था। अब इन्हें बावड़ी तथा रहट कहा जाता है। खाटू में 6 बावड़ियां बनवाई गई थीं जिन्हें षट्कप वाड़ी कहा जाता था।
पृथ्वीराज रासो में खाटू को खट्टवन कहा गया है। कान्हड़दे प्रबन्ध में इसे षटूकड़ी वाड़ी कहा गया है। चौहान काल में यह एक समृद्ध स्थान था। प्राचीन खाटू नष्ट हो गया है तथा उसके स्थान पर अब खाटू नाम के दो गांव हैं जिन्हें बड़ी खाटू (खाटू कलां) तथा छोटी खाटू (खाटू खुर्द) कहा जाता है।
वर्तमान में बड़ी खाटू का कस्बा छोटा है जबकि छोटी खाटू का कस्बा बड़ा है। दोनों के बीच में दो किलोमीटर की दूरी हे। छोटी खाटू के दक्षिण में प्राचीन खाटू के अवशेष भूमि में दबे हुए हैं। ई.1967 के आसपास की बाढ़ में प्राचीन अवशेष भूमि से बाहर निकल आये थे।
इस सामग्री में पत्थर के बड़े-बड़े कोल्हू भी थे जो गन्ना पेरने के काम आते थे। अब इस क्षेत्र में गन्ना बिल्कुल नहीं होता। छोटी खाटू की पहाड़ी पर पृथ्वीराज चौहान द्वारा निर्मित दुर्ग स्थित है जिसमें रनिवास, सरोवर तथा 500 फुट गहरा पहाड़ी कूप स्थित है।
नाथों के मठ से प्राचीन मूर्तियों का बड़ा खजाना प्राप्त हुआ है। ये मूर्तियां मठ बनने से पहले किसी अन्य स्थान पर थीं। वह स्थान पृथ्वीराज चौहान के पतन के पश्चात् मुस्लिम शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया। बाद में राठौड़ काल में उस स्थान की मूर्तियों को नाथों के मठ में लगाया गया होगा।
मठ में स्थित गणेशजी की मूर्ति कम से कम दो हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। मठ में बौद्ध, जैन, शैव शाक्त तथा वैष्णव धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां हैं। इनमें बौद्ध भिक्षुक, सात अश्वों के रथ पर सवार भगवान भुवन भास्कर, एक हाथ में सुरापात्र तथा दूसरे में धनमंजूषा लिये हुए कुबेर, नागकन्यायें, मत्स्यबालायें, विभिन्न मुद्राओं में कामक्रीड़ारत नर-नारी तथा अप्सरायें आदि देखते ही बनती हैं।
गांव में ऊंचे पठार पर स्थित प्राचीन जागीरदार की हवेली भी अनेक प्राचीन मूर्तियां मिली हैं जो दीवारों में उल्टी-सीधी चुनी हुई हैं। ये मूर्तियां विभिन्न देवालयों से लाई गई प्रतीत होती हैं।
यहाँ से फूल बावड़ी नामक एक वापिका मिली है जो गुर्जर प्रतिहार कालीन है। बावड़ी में नीचे तक जाने के लिये सुन्दर सीढ़ियां एवं द्वार बने हुए हैं। बावड़ी में अनेक देवमूर्तियां तथा अन्य आकृतियां लगी हैं। कुछ आकृतियों का ऊपरी भाग नर अथवा नारी का है जबकि निचला भाग मत्स्य अथवा नाग का बना हुआ है।
यह बावड़ी जमीन में दबी हुई थी तथा अंग्रेजों के शासनकाल में खुदाई में प्राप्त हुई थी। गांव के बाहर सतियों की मूर्तियां लगी हैं। ब्राह्मी लिपि से युक्त कुछ लेख भी इन पर अंकित हैं। ये लेख चौथी या पांचवीं शताब्दी के हैं तथा गुप्तकालीन अनुमानित होते हैं।
गांव के उत्तरी भाग में स्थित खांडिया नामक पहाड़ी के कारण ‘सियाले खाटू भली’ की कहावत प्राचलित हुई। इस पहाड़ी की तलहटी में सन्त निर्भयराम की बगीची है जिन्होंने ई.1872 में जीवित समाधि ली। कहते हैं समाधि लेने के एक वर्ष पश्चात् हरिद्वार में हर की पेढ़ी पर बाबाजी ने छोटी खाटू के तीर्थयात्रियों को दर्शन दिये।
ई.1958 में विख्यात उपन्यासकार गुरुदत्त ने छोटी खाटू में हिन्दी पुस्तकालय का उद्घाटन किया। हजारी प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, जैनेन्द्र कुमार जैन, कन्हैयालाल सेठिया आदि सुप्रसिद्ध साहित्यकार इस पुस्तकालय की गतिविधियों से जुड़े रहे।
यहाँ से मध्यकालीन हिन्दू शासकों तथा मुस्लिम शासकों के अनेक शिलालेख प्राप्त हुए हैं। अधिकांश मुस्लिम शिलालेख मस्जिदें बनवाने के सम्बन्ध में हैं।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



