नागौर जिले में स्थित खरनाल गांव एक हजार साल पहले खोजा जाट ने बसाया। पुराना गांव वर्तमान गांव के दक्षिण में आधा किलोमीटर दूर था वहाँ चिकनी मिट्टी थी जो कम वर्षा होने तथा हिरणों के उछल-कूद मचाने से उड़ती थी। अतः पुराने गांव से हटकर यह गांव बसाया गया।
खरनाल गांव लोकदेवता वीर तेजाजी का जन्म स्थल है। जायल के चौहान शासक गूंदल राव खींची की 5वीं पीढ़ी के वंशज धवल खींची खरनाल आकर बसे। वीर तेजा को इन्हीं धवल खींची का पुत्र बताया जाता है। धवल खींची को धोलिया वीर भी कहते हैं।
गांव में स्थित भाटों की बहियां इस बात की पुष्टि करती है कि वीर तेजा का जन्म खरनाल गांव में गून्दल राव खींची की छठी पीढ़ी में हुआ। वीर तेजा का जन्म वि.सं. 1130 की माह सुदि 14 को तथा निर्वाण विक्रम 1160 भादवा सुदि 10 को बताया जाता है।
वीर तेजाजी ने गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए। लोकाख्यानों के अनुसार डाकुओं से गायों की रक्षा करने के बाद वीर तेजाजी वचन पालन के लिए एक नाग के पास पहुंचे जिसने इनकी जीभ पर डस लिया। इसके कारण तेजाजी के प्राण गए।
यद्यपि खरनाल के धोलिया जाट स्वयं को धवलजी खींची की संतान बताते हैं किन्तु अधिकांश इतिहासकार धोलिया जाटों को नागों की धोलिया (श्वेत) शाखा से मानते हैं।
खरनाल गांव से लगभग आधा किलोमीटर दूर तक बड़ा सरोवर है जिसके पास तेजाजी की बहिन बुंगरी बाई (बुंगल देवी) का मंदिर है। कुछ लोग तेजाजी की बहन का नाम राजल बाई बताते हैं। गांव में तेजाजी का मंदिर है। यह गांव नागौरी नस्ल के बैलों के लिए प्रसिद्ध है।
वीर तेजाजी राजस्थान के सर्वमान्य एवं बहुविख्यात लोक देवता हैं। गांव-गांव में इनके गीत गाए जाते हैं तथा लोकाख्यानों का वाचन किया जाता है।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



