Saturday, October 12, 2024
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कांकवाड़ी दुर्ग

मुगल इतिहास के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण कांकवाड़ी दुर्ग राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का के सघन जंगलों में स्थित है। सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में औंगजेब ने इस दुर्ग में अपने बड़े भाई तथा मुगलिया तख्त के असली वारिस शहजादा दारा शिकोह को बंदी बनाकर रखा था। इस दुर्ग तक पहुंचने के लिये अक्टूबर से जुलाई महा में वन विभाग के कार्यालय से अनुमति लेकर जीप से जाना होता है।

कांकवाड़ी दुर्ग के निर्माता

सरिस्का के सघन जंगलों में स्थित कांकवाड़ी दुर्ग का निर्माण जयपुर नरेश मिर्जाराजा जयसिंह (प्रथम) (ई.1611-1667) ने अकाल राहत कार्य के रूप में करवाया था।

कांकवाड़ी दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था

दुर्ग की श्रेणी

यह ऐरण, गिरि, सैन्य तथा पारिघ श्रेणी का दुर्ग है।

दुर्ग का मार्ग

कांकवाड़ी दुर्ग के लिये सरिस्का से टहला जाते समय काली घाटी से कच्चा रास्ता मिलता है। इस कच्चे रास्ते के निकट ही दुर्ग में प्रवेश करने के लिये पहला द्वार दिखाई देता है। धोंक, सालर, बांस तथा अन्य प्रजाति के विशाल वृक्षों के बीच लगभग 15 किलोमीटर तक पहाड़ी मार्ग पर चलने पर दुर्ग का परकोटा दिखाई देता है। यह दुर्ग एक संकरी पहाड़ी पर स्थित है।

कंगूरे एवं बुर्ज

पूरी प्राचीर पर कंगूरे बने हुए हैं जिनमें बंदूक चलाने के लिये छिद्र भी हैं। बीच-बीच में ऊँचे बुर्ज बने हुए हैं। यहाँ से दक्षिण दिशा की तरफ चलने पर एक सामान्य दरवाजा आता है जबकि उत्तर दिशा की तरफ चलने पर एक सुरंगनुमा गलियारे से जुड़ा हुआ दरवाजा आता है जो एक गोलाकार बुर्ज से भी जुड़ा हुआ है।

कांकवाड़ी दुर्ग का स्थापत्य

इस गलियारे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दरवाजे बने हुए हैं। उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ के दरवाजों से दुर्ग के भीतर पहुंचने पर एक चौक आता है। यहाँ एक और दरवाजा बना हुआ है। इस दरवाजे के सामने चार स्थूल स्तम्भों पर अधारित चार मजबूत कोटड़ियां हैं।

कोटड़ियों की बगल से ऊपर की ओर सीढ़ियां चढ़कर बाईं तरफ पुनः एक दरवाजा आता है जहाँ एक छोटे चौक में पानी का टांका बना हुआ है। यहाँ से बीस सीढ़ियां चढ़ने के बाद पांच दरवाजे की बारादरी आती है जिसमें कड़े का चिकना प्लास्टर है और आराइश पर तरह-तरह की फूल-पत्तियां चित्रित हैं। ये चित्रांकन जहांगीर काल के बताये जाते हैं।

कांकवाड़ी दुर्ग की सबसे ऊपरी मंजिल पर दोनों तरफ तीन-तीन दरवाजों वाले बरामदे बने हुए हैं। एक बरामदे में इन्द्रनील, सुनहरी, कत्थई और रजत कलम से फूल-पत्तियां और बेल-बूटे चित्रित हैं। दूसरा बरामदा साधारण बनावट का है। इसके साथ जुड़े पिछले हिस्से में एक पुरानी हवेली जैसी इमारत, पानी का टांका और छोटा मंदिर है। अनुमान है कि यह जनाना महल के रूप में काम आता होगा।

-डॉ. मोहन लाल गुप्ता

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