यद्यपि मुगल बादशाह का दरबार हर समय षड्यंत्रों से भरा हुआ रहता था और जयसिंह के विरुद्ध भी नित नये षड्यंत्र रचे जाते थे किंतु तब भी जयसिंह मुगलिया राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता था, इसलिये राजपूत रियासतों पर उसका विशेष प्रभाव था। जयसिंह ने अपनी राजनैतिक गतिविधियों को सांभर झील से लेकर यमुना के किनारे आगरा और मथुरा तक तथा दक्षिण में नर्मदा के किनारे तक सीमित कर रखा था। इस पूरे क्षेत्र में या तो उसका शासन था, अथवा उसकी सूबेदारी थी अथवा उसके प्रभाव वाले राज्य, जयपुर राज्य के उपनिवेश की तरह स्थित थे।
बादशाह तथा राजपूत राजाओं के बीच कड़ी
जोधपुर, बूंदी, कोटा और मेवाड़ आदि राजपूत रियासतों के शासक प्रायः जयसिंह के माध्यम से बादशाह को पत्र भिजवाया करते थे। बादशाह भी इन पत्रों के उत्तर जयसिंह के माध्यम से राजपूत राजाओं को भिजवाया करता था। बादशाह के आदेश थे कि जयसिंह की अनुशंसा के बिना, राजपूत राज्यों के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं लिया जायेगा।
भरतपुर के जाटों से मधुर सम्बन्ध
चूड़ामन तथा मोहकमसिंह ने दिल्ली, आगरा तथा जयपुर की नाक में दम कर रखा था किंतु जब जयसिंह ने अपने हाथों से भरतपुर राज्य की स्थापना कर दी तो जाटों से उसके सम्बन्ध जीवन भर के लिये मधुर हो गये। बदनसिंह जीवन भर स्वयं को जयसिंह का जागीरदार मानता रहा। राजा बनने के बाद बदनसिंह प्रति वर्ष राजा जयसिंह से मिलने उसकी राजधानी आता था जहाँ उसका, राजाओं की तरह स्वागत होता था। वह जिस स्थान पर ठहरता था, उस स्थान को बदनपुरा कहा जाने लगा। 1736 ई. में जब पेशवा बाजीराव जयपुर आया तो पेशवा के सम्मान में जयपुर में एक भव्य दरबार का आयोजन किया। इस दरबार में भरतपुर रियासत के राजकुमार सूरजमल को भेजा गया। इस दौरान सूरजमल का परिचय पेशवा बाजीराव से करवाया गया।
राजपूत राज्यों से वैवाहिक सम्बन्ध
यद्यपि उस काल में वैवाहिक सम्बन्धों का राजनैतिक सम्बन्धों पर निश्चित प्रभाव नहीं था, तथापि ये सम्बन्ध, यदा-कदा राजनैतिक घटनाओं में प्रमुख भूमिका निभाते थे। जयसिंह का पहला विवाह श्योपुर के गौड़ राजा उत्तमराम के भतीजे उदितसिंह की पुत्री से हुआ था। दूसरा विवाह मेवाड़ के महाराणा की पुत्री चन्द्र कुंवरि से तथा तीसरा विवाह अजीतसिंह की पुत्री सूरज कुंवरि से हुआ। बूंदी का राजा दलेलसिंह और जोधपुर का राजा अभयसिंह, सवाई जयसिंह के जामाता थे।
रामपुरा जागीर पर अधिकार
जयसिंह ने अपनी उदयपुरी रानी के पेट से उत्पन्न राजकुमार माधोसिंह के नाम पर मेवाड़ के महाराणा से रामपुरा की जागीर इस शर्त पर प्राप्त कर ली कि रामसिंह जीवन भर मेवाड़ के महाराणा का जागीरदार बनकर रहेगा। मेवाड़ के महाराणा ने जयसिंह का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जयसिंह के आदमियों ने रामपुरा के जागीरदार संग्रामसिंह से रामपुरा छीन लिया। जब माधोसिंह जयपुर का राजा हुआ तो उसने रामपुरा को अपने राज्य में मिला लिया।