कर्नल जेम्स टॉड का जन्म 20 मार्च 1782 को इंगलैण्ड के इंग्लिस्टन नामक स्थान पर हुआ था। उसके किसी पूर्वज ने स्कॉटलैण्ड के राजा रॉबर्ट दी ब्रूस के बच्चों को इंगलैण्ड के राजा की कैद से छुड़ाया था। इस कारण टॉड परिवार को नाइटबैरोनेट की उपाधि तथ लोमड़ी का चिह्न धारण करने का अधिकार मिला हुआ था।
जब जेम्स टॉड 17 वर्ष का हुआ तो ई.1799 में वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी में सैन्य अधिकारी के रूप में भर्ती हो गया। उसकी नियुक्ति भारत के बंगाल प्रांत में की गई। जेम्स टॉड लगभग दो साल तक बंगाल में काम करता रहा जहाँ उसे नौसैनिक के रूप में काम करने का अनुभव प्राप्त हुआ।
अगले ही वर्ष वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की पैदल सेना में लैफ्टीनेंट के पद पर नियुक्त किया गया। वहाँ से उसकी नियुक्ति पहले कलकत्ता, फिर बंगाल तथा फिर दिल्ली में हुई। ई.1801 में उसे दिल्ली के पास एक पुरानी नहर की पैमाइश करने का काम दिया गया।
ई.1805 में मिस्टर ग्रीम मर्सर को कम्पनी सरकार की तरफ से दौलतराव सिंधिया के दरबार में भेजा गया। कर्नल टॉड भी भारतीय राजाओं के ठाठ बाट देखने की लालसा में मर्सर के साथ हो लिया। यह, वह समय था जब यूरोपीय अधिकारियों को राजपूताना एवं उसके आसपास के प्रदेश के भूगोल का बहुत ही कम ज्ञान था।
उन्होंने जो नक्शे बना रखे थे उनमें भी केवल अनुमान से नाम लिखे गए थे। उन नक्शों की स्थिति यह थी कि उनमें चित्तौड़गढ़ को उदयपुर के पश्चिम में दर्शाया गया था जो कि वास्तव में पूर्व में है। अंग्रेजों का अनुमान था कि राजपूताना की नदियां दक्षिण की तरफ बहती हुई नर्मदा से मिल जाती हैं। इस भूल को तो हिन्दुस्तान के भूगोल के प्रथम शोधकर्ता रेलन साहब ने शुद्ध किया किंतु शेष अपूर्णताएं ज्यों की त्यों बनी रहीं।
जिस समय मर्सर दिल्ली से चला उस समय दौलतराव सिंधिया उदयपुर में था। इसलिए मर्सर को दिल्ली से आगरा तथा जयपुर होते हुए उदयपुर पहुँचना था। ई.1791 में कम्पनी सरकार का गवर्नर, कर्नल पामर जिस मार्ग से उदयपुर गया था, उस मार्ग का एक नक्शा डॉक्टर हंटर ने बनाया था। मर्सर के पास वही नक्शा था।
जब मर्सर के साथ जेम्स टॉड को भी उदयपुर जाने की अनुमति मिली तो टॉड ने उस नक्शे की जांच करने का मन बनाया। जिस दिन वह दिल्ली से रवाना हुआ, उसी दिन से वह अपने मार्ग को नाप-नाप कर नक्शे में अंकित करने लगा। जून 1806 में जेम्स टॉड, मर्सर के साथ उदयपुर पहुँचा।
जब दिल्ली से उदयपुर तक का नक्शा तैयार हो गया तो टॉड की इच्छा हुई कि वह उदयपुर के आसपास के क्षेत्र को भी देखे और नापे। सिंधिया की सेना उदयपुर से चलकर चित्तौड़गढ़ के मार्ग से होती हुई मालवा पार करके बुंदेलखण्ड पहुंची। टॉड भी इसी सेना के साथ लग लिया।
इस पूरी यात्रा में जेम्स टॉड न केवल नक्शे तैयार करता रहा, अपितु उसने मार्ग में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान का इतिहास, जनश्रुति तथा शिलालेख आदि का संग्रह करना भी आरम्भ कर दिया। इसके बाद तो टॉड ने इन कामों को करना ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
वह अपनी प्रत्येक यात्रा में यही करता रहता था। कुछ ही वर्षों में टॉड के पास राजपूताने के इतिहास की विपुल सामग्री एकत्रित हो गई जिसका उपायोग उसने ‘एनल्स एण्ड एण्टिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ नामक पुस्तक लिखने में किया। आगे चलकर इसी पुस्तक के नाम पर इस प्रदेश का नाम राजस्थान पड़ा। इस प्रकार राजस्थान का नामकरण करने का श्रेय कर्नल टॉड को जाता है। इस किताब के प्रकाशन से पहले इस क्षेत्र को राजपूताना कहा जाता था।
जब दौलतराव सिंधिया की सेना ने राहटगढ़ पर घेरा डाला तब टॉड अपने थोड़े से सिपाहियों को लेकर बेतवा नदी के किनारों के निकट से होता हुआ चंबल तक के अज्ञात स्थानों तक पहुँचा तथा वहाँ से पश्चिम की ओर चलकर कोटा पहुँच गया।
टॉड ने चंबल, कालीसिंध, पार्वती, बनास आदि मुख्य नदियों के उद्गम, प्रवाह क्षेत्र तथा उनके संगम स्थलों का पता लगाया। उन दिनों इस पूरे क्षेत्र में लूटमार का वातावरण था। ठग, पिण्डारी, डाकू तथा सैनिक, राहगीरों को लूटते फिरते थे। टॉड भी कई बार लूटा गया। अनेक बार उसे अपने डेरे छोड़कर रात्रि में ही भाग जाना पड़ा।
जेम्स टॉड कोटा से चलकर भरतपुर, कठूंमर और सेंतरी होता हुआ जयपुर पहुँचा। वहाँ से वह टोंक, इन्दरगढ़, गूगल, छपरा, राघूगढ़, अरोन, कुरवा और भोरासा के मार्ग से सागर जा पहुँचा तथा राहटगढ़ आकर सिंधिया की सेना से मिल गया।
टॉड ने इस पूरे मार्ग के नक्शे तैयार कर लिए। जब सिंधिया ग्वालियर पहुँचा तब भी टॉड उसके पीछे चलता रहा और नक्शे बनाता रहा। इस बीच वह लेफ्टीनेंट से कैप्टेन बनाया जा चुका था। ई.1810 में कैप्टेन जेम्स टॉड ने नक्शे बनाने वाले सैनिकों के दो दल तैयार किए।
एक दल को सिंध की ओर तथा दूसरे दल को सतलुज नदी के दक्षिणी रेगिस्तान में भेजा गया। पहला दल शेख अब्दुल बरकत के नेतृत्व में उदयपुर से गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ, लखपत और सिंध हैदराबाद होते हुए, पश्चिम की ओर सिंधु नदी पार करके ठठ्ठा में पहुँचा तथा नदी के किनारे-किनारे सीवान् तक चला गया।
यहाँ से यह दल सिंधु नदी से उतर कर बाएं किनारे होते हुए खैरपुर पहुँचा। वहाँ से बेखर के टापू में होकर उमरसुमरा के रेगिस्तान से जैसलमेर, मारवाड़ और जयपुर के क्षेत्रों को नापता हुआ नरवर में टॉड साहब से आ मिला।
दूसरा दल मदारीलाल नामक सैन्य-अधिकारी के नेतृत्व में गठित किया गया था। यह दल सतलज नदी के दक्षिणी रेतीले प्रदेश तथा लगभग सम्पूर्ण राजपूताना के राज्यों में भेजा गया। मदारीलाल अत्यंत योग्य, विश्वसनीय एवं परिश्रमी व्यक्ति था। इस कारण जेम्स टॉड मदारीलाल द्वारा किए गए कार्य की जांच नहीं करता था किंतु अन्य आदमियों द्वारा किए गए कार्य पर विश्वास नहीं करता था और उनके द्वारा किए गए कार्य की स्वयं जांच करता था।
कैप्टेन टॉड जिस क्षेत्र से भी निकलता, उस क्षेत्र की जानकारी रखने वाले लोगों को अपने पास बुला लेता और उनसे पूछ-पूछ कर जानकारियां लिखता रहता था। इस कारण जब वह अपने घोड़े पर बैठकर यात्रा कर रहा होता था, तब उसके दोनों ओर तथा आगे-पीछे उन लोगों के घोड़े चला करते थे जो टॉड को राजपूताने के राज्यों के इतिहास की बातें बताते रहते थे।
जेम्स टॉड इतना योग्य व्यक्ति था कि स्वयं अपने द्वारा किए गए कार्य की सत्यता की जांच करने के लिए भी उसने एक तरीका ढूंढ निकाला था। वह जिस किसी भी क्षेत्र में जाता उस क्षेत्र में डाक लाने – ले जाने वाले लोगों से अवश्य सम्पर्क करता तथा अपने काम की सत्यता जांचने के लिए उन डाकियों के विवरण को काम में लेता।
ई.1813 में कैप्टेन टॉड को कर्नल बनाया गया। ई.1815 तक 10 वर्ष के असाधारण परिश्रम में कर्नल टॉड के पास नक्शों की 11 जिल्दें तैयार हो गईं। ई.1815 में उसने अपने नक्शों की एक प्रति गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्ज को भेंट की। हेस्टिंग्ज ने उसके महान् परिश्रम की बड़ी प्रशंसा की तथा नक्शों की एक नकल पर अपने हस्ताक्षर करके टॉड को इस आशय के साथ सौंप दी कि यदि भविष्य में इन नक्शों पर कोई अन्य व्यक्ति स्वयं के द्वारा निर्मित होने का दावा प्रस्तुत करे तो उसके खंडन के प्रमाण के रूप में हेस्टिंग्ज के हस्ताक्षर दिखा दिए जाएं।
जब राजपूताना रियासतों के ये नक्शे यूरोप पहुँचे तो यूरोप में रहस्य और रोमांच की धूम मच गई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के जो अंग्रेज अधिकारी भारत में नौकरी करके इंगलैण्ड लौटते थे, वे यूरोप के लोगों को भारतीय रियासतों की जानकारी रहस्यमयी एवं रोमांचक कथाओं के रूप में देते थे किंतु जब जेम्स टॉड द्वारा बनाए गए ये नक्शे इंगलैण्ड पहुंचे तो यूरोप वासियों को राजपूताने की रहस्यमयी रियासतों की वास्तविक जानकारी हुई। बाद में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पेशवा के राज्य का बंटवारा किया तथा राजपूताने में पिण्डारियों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया, तब इन नक्शों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की बड़ी सहायता की।
- डॉ. मोहनलाल गुप्ता