अणदाराम की तुच्छ हवेली में विचरण करने वाली उच्छृंखल वडारण गुलाब इस समय ऐसी दिख रही थी मानो मयूरगढ़ में वन मयूरी उतर आई हो। महाराजा ने आज उससे भजन सुनने के लिये ही यह विशेष दरबार आयोजित किया था जिसमें उनके विश्वस्त मुत्सद्दी, खानसामा, सरदार, सामंत और राजपरिवार के सभी छोटे.बड़े सदस्यों को उपस्थित रहने के लिये कहा गया था।
दो दिन भी नहीं बीते होंगे कि महाराजा के कारभारी, श्रेष्ठिराज अणदाराम भूरट की हवेली के द्वार पर दिखाई दिये। श्रेष्ठि अणदाराम को उस दिन के सब समाचार मिल चुके थे। तब से वह इस असमंजस में था कि किस तरह श्री जी के आदेश की पालना हो किंतु श्रेष्ठिराज की हिम्मत गढ़ पर जाने की नहीं हो रही थी।
पिछली बार जब वह गढ़ पर गया था तो रस्यिों से बांधकर ले जाया गया था किंतु तब बहुत से लोग उसके साथ थे। इस बार यदि वह गढ़ पर अकेला गया तो उसके साथ जाने क्या हो! आज महाराजा के कारभारियों ने स्वयं हवेली पर आकर श्रेष्ठिराज की समस्या का समाधान कर दिया। श्रेष्ठिराज ने राजकीय आदेशानुसार अपनी दासी गुलाबराय को राजा के कारभारियों के साथ भेज दिया।
इस तरह अणदाराम की तुच्छ हवेली में विचरण करने वाली उच्छृंखल वन-मयूरी, जोधाणे के प्रतापी मयूरगढ़ में प्रविष्ठ हुई। महाराजा ने आज उससे भजन सुनने के लिये ही यह विशेष दरबार आयोजित किया था जिसमें उनके विश्वस्त मुत्सद्दी, खानसामा, सरदार, सामंत और राजपरिवार के सभी छोटे-बड़े सदस्यों को उपस्थित रहने के लिये कहा गया था।
आज पूर्णिमा तो नहीं थी फिर भी आकाश में पूर्णिमा जैसा ही प्रकाश था क्योंकि पूर्णिमा को गये आज दो दिन ही बीते थे। जब चंद्रमा उदय हुआ और गुलाबराय ने गढ़ के चौक में प्रवेश किया तो गढ़ एकाएक ही अद्भुत प्रकाश से नहा गया। पंचेटिया चोटी और चिड़ियानाथ की टूंक ने शरत् पूर्णिमा की रात्रियों में चंद्र ज्योत्सना में कई बार स्नान किया था किंतु ऐसा अद्भुत अलौकिक प्रकाश इन पहाड़ियों पर कभी नहीं उतरा था।
गुलाबराय ने जोर-जोर से धड़कती छाती पर किसी तरह नियंत्रण पाकर श्री जी साहब, उनकी पटराणी साहिबा, राजमाता, महाराणियों, राणियों, कुँवराणियों, सरदारों और मुत्सद्दियों को मुजरा किया। आज उसे राजकीय परम्परा के अनुसार सबका अभिवादन करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया था। फिर भी गुलाब घबरा रही थी। छाती धौंकनी के समान तेजी से फूल और पिचक रही थी। आँखें धरती में धंसी जा रही थीं। पसीने की धारायें रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
जोधाणे के गढ़ की विशालता उसके मन पर हावी हो रही थी, जिसके बोझ तले छाती दबी जा रही थी। घोड़ों की टापें, मशालों के लपलपाते प्रकाश में भयावह दैत्यों के समान दिखाई देते संतरियों के विशाल भाले, राणियों के चेहरों का दर्प, सरदारों की मूछें, चोबदारों की ऊँची आवाजें, सब कुछ इतना विशाल था कि वन मयूरी घबरा गई। उसने साहस करके अपने समक्ष बैठे राजपरिवार, मुत्सद्दियों और सरदारों को देखा। अंत में उसकी दृष्टि नवकोटि मारवाड़ के धणी के मुखमण्डल पर पहुँचकर ठहर गई। इतने सारे चेहरों में केवल यही एक चेहरा था जिसे वह पहले से पहचानती थी।
यद्यपि आज से पहले उसने केवल एक बार कुछ क्षणों के लिये ही इस चेहरे को देखा था तथापि यह चेहरा उसे किसी स्वजन जैसा प्रतीत हुआ। अभय प्रदान करती हुई महाराजा की आँखें गुलाब को ही निहार रही थीं। गुलाब जैसे निहाल हो गई। यहाँ सभी अपरिचित नहीं हैं। कोई है जो उसे जानता है। कोई है जो यहाँ उसकी रक्षा कर सकता है। उसका साहस लौट आया।
गुलाब गोकुलिये गुसाईंयों की शिष्या थी। उनसे उसने गोविंदजू के बहुत से भक्तों द्वारा लिखे गये बहुत से भजन सीखे थे। फिर भी आज उसने सबसे पहले मीरा बाई का भजन चुना। गुलाब ने गाना आरंभ किया-
साँवरा रे…ऽऽऽ….ऽऽऽ, म्हारी प्रीत निभाज्यो जी……।
साँवरिया म्हारी प्रीत निभाज्यो जी………ऽऽऽ।
गुलाब के सधे हुए कण्ठ से निःसृत स्वर माधुरी, क्षण भर में ही गढ़ के परकोटे में चारों ओर फैल गई, जैसे रजनी गंधा के फूलों की गंध फैल जाती है। चिड़ियानाथ की टूंक पर गर्व से खड़े मयूरगढ़ ने इससे पूर्व भी बड़े-बड़े गवैयों के कण्ठ से निःसृत चित्तहरणी स्वर माधुरियों का रसास्वादन किया था किंतु इस कण्ठ की तो बात ही निराली थी। इसके जादुई प्रभाव ने क्षण भर में ही दुर्ग के भीतर सब कुछ उलट-पलट दिया।
जो सजीव थे, वे पलकें झपकाना और साँस लेना भूल कर गुलाब की ओर एकटक ताकते हुए, निर्जीव जैसे दिखाई देने लगे। बहुतों ने तो गुलाब के रूप माधुर्य का पान करके सुध-बुध बिसराई और बहुतों ने स्वर माधुरी में गोते लगाकर होश खोये। जो निर्जीव थे, वे सजीव हो बैठे।
जैसे ही गुलाब के सौंदर्य की झाँई उन पर झिलमिलाई, पत्थरों में आँखें उग आईं और जब गुलाब के कण्ठ से निःसृत स्वर माधुरी का स्पर्श मिला तो उनमें कान उत्पन्न हो गये। ऐसा जादू मयूर गढ़ में पहली बार हुआ था। आज मयूरगढ़ का चिंतामणि नाम सार्थक हो गया। वह सचमुच गुलाबराय के रूप सौंदर्य की ज्योत्सना में मणि के समान चमक रहा था।