मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत को हिन्दी साहित्य में सूफी परम्परा के महाकाव्य के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। जायसी की पद्मिनी अथवा पद्मावती तो पृथ्वीराज रासो से उधार ली हुई है।
बहुत से लोग पद्मावत में इतिहास ढूंढने की चेष्टा करते हैं तथा जायसी की पद्मावती को केन्द्र बिंदु बनाकर चित्तौड़ का इतिहास लिखने का प्रयास करते हैं किंतु इस ग्रंथ की नायिका मलिक मुहम्मद जायसी की मौलिक रचना नहीं है, न ही वह चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी अथवा पद्मावती है।
जायसी ने पद्मावत की रचना हिजरी 947 अर्थात् ईस्वी 1540 में शेरशाह सूरी के शासन काल में की थी। इस ग्रंथ के आरम्भ में शेरशाह सूरी की प्रशंसा की गई है। जायसी की पद्मावत में राजा रतनसेन और नायिका पद्मिनी की प्रेमकथा के माध्यम से सूफियों की प्रेम.साधना का आधार तैयार किया गया है।
रतनसेन चित्तौड़ का राजा है और पद्मावती उसकी वह रानी है जिसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन उसे प्राप्त करने के लिये चित्तौड़ पर आक्रमण करता है।
बहुत से लोग मानते हैं कि अवधी क्षेत्र में प्रचलित हीरामन सुग्गे की लोककथा जायसी की पद्मावत का आधार बनी थी। इस कथा के अनुसार सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन की कन्या पदमावती ने हीरामन नामक सुग्गा पाल रखा था। एक दिन वह सुग्गा पदमावती की अनुपस्थिति में भाग निकला और एक बहेलिए द्वारा पकड़ लिया गया।
बहेलिए से एक ब्राह्मण के हाथों में होता हुआ वह सुग्गा चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के पास पहुंचता है। सुग्गा राजा रतनसिंह को सिंहलद्वीप की राजकुमारी पदमावती के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन सुनाता है और रतनसिंह पद्मावती को प्राप्त करन के लिये योगी बनकर निकल पड़ता है।
राजा रतनसिंह सुग्गे के माध्यम से पद्मावती के पास प्रेमसंदेश भेजता है। पद्मावती उससे मिलने के लिये एक देवालय में आती है। इस प्रकार यह कथा चलती रहती है।
पृथ्वीराज रासो में श्पद्मावतीसमयश् नामक एक आख्यान दिया गया है। इसके अनुसार पूर्व दिशा में समुद्रशिखर नामक प्रदेश पर विजयपाल यादव नाम का राजा राज्य करता था।
उसकी पत्नी का नाम पद्मसेन तथा पुत्री का नाम पद्मावती था। एक दिन राजकुमार पद्मावती राजभवन के उद्यान में विचरण कर रही थी। उस समय एक शुक अर्थात् तोता पद्मावती के लाल होठों को बिम्बाफल मानकर उसे खाने के लिए आगे बढा। उसी समय पद्मावती ने शुक को पकड़ लिया।
वह शुक मनुष्यों की भाषा बोलता था। उसने पद्मावती का मनोरंजन करने के लिए एक कथा सुनाई। राजकुमारी पद्मावती ने पूछा. हे शुकराज! आप कहाँ निवास करते हैं? आपके राज्य का राजा कौन है? इस पर शुक राजकुमारी पद्मावती को दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान के बारे में बताता है।
राजकुमारी पृथ्वीराज के गुणों को सुनकर रीझ जाती है तथा शुक से कहती है कि तू मेरा प्रेम संदेश लेकर दिल्ली जा और राजा पृथ्वीराज से कह कि वह आकर मुझे ले जाए क्योंकि मैं पृथ्वीराज से प्रेम करती हूँ जबकि मेरे पिता ने मेरा विवाह के राजा कुमुदमणि से तय कर दिया है।
तोता राजा पृथ्वीराज को राजकुमारी पद्मावती का संदेश देता है। उधर राजा कुमुदमणि तथा मुहम्मद गौरी भी पद्मावती को प्राप्त करने के लिए समुद्रशिखर के लिए रवाना हो जाते हैं। राजा पृथ्वीराज समुद्रशिखर राज्य में पहुंचकर राजकुमारी पद्मावती से शिवमंदिर में भेंट करता है तथा राजकुमारी को ले जाता है।
बहुत से इतिहासकारों ने इस पद्मावती की पहचान किराडू के निकटवर्ती परमार राजा पाल्हण की पुत्री के रूप में की है जिसका विवाह पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। इतिहासकारों ने पोकरण के निकटवर्ती क्षेत्र से पद्मावती के भाई कतिया परमार का एक शिलालेख भी खोज निकाला है।
डॉ. दशरथ शर्मा ने भी पृथ्वीराज की रानी पद्मावती की पहचान कान्हड़दे प्रबंध में उल्लिखित रानी पद्मावती से की है तथा उसे राजा पाल्हण की पुत्री बताया है जो किराडू के आसपास का स्वामी था।
इन्हीं ऐतिहासिक तथ्यों को काम में लेते हुए रानी पद्मावती की प्रेमगाथा का रूपक खड़ा करके उसे पृथ्वीराज रासो में जोड़ दिया गया। पृथ्वीराज रासो की रचना बारहवीं शताब्दी इस्वी में पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदबरदाई द्वारा की गई थी जिसमें कुछ अंश बरदाई के पुत्र द्वारा लिखा गया था।
रासो में दी गई रानी पद्मावती की कथा जिस प्राचीन लोकाख्यान के आधार पर गढ़ी गई होगीए संभवतः वही प्राचीन कथा सोलहवीं शताब्दी इस्वी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत का भी आधार बनी होगी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता