Thursday, July 25, 2024
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1. खून और वफादारी का घालमेल

हुमायूँ का अर्थ तो सौभाग्यशाली होता है किंतु वह भी अपने पिता बाबर की तरह परम दुर्भाग्यशाली था। जिस समय हुमायूँ दिल्ली में अपने पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसल कर मरा, उसका बड़ा बेटा अकबर तेरह साल का था जिसका तब तक का जीवन दुर्भाग्य की अंधी गलियों में बीता था।

हुमायूँ ने अपने इसी निरक्षर, कुरूप और अनुभवहीन पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर रखा था। जब हुमायूँ अचानक दिल्ली में मर गया तब अकबर पंजाब में कालानौर के मोर्चे पर तैनात था। हुमायूँ के विश्वसनीय सिपहसलार तथा अकबर के संरक्षक बैराम खाँ ने अकबर को मुगलों के तख्त पर बिठाया।

अकबर ने बहुत कम आयु में यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि उसके बाप हुमायूँ के दुर्भाग्य के सबसे बड़े कारण हुमायूँ के अपने भाई थे। हुमायूँ जीवन भर मिर्जा कामरान, मिर्जा अस्करी तथा हिन्दाल से लड़ता रहा था। अकबर के बादशाह बनने के बाद भी अकबर के सौतेले भाई मिर्जा हकीम ने अकबर का साथ देने के स्थान पर काबुल पर अधिकार करके उसे दिल्ली से स्वतंत्र कर लिया।

उस समय जितने भी मुगल शहजादे और काकशाल तुर्क अमीर थे, उन्होंने मुगलिया तख्त को हड़पने के लिए कोई न कोई षड़यंत्र अवश्य रचा। अपने सिंहासनारोहण के समय हुई घटनाओं और बाद के दिनों में हरम में चलने वाले कुचक्रों को देखकर अकबर समझ गया कि मुगलिया शहजादों और काकशाल तुर्क अमीरों के भरोसे वह अपने साम्राज्य को स्थाई नहीं बना सकता।

अकबर अनपढ़ भले ही था किंतु दुर्भाग्य के खिलाफ निरंतर जूझते रहने के कारण उसमें एक विशेष मेधा विकसित हो गई थी। इसी मेधा से काम लेते हुए उसने मुगल शहजादियों के विवाह करने पर रोक लगाई तथा अपना और अपने शहजादों का विवाह, विभिन्न राजवंशों की हिन्दू राजकुमारियों से करने की नीति अपनाई। सबसे पहले स्वयं अकबर ने आमेर के कच्छवाहों की राजकुमारी हीराकंवर से विवाह किया जिसकी कोख से सलीम अर्थात् जहाँगीर का जन्म हुआ।

यही कारण था कि कच्छवाहा राजा भारमल तथा उसकी आगामी पीढ़ियां, जीवन भर अकबर और जहाँगीर के पुत्रों के प्रति समर्पित रहे। इसके बाद अकबर ने जोधपुर के राजा मालदेव की चहेती स्त्री टीपू पासवान की पुरुी रूखमती से, बीकानेर के राजा कल्याणमल के भाई काहनमल की पुत्री से, जैसलमेर की राजकुमारी नाथीबाई से तथा डूंगरपुर के राजा आसकरण की पुत्री से विवाह किए।

अकबर ने इस परम्परा को और भी आगे बढ़ाते हुए अपने पुत्र सलीम के साथ कई हिन्दू राजकुमारियों के विवाह करवाए। पहला विवाह आम्बेर के राजा भगवन्तदास की पुत्री मानबाई से, दूसरा विवाह बीकानेर के राजा रायसिंह की पुत्री से, तीसरा विवाह जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गुसाईन से तथा चौथा विवाह जोधपुर के केशवदास राठौड़ की पुत्री से करवाया।

बाद में वृद्धावस्था आने पर जहाँगीर ने आमेर के कच्छवाहों को दण्डित करने के लिए आमेर की एक और राजकुमारी से किया जो जहाँगीर के साले मानसिंह की पोती थी तथा राजकुमार जगतसिंह की पुत्री थी।

इतना ही नहीं, जहाँगीर ने अपने पुत्र परवेज का विवाह आमेर के राजकुमार जगतसिंह की दूसरी पुत्री से करवाया। इस प्रकार पूरा राजपूताना अकबर तथा उसके परिवार के प्रति रिश्तों और निष्ठा की डोरी में मजबूती से बंध गया। हिन्दू राजा अपने प्राण छोड़ सकते थे किंतु किसी को भी दिया हुआ वचन नहीं त्याग सकते थे भले ही वह शत्रु ही क्यों न हो। 

जहाँगीर अपने पिता अकबर से बहुत नाराज रहता था इसलिए उसने अकबर के प्रिय कच्छवाहों को कभी गले नहीं लगाया तथा आमेर की कच्छवाही राजकुमारी मानबाई को जहाँगीर ने शराब के नशे में धुत्त होकर कोड़ों से इतना पीटा कि उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। हिन्दू राजा, जहाँगीर से नाराज न हों इसके लिए, जहाँगीर ने जोधपुर के राठौड़ों की राजकुमारी जगत गुसाइन को खूब महत्व दिया।

मुगलिया सल्तनत में जगत गुसाइन को जोधाबाई के नाम से भी पुकारा जाता था। जहाँगीर के राज्य में शासन का काम भले ही उसकी पत्नी नूरजहाँ संभाल रही थी किंतु हिन्दू सरदारों में जोधाबाई की अच्छी प्रतिष्ठा हो गई तथा उसका रुतबा, मुगलिया सल्तनत में नूरजहाँ से कम नहीं था।

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