Thursday, November 21, 2024
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चांदी की झील शाकंभरी ने बनाकर चौहानों को दी!

कुछ प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि शाकंभरी ने चौहानों को चांदी की झील बनाकर दी। संभवतः नमक के सफेद रंग के कारण सांभर की झील को चांदी की झील कहा गया।

बहुत सारे प्राीचन ग्रंथों में कहा गया है कि चौहानों का प्रारम्भिक राज्य राजस्थान के बीकानेर एवं नागौर क्षेत्र में था। यह रेगिस्तानी प्रदेश है तथा महाभारत काल से ही जांगल प्रदेश कहलाता था। मौर्य काल से लेकर गुप्त वंश के काल में इस क्षेत्र पर प्राचीन नागवंशी क्षत्रिय शासन करते थे। उनकी राजधानी को अहिछत्रपुर और नागौर भी कहा जाता था

संभव है कि कोई नागवंशी राजकुमार ही आबू पर्वत के यज्ञ में चयनित चार वीरों में से एक रहा हो जिसका नाम चाहमान हो और उसका वंश चौहान वंश कहलाया हो एवं नागों द्वारा शासित क्षेत्र ही चौहानों का प्रारम्भिक शासन क्षेत्र बना हो। इस मत को मानने में एक कठिनाई यह है कि चौहानों के किसी भी शिलालेख में उन्होंने स्वयं को नागवंशी नहीं बताया है।

Prithviraj Chouhan
Prithviraj Chouhan

अजमेर के सरस्वती कण्ठाभरण मंदिर परिसर से चौहान शासक विग्रहराज (चतुर्थ) के समय का एक शिलालेख मिला है जो अब राजकीय संग्रहालय अजमेर में सुरक्षित है। अजमेर के सरस्वती कण्ठाभरण मंदिर को अब ढाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं।

इस शिलालेख में चौहानों के आदि पुरुष चाहमान की स्तुति की गई है तथा उसे मालव वंश में उत्पन्न बताया गया है जो कि सूर्य वंश के इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज थे।

मालव जाति प्रथम शताब्दी ईस्वी के अंत तक वर्तमान अजमेर जिले की सीमा पर वर्तमान जयपुर तथा टोंक नगरों के आसपास शासन करती थी। अतः पर्याप्त संभव है कि मालवों में से ही चाहमान नामक कोई राजा हुआ हो और उसके वंशजों से चौहानों की अलग शाखा चली हो।

चूंकि चौहानों ने अपने शिलालेखों में स्वयं को रघुवंशी एवं सूर्यवंशी लिखा है, इसलिए चौहानों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यही मत सर्वाधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है कि वे मूलतः मालव थे।

आबू पर्वत के यज्ञ में जिन चार वीरों का चयन किया गया, उनमें प्राचीन मालव राजकुल  का अथवा चौहान राजवंश का कोई वीर राजा या राजकुमार सम्मिलित हुआ होगा जिसका नाम चाहमान रहा होगा। उसके नाम पर यह वंश चौहान वंश कहलाया होगा।

यह भी पर्याप्त संभव है कि राजनीतिक उथल-पुथल के किसी काल में मालवों की एक शाखा ने ही गुप्तों के पतन के बाद बीकानेर एवं नागौर के मरुस्थलीय हिस्से पर अधिकार किया हो जिसे जांगल प्रदेश कहते थे।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

ईस्वी 551 के आसपास चौहान शासक वासुदेव ने बीकानेर और नागौर के शुष्क रेतीले क्षेत्रों से आगे बढ़कर शाकंभरी नामक झील पर अधिकार कर लिया जिसे सांभर भी कहा जाता है। चौहान राजाओं के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी। इस कारण उन्हें शाकंभरीश्वर कहा जाने लगा।

सांभर झील 20 मील लम्बी तथा 2 से 7 मील चौड़ी खारे पानी की झील है जिसमें अत्यंत प्राचीन काल से नमक बनाया जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 90 वर्गमील है। राजशेखर द्वारा लिखित प्रबंधकोष के अनुसार चौहान शासकों में वासुदेव पहला शासक था जिसने ई.551 में सपादलक्ष (सांभर) में शासन किया।

कुछ प्राचीन ग्रंथों में आए एक वर्णन के अनुसार भगवान शिव की पत्नी पार्वती देवी ने किसी चौहान राजकुमार की सेवा से प्रसन्न होकर इस पूरे क्षेत्र की भूमि को चांदी की झील में बदल दिया। तभी से इस देवी का नाम शाकंभरी पड़ा और वह चौहानों की कुल देवी कहलाई।

बिजोलिया अभिलेख कहता है कि सपादलक्ष के चाहमानों का आदि पुरुष वासुदेव चौहान, सांभर झील का प्रवर्तक था। वासुदेव चौहान का समय 551 ई. के आसपास माना जाता है। पर्याप्त संभव है कि यह चौहानों का पहला राजा नहीं हो और चौहान राजवंश उससे पहले ही अस्तित्व में आ चुका हो क्योंकि वासुदेव तो चौहानों का वह पहला राजा था जिसने सांभर झील का प्रवर्तन किया था।

वासुदेव चौहान का पुत्र सामंतदेव हुआ। सामंतदेव का वंशज अजयराज था। अजयराज के वंशज प्रतिहार शासकों के अधीन रहकर राज्य करते थे।

बहुत से प्राचीन ग्रंथों के अनुसार चौहानों को सपादलक्ष झील के आसपास रहने वाला बताया गया है जिसका आशय सांभर झील की माप से लगाया जा सकता है। अर्थात् सौ लाख पदों के बराबर क्षेत्रफल वाली झील अर्थात् ऐसी ही कोई इकाई। कुछ लोग सपादलक्ष का अर्थ गांवों की संख्या से जोड़ते हैं।

ई.683 के आसपास अजयपाल चौहानों का राजा हुआ। उसने अजमेर नगर की स्थापना की। अपने अंतिम वर्षों में वह अपना राज्य अपने पुत्र को देकर पहाड़ियों में जाकर तपस्या करने लगा। आज भी वे पहाड़ियां अजयपाल की घाटी कहलाती हैं। अजमेर में अजयपाल की पूजा अजयपाल बाबा के नाम से होती है।

उसके नाम पर प्रतिवर्ष एक मेला भरता है जिसमें अजमेर नगर के लोग वहाँ पहुंचकर श्रद्धांजलि देते हैं जहाँ राजा अजयपाल के अंतिम दिन व्यतीत हुए थे। लोगों का विश्वास है कि अजयपाल बाबा, अजमेर के भाग्य के स्वामी हैं तथा बीमारियों, सर्पों एवं जानवरों से लोगों की रक्षा करते हैं।

अजयपाल के बाद उसका पुत्र विग्रहराज (प्रथम) अजमेर का शासक हुआ। विग्रहराज (प्रथम) के बाद विग्रहराज (प्रथम) का पुत्र चंद्रराज (प्रथम), चंद्रराज (प्रथम) के बाद विग्रहराज (प्रथम) का दूसरा पुत्र गोपेन्द्रराज अजमेर का राजा हुआ। इसे गोविंदराज (प्रथम) भी कहते हैं। यह मुसलमानों से लड़ने वाला पहला चौहान राजा था। उसने मुसलमानों की सेनाओं को परास्त करके उनके सेनापति सुल्तान बेग वारिस को बंदी बना लिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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