Saturday, July 27, 2024
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9. खोटी नजर

जयप्पा की हत्या से मराठों में खलबली मच गई। ठीक उसी समय राठौड़ सैनिकों ने नागौर दुर्ग से बाहर निकलकर मराठों पर हमला बोल दिया। मराठे शिविर छोड़कर भागने लगे किंतु इसी समय जयप्पा के भाई दत्ताजी सिंधिया ने भागते हुए मराठों का नेतृत्व संभाला। उसने महाराजा विजयसिंह के दूतों विजय भारती और राजसिंह चौहान को ही नहीं अपितु मेवाड़पति की तरफ से भेजे गये सलूम्बर के रावत जैतसिंह चूण्डावत को भी मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उसने जयप्पा के पुत्र जनकोजी को जोधपुर से नागौर बुलाने के लिये आदमी दौड़ाये।

पिता की हत्या का समाचार पाकर जनकोजी गुस्से से पागल हो गया। उसने इस हत्या का बदला लेने और मारवाड़ की ईंट से ईंट बजा देने का निश्चय किया। वह उसी समय अपने हाथी घोड़े और तोपें उठाकर नागौर की ओर चल दिया। उसने पेशवा को पत्र लिखकर मराठों की प्रतिष्ठा पर आये खतरे की सूचना दी और अधिक से अधिक मराठा सेनायें मारवाड़ की ओर भेजने का अनुरोध किया।

उन्हीं दिनों मराठा सरदार अंताजी मानकेश्वर बुंदेलखण्ड की ओर लूटमार करता हुआ घूम रहा था। जनकोजी ने उसे भी नागौर पहुँचने के लिये लिखा। जनकोजी का संदेश पाकर वह पागलों की तरह नागौर की तरफ दौड़ा। मराठों पर आई इस विपदा के बारे में सुनकर मराठा सरदार जीवाजी विट्ठल शिवदेव भी अपने दस हजार घुड़सवार लेकर नागौर के लिये रवाना हो गया। नारोशंकर और समथर का राजा गोपालसिंह भी उसके साथ हो लिये। इसी बीच पेशवा का भाई रघुनाथ राव भी जो रुष्ट होकर रूपनगर बैठा था, अपनी सेना लेकर नागौर की तरफ चल पड़ा।

इतनी सारी मराठा सेनाओं के एक साथ नागौर आने के समाचारों से अवगत होने पर महाराजा विजयसिंह ने नागौर का दुर्ग छोड़ देने का निर्णय लिया ताकि वह अन्य राजपूत राजाओं से सम्पर्क करके उनकी सहायता प्राप्त कर सके। एक रात उसने अपने प्रधान देवीसिंह चाम्पावत को नागौर का दुर्ग सौंपा और स्वयं मराठों की आँखों में धूल झौंकता हुआ बीकानेर जा पहुँचा। बीकानेर के राठौड़ महाराजा गजसिंह ने बिना कोई समय गंवाये, उसे अपने साथ लेकर कच्छवाहा राजा माधोसिंह की सहायता प्राप्त करने हेतु जयपुर के लिये कूच किया।

दोनों राठौड़ राजाओं के अनुरोध पर जयपुर के कच्छवाहा महाराजा माधोसिंह ने अपने सेनापति अनिरुद्धसिंह खंगारोत को अपनी समस्त सेना और तोपखाने के साथ, मराठों पर आक्रमण करके नागौर का दुर्ग मुक्त करवा लेने के आदेश दिये। उस समय अनिरुद्धसिंह के पास कच्छवाहों की सेना और विशाल तोपखाने के साथ-साथ शाहपुरा, किशनगढ़, करौली और बूंदी रियासतों की सेनायें भी थीं जिनमें कुल मिलाकर बीस-पच्चीस हजार राजपूत योद्धा मौजूद थे। अनिरुद्धसिंह इन समस्त सेनाओं को लेकर नागौर की ओर चल पड़ा।

जब जनकोजी को अनिरुद्धसिंह की सेनाओं के अभियान की जानकारी मिली तो उसने राणाजी मोइते, नरसिंघ सिंधिया और खानुजी जाधव को पांच-छः हजार मराठा सैनिक देकर कच्छवाहों का मार्ग रोकने के लिये नागौर से रवाना किया। 16 अक्टूबर 1755 को चंदोली गाँव के पास दोनों सेनाओं में भयानक घमासान हुआ। मराठों ने पलक झपकते ही आठ सौ राजपूतों को मार डाला और उनके बारह सौ घोड़े छीन लिये। राजपूतों की तोपें, रहकले, गंजीफा की गाड़ियाँ, शीशा एवं बारूद भी मराठों द्वारा छीन ली गई। विधि का विचित्र विधान था। अपनी ही धरती पर राजपूत लगातार मार खा रहे थे और अपने घरों से हजारों कोस दूर पड़े मराठे उन पर भारी पड़ रहे थे।

अनिरुद्धसिंह किसी तरह गिरता-पड़ता नागौर की तरफ अग्रसर होता रहा। जब वह डीडवाना पहुँचा तो मराठों ने एक बार फिर उसमें कसकर मार लगाई। अनिरुद्धसिंह जान बचाने के लिये डीडवाना के दुर्ग में घुस गया। मराठों ने डीडवाना के दुर्ग को घेर लिया ताकि अनिरुद्धसिंह बाहर न निकल सके। जिस समय अनिरुद्धसिंह जयपुर से रवाना हुआ था, उसी समय बीकानेर रियासत का दीवान बख्तावरसिंह भी एक विशाल सेना लेकर नागौर की तरफ रवाना हुआ ताकि वह अनिरुद्धसिंह के साथ मिलकर मराठों पर हमला बोल सके किंतु मराठों ने उसे भी मार्ग में दौलतपुरा के निकट रोक लिया।

जिस समय इन दोनों सेनाओं के नागौर से पहले ही घेर लिये जाने के समाचार राठौड़ महाराजाओं विजयसिंह और गजसिंह को मिले, वे जयपुर के राजमहलों में थे। यह समाचार पाकर उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उधर जब जयपुर के कच्छवाहा राजा माधोसिंह को अनिरुद्धसिंह की दुर्दशा के समाचार मिले तो उसका भी मराठा विरोधी नशा उतर गया। उसने अनिरुद्धसिंह को गुप्त संदेश भिजवाये कि किसी भी हालत में डीडवाना से आगे न बढ़े।

कच्छवाहा राजा माधोसिंह को अब अपने राज्य की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। उसने बीकानेर के राठौड़ महाराजा गजसिंह के पास संदेश भेजा कि यदि वह महाराजा विजयसिंह का साथ छोड़ दे तो झिलाय ठाकुर की पुत्री का विवाह महाराजा गजसिंह के साथ करवा दूंगा। महाराजा गजसिंह ने कच्छवाहा राजकुमारी से विवाह करने का प्रस्ताव तो स्वीकार कर लिया किंतु महाराजा विजयसिंह का साथ छोड़ने से मना कर दिया। इस पर महाराजा माधोसिंह ने महाराजा विजयसिंह को छल से पकड़कर मराठों को सौंपने की योजना बनाई ताकि जयपुर रियासत को मराठों के कोप से बचाया जा सके।

महाराजा माधोसिंह की राठौड़ी महारानी अेजनकंवर को अपने पति की भयानक योजना के बारे में पता लग गया। उसने राठौड़ महाराजा के पास अपने गुप्तचर भेजकर कच्छवाहा महाराजा की खोटी नजर से बचने के लिये सावधान किया। यह वही राठौड़ी रानी थी जिस पर महाराजा बखतसिंह को जहरीली पोषाक भेजकर उनकी हत्या करवाने का आरोप था। इस प्रकार अेजन कंवर ने बखतसिंह के पुत्र के प्राणांे की रक्षा करके अपना पुराना पाप धोया।

रीयां के ठाकुर जवानसिंह को जब कच्छवाहा राजा की इस कलुषित योजना का पता लगा तो उसने राठौड़ राजाओं को अपने डेरे के लिये रवाना कर दिया और स्वयं कच्छवाहा राजा के महल में जाकर उसके पास बैठ गया ताकि यदि कोई गड़बड़ हो तो वह भी उसी समय कच्छवाहा राजा को मार डाले।

कच्छवाहा महाराजा के षड़यंत्र का भेद पाकर दोनों राठौड़ राजा रीयां ठाकुर के डेरे की ओर जाने का बहाना करके, अपने आदमियों के साथ जयपुर के राजमहलों से निकल गये। जब ठाकुर जवानसिंह को ज्ञात हुआ कि दोनों राठौड़ राजा राजमहलों से बाहर निकल चुके हैं तो वह भी कच्छवाहा राजा को मुजरा करके राजमहलों से बाहर आया और अपने स्वामियों से आ मिला। ये लोग किसी तरह मराठों की दृष्टि से बचते हुए बीकानेर जा पहुँचे।

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