नाना फड़नवीस का वास्तविक नाम बालाजी जनार्दन भानू था। उसने पेशवा माधवराव (प्रथम) के समय में कारकून के पद से कार्य आरंभ किया था। 1774 ईस्वी में पेशवा नारायण राव की हत्या होने के बाद वह नये पेशवा का मुख्य संरक्षक बन गया। लगभग बीस वर्ष तक वह पेशवा का मुख्य सरंक्षक एवं सलाहकार बना रहा। वास्तव में इस काल में नाना फड़नीवस ही मराठा शक्ति का भाग्य विधाता था। महाराजा विजयसिंह के शासन काल में नाना फड़नवीस, पेशवा माधवराव (द्वितीय) के प्रधानमंत्री की हैसियत से काम कर रहा था और पेशवा का संरक्षक भी वही था। उसने कुलीन मराठी ब्राह्मण कृष्णाजी जगन्नाथ को मारवाड़ रियासत में अपना वकील नियुक्त किया।
कृष्णाजी जोधपुर में रहकर नियमित रूप से अपने स्वामी नाना फड़नवीस को पत्र लिखकर मारवाड़ रियासत में हो रही राजनीतिक घटनाओं की जानकारी भेजता रहता था। इस प्रकार वह वकील अथवा राजदूत का दायित्व निभाने के साथ-साथ मराठों के लिये मारवाड़ रियासत में गुप्तचरी करने का कार्य भी करता था। वह अपने स्वामी को सलाह भेजता रहता था कि इस समय मारवाड़ रियासत के भीतर क्या कुछ चल रहा है, राजा किन षड़यंत्रों से घिरा हुआ है, दूसरे राज्यों से उसके कैसे सम्बन्ध हैं तथा मराठे मारवाड़ रियासत की कमजोरी का लाभ कैसे उठा सकते हैं!
कृष्णाजी जगन्नाथ, जोधपुर दरबार में राजपूताना की अन्य रियासतों की ओर से नियुक्त वकीलों से भी मिलता रहता था और उनसे प्राप्त जानकारी भी नाना फड़नवीस को पहुँचाता रहता था। महाराजा विजयसिंह कृष्णाजी से काफी सतर्क रहता था और उस पर पूरी दृष्टि भी रखता था। यहाँ तक कि महाराजा जानबूझ कर कई गलत सूचनाएं कृष्णाजी तक पहुंचा देता था जिन्हें कृष्णाजी सत्य मानकर अपने स्वामियों तक पहुँचा देता था।