Tuesday, December 3, 2024
spot_img

21. राजा पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी संयोगिता का हरण कर लिया!

जब पृथ्वीराज चौहान ने बुंदेलखण्ड पर विजय प्राप्त की तो पृथ्वीराज के राज्य की सीमाएं कन्नौज के गाहड़वालों से जा लगीं। जैसे पश्चिम में मुसलमान प्रांतपति चौहानों के शत्रु थे, वैसे ही उत्तर में जम्मू का राजा, दक्षिण में चौलुक्य शासक, पूर्व में चंदेल और उत्तर-पूर्व में गहड़वाल चौहानों के शत्रु थे।

जब पृथ्वीराज चौहान ने नागों, भण्डानकों, चौलुक्यों तथा चंदेलों को परास्त कर दिया तो कन्नौज के शासक जयचंद के मन में चौहानराज के प्रति ईर्ष्या जागृत हुई। कुछ भाटों के अनुसार राजा अनंगपाल की एक पुत्री का विवाह अजमेर के राजा सोमेश्वर से हुआ जिससे पृथ्वीराज चौहान उत्पन्न हुआ तथा दूसरी पुत्री का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल से हुआ जिसका पुत्र जयचन्द हुआ। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द मौसेरे भाई थे।

चूंकि दिल्ली के राजा अनंगपाल के कोई पुत्र नहीं था इसलिए राजा जयचंद को आशा थी कि दिल्ली का राज्य जयचंद को मिलेगा किंतु राजा अनंगपाल तोमर ने दिल्ली का राज्य पृथ्वीराज चौहान को दे दिया। इसलिए जयचंद अपने मौसेरे भाई पृथ्वीराज चौहान से वैमनस्य रखने लगा और उसे नीचा दिखाने के अवसर खोजने लगा।

पृथ्वीराज रासो के लेखक कवि चन्द बरदाई ने चौहान तथा गहड़वाल संघर्ष का कारण जयचंद की पुत्री संयोगिता को बताया है। रासो में दिए गए विवरण के अनुसार पृथ्वीराज चौहान स्वयं तो सुन्दर नहीं था किन्तु उसमें सौन्दर्य-बोध अच्छा था। उसने अनेक सुन्दर स्त्रियों से विवाह किये जो एक से बढ़ कर एक रमणीय थीं।

पृथ्वीराज की वीरता के किस्से सुनकर जयचन्द की पुत्री संयोगिता ने पृथ्वीराज को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया। जब राजा जयचन्द ने संयोगिता के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया तो पहले से ही चले आ रहे वैमनस्य के कारण राजा पृथ्वीराज चौहान को आमन्त्रित नहीं किया गया तथा उसे अपमानित करने के लिए उसकी लोहे की मूर्ति बनाकर स्वंयवर-शाला के बाहर द्वारपाल की जगह खड़ी कर दी गई।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

इस पर राजकुमारी संयोगिता ने राजा पृथ्वीराज को संदेश भिजवाया कि वह पृथ्वीराज से ही विवाह करना चाहती है। इस पर राजा पृथ्वीराज अपने विश्वस्त अनुचरों के साथ वेष बदलकर कन्नौज पंहुचा। राजकुमारी संयोगिता ने अपने पिता के क्रोध की चिन्ता किये बिना, स्वयंवर की माला पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में डाल दी।

राजा पृथ्वीराज स्वयंवर-शाला से संयोगिता का हरण करके ले गया। कन्नौज की विशाल सेना उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। पृथ्वीराज के विश्वस्त और पराक्रमी सामंत एवं सेनापति कन्नौज की सेना से लड़ते रहे ताकि राजा पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर अजमेर पहुंच सके। पृथ्वीराज के बहुत से सामंत एवं सेनापति अपने स्वामी की रक्षा के लिए तिल-तिल कर कट मरे। राजा अपनी प्रेयसी को लेकर सुरक्षित रूप से अपनी राजधानी अजमेर पहुँच गया।

‘पातसाहि का ब्यौरा’ नामक ग्रंथ में पृथ्वीराज-संयोगिता प्रकरण इस प्रकार से दिया गया है- ‘तब राजा पृथ्वीराज संजोगता परणी। जहि राजा कैसा कुल सोला (16) सूरी का 100 हुआ। त्याके भरोसे परणी ल्याओ। लड़ाई सावता कही। पणी राजा जैचंद पूंगलो पूज्यो नहीं। संजोगता सरूप हुई। तहि के बसी राजा हुवो। सौ म्हैला ही मा रही। महीला पंदरा बारा ने नीसरियो नहीं।’

प्रेम, बलिदान और शौर्य की इस प्रेम गाथा को पृथ्वीराज रासो में बहुत ही सुन्दर विधि से अंकित किया गया है। सुप्रसिद्ध उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन ने अपने उपन्यास पूर्णाहुति में पृथ्वीराज रासो को आधार बनाकर इस प्रेमगाथा को बड़े सुन्दर तरीके से लिखा है।

जबकि आधुनिक इतिहासकारों रोमिला थापर, आर. एस. त्रिपाठी, गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि ने इस घटना के सत्य होने में संदेह किया है क्योंकि संयोगिता का वर्णन रम्भामंजरी नामक ग्रंथ तथा राजा जयचंद के शिलालेखों में नहीं मिलता। इन इतिहासकारों के अनुसार संयोगिता की कथा 16वीं सदी के किसी भाट की कल्पना मात्र है। दूसरी ओर सी. वी. वैद्य, डॉ.गोपीनाथ शर्मा तथा डा. दशरथ शर्मा आदि इतिहासकारों ने संयोगिता-हरण की घटना को सही माना है।

रोमिला थापर आदि इतिहासकार इस आधार पर पृथ्वीराज-संयोगिता की कथा को गलत बताते हैं कि पृथ्वीराज की माता कर्पूरदेवी चेदिदेश की राजकुमारी थी न कि दिल्ली की जबकि भाटों और ख्यातों ने पृथ्वीराज को अनंगपाल का दौहित्र कहा गया है।

यह सही है कि पृथ्वीराज, अनंगपाल का दौहित्र नहीं था किंतु यह संभव है कि चेदिदेश के कलचुरी राजा अचलराज तथा दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल के बीच कोई वैवाहिक सम्बन्ध रहा होगा जिसके आधार पर पृथ्वीराज दिल्ली के अनंगपाल का दौहित्र लगता होगा।

दूसरी बात यह कि पृथ्वीराज अनंगपाल का दौहित्र नहीं था, इस आधार पर संयोगिता की कथा गलत सिद्ध नहीं होती है! यदि पृथ्वीराज और जयचंद मौसेरे भाई होते तो पृथ्वीराज संयोगिता का चाचा होता। ऐसी स्थिति में पृथ्वीराज द्वारा संयोगिता का हरण एक अनैतिक कार्य माना जाता। अतः पृथ्वीराज और जयचंद में कोई रक्त सम्बन्ध नहीं होने से संयोगिता-हरण में कोई बाधा ही नहीं थी।

इसलिए राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोगिता के हरण को काल्पनिक मानने का कोई आधार नहीं है। चूंकि पृथ्वीराज की रानी पद्मावती तथा रानी अजिया की कहानियों में पृथ्वीराज के साथ विवाह होने के प्रसंग में प्रेम-कथाओं का समावेश किया गया है, इसलिए संयोगिता-हरण के प्रसंग के ऐतिहासिक होने की संभावना बढ़ जाती है। पर्याप्त संभव है कि राजा पृथ्वीराज ने संयोगिता का हरण करके उससे विवाह किया, इसलिए चारण एवं भाट लेखकों ने पद्मावती एवं अजिया के प्रसंग में भी प्रेमकथा का रूपक गढ़ लिया।

सार रूप में कहा जा सकता है कि रोमिला थापर एवं उनके समर्थक इतिहासकारों ने राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोगिता के हरण की कथा को बिना किसी पुष्ट आधार के गलत सिद्ध करने का प्रयास किया है।

फिर भी इतना अवश्य है कि पृथ्वीराज रासो एवं अन्य भाट ग्रंथों में पृथ्वीराज एवं जयचंद की शत्रुता का जो कारण बताया है वह गलत है। दिल्ली तो गूवक द्वितीय के पुत्र चंदनराज के समय से चौहानों के अधीन चल रही थी। चंदनराज ने तोमर राजा रुद्रपाल का वध करके दिल्ली को अपने अधीन किया था तथा दिल्ली पर चौहानों की तरफ से तोमर रुद्रपाल के वंशजों को सामंत नियुक्त किया गया था। ईस्वी 1155 में विग्रहराज (चतुर्थ) ने दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल को परास्त करके दिल्ली को दुबारा से चौहानों के अधीन किया था। इसलिए राजा जयचंद का दिल्ली पर किसी भी तरह का दावा नहीं था। यह कुछ भाटों की कल्पना मात्र है।

अगली कथा में देखिए- भारत के राजा आपस में लड़ रहे थे और तुर्क भारत में पैर जमाते जा रहे थे!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source