Saturday, December 21, 2024
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प्राचीन दुर्गों में हुए जौहर एवं साके

दुर्ग का नामजौहर एवं साका
रणथंभौर दुर्गई. 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। राव हम्मीर देव चौहान के नेतृत्व में साका हुआ। उसकी रानियों के नेतृत्व में जौहर हुआ।
चित्तौड़ गढ़प्रथम साका : ई. 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। रानी पदमिनी के नेतृत्व में जौहर हुआ। रावल रतनसिंह की ओर से गोरा-बादल के नेतृत्व में सैनिकों ने साका किया।
 दूसरा साका : ई. 1534 में गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ। राजमाता हाड़ी कर्मवती के नेतृत्व में जौहर हुआ। महाराणा विक्रमादित्य के सैनिकों ने रावत बाघसिंह के नेतृत्व में साका किया।
 तीसरा साका : ई. 1576 में अकबर के आक्रमण के समय हुआ। जयमल राठौड़, पत्ता सिसोदिया और ईसरदास चौहान की रानियों के नेतृत्व में हिन्दू ललनाओं ने जौहर किया। जयमल, पत्ता और कल्लाजी राठौड़ के नेतृत्व में हिन्दू वीरों ने साका किया।
जैसमलेर दुर्गपहला साका : अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय ई. 1314 में हुआ। रावल मूलराज भाटी तथा उसके छोटे भाई कुंवर रतनसिंह के नेतृत्व में साका हुआ। मूलराज की रानी के नेतृत्व में जौहर हुआ।
 दूसरा साका : मुहम्मद बिन तुगलक के आक्रमण के समय में ई. 1343 में हुआ। रावल दूदा, तिलोकसी एवं अन्य भाटी सरदारों ने साका किया तथा हिन्दू वीरांगनाओं ने जौहर किया।
 आधा साका : महारावण लूणकर्ण के समय में ई. 1550 में कांधार के पठान अमीर अली के छल से आक्रमण करने के समय हुआ। इसमें साका तो हुआ किंतु जौहर का समय नहीं मिलने से महारावल ने अंतःपुर की रानियों और राजकुमारियों के सिर अपनी तलवार से विच्छेद किये।
सिवाणा दुर्गपहला साका : ई. 1310 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। चौहान सातलदेव के नेतृत्व में साका हुआ और उसकी रानियों के नेतृत्व में जौहर हुआ।
 दूसरा साका : अकबर के आक्रमण के समय ई. 1587 में हुआ। कल्ला राठौड़ के नेतृत्व में साका हुआ तथा उसकी रानियों के नेतृत्व में जौहर हुआ।
जालोर दुर्गई. 1311-12 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। चौहान कान्हड़देव के नेतृत्व में साका हुआ तथा उसकी रानयिों के नेतृत्व में जौहर हुआ।
गागरोण दुर्गपहला साका : ई. 1423 में माण्डू के सुलतान अलपखां गोरी (होशंगशाह) के आक्रमण के समय हुआ। अचलदास के नेतृत्व में साका हुआ और उसकी रानियों के नेतृत्व में जौहर हुआ।
 दूसरा साका : ई. 1444 में माण्डू के सुलतान महमूद खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। राजा पाल्हणसी के पलायन के बाद दुर्ग के सैनिकों ने साका किया तथा हिन्दू ललनाओं ने जौहर किया।

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