नाना साहब फाड़नवीस दूरदर्शी व्यक्ति था। उसीने पेशवा की ओर से उत्तर भारत में खण्डनी वसूल करने के लिये महादजी सिन्धिया तथा तुकोजीराव को नियुक्त किया था। उसने ही राजपूताना की प्रत्येक रियासत में अपने वकील नियुक्त किये थे जो हर पल की जानकारी उसे भिजवाते रहते थे। उसने अपने वकीलों को सूबेदारों तथा सेनापतियों के नियंत्रण से मुक्त रखकर प्रत्यक्षतः अपने अधीन नियुक्त किया था। इससे नाना साहब को अपने सूबेदारों तथा सेनापतियों पर दृष्टि रखने में सुविधा रहती थी।
जोधपुर नरेश विजयसिंह लम्बे समय से खण्डनी की राशि समय पर सिन्धिया को नहीं भिजवा रहा था। इससे नाना फड़नवीस विजयसिंह से रुष्ट रहता था। नाना को वकील कृष्णाजी के माध्यम से मरुधरपति की मराठा विरोधी गतिविधियों की पूरी जानकारी रहती थी। इसलिये नाना ने मरुधरपति को पत्र लिखकर सलाह दी कि जयपुर तथा जोधपुर दोनों रियासतों को चाहिये कि वे मामलत का पैसा राजश्री पाटील बाबा अर्थात महादजी को चुका दें। महाराजा ने इस पत्र को अनदेखा कर दिया।
जब नाना साहब को ज्ञात हुआ कि महादजी व्यक्तिगत शत्रुता निकालने के उद्देश्य से फिर से मारवाड़ पर अभियान करने की तैयारी कर रहा है तो उसने वकील कृष्णाजी को लिखा कि जोधपुर के शासक बहुत दूरदर्शी हैं। अतः उनसे कहें कि हमसे विरोध न बढ़ाकर, विवाद समाप्त करें। मराठों से प्रेमभाव बनाये रखना ही जोधपुर के लिये उचित है। भविष्य में ध्यान रखेंगे तो श्रेयस्कर रहेगा। अन्य कोई रास्ता नहीं है।
कृष्णाजी वैसे तो महादजी की गतिविधियों से विशेष प्रसन्न नहीं था किंतु वह जोधपुर राज्य की गतिविधियों से भी संतुष्ट नहीं था। इसलिये उसने नाना साहब को जवाब भेजा कि हाथी की तरह इनके खाने के दाँत अलग हैं और दिखाने के अलग। ये पाटील बाबा पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते और स्वयं सावधान रहकर अनेक तरह से अपनी कूटनीति के दाँव-पेंच लगाते रहते हैं। सेना के जोर पर ही इनसे खण्डनी वसूल की जाये तो ठीक रहेगा। इसी तरह से ये देंगे और देते भी आये हैं। खीचीवाड़ा और गोहद का विध्वंस देखकर ये सहमे हुए हैं।