Thursday, December 26, 2024
spot_img

81. दैत्याकार मशालें

मरुधरानाथ ने गुलाब को उसका मन-चीता करने की स्वीकृति तो दे दी किंतु उसका मन अपार पीड़ा से भर गया। एक प्रश्न बार-बार उसके मस्तिष्क में कौंधता था। क्या वह इतना अधम है जो अपने ही रक्त का नाश करेगा! इस प्रश्न से लड़ते-लड़ते संध्या हो गई। रात घिर आई। यहाँ तक कि अर्धरात्रि होने को आई किंतु मरुधरानाथ के मस्तिष्क में चल रही आंधी समाप्त नहीं हुई। कुँवर फतहसिंह की मृत्यु के बाद मरुधरानाथ का ही दायित्व था कि वह फतहसिंह के पुत्र की रक्षा करे। जब पिता न हो तो दादा ही पिता हो जाता है। वह कैसा दादा है जो पिता बनने के स्थान पर अपने पौत्र के प्राण हनन की अनुमति दे चुका है!

दियों में तेल काफी कम होने को था जब उसने ड्यौढ़ीदार खींवकरण को महल के भीतर बुलवाया।

-‘होकम अन्नदाता।’ खींवकरण की बड़ी-बड़ी मूंछें, दियों के मंद प्रकाश में भी पूरी तरह चमक रही थीं।

-‘सिंघवी खूबचंद के पास जा। अभी।’

-‘होकम दाता।’

-‘छिपकर जा।’

-‘होकम।’

-‘कोई देखे नहीं। तुझे बड़ी जिम्मेदारी सौंप रहा हूँ।’

-‘होकम दाता।’ ड्यौढ़ीदार की छाती गर्व से फूल उठी।

-‘पासवानजी कुँवर भीमसिंह के प्राण लेना चाहती हैं। तुझे पासवानजी को ऐसा करने से रोकना है।’

-‘होकम दाता।’ खींवकरण ने कह तो दिया किंतु पासवान का नाम सुनकर उसकी बड़ी-बड़ी मूंछंे भय से थरथरा गईं।

-‘तू इसी समय सिंघवी खूबचंद के पास चला जा और उसे मेरा संदेश कह कि मेरे पास न आये, पासवानजी की जान और आबरू को हाथ न लगाये किंतु कुँवर के प्राण हर हालत में बचाये। भेद गुप्त रहे। बाकी हम देख लेंगे।’

-‘होकम दाता।’ वह मरुधरानाथ को सिर नवाकर ड्यौढ़ी से बाहर आ गया।

अर्द्धरात्रि में ड्यौढ़ीदार किस मुसीबत में पड़ गया! ठीक कहता था उसका बाप। महल का ड्यौढ़ीदार किसी भी समय मुसीबत में पड़ सकता है इसलिये उसे हर समय चौकन्ना रहना चाहिये। राम-राम जपता हुआ वह सिंघवी की हवेली पर पहुँचा और किसी तरह द्वार खुलवाकर सिंघवी के पास पहुँचा।

हाराजा का संदेश सुनकर सिंघवी के पैरों की धरती खिसक गई। वह धोती संभालता हुआ घोड़े पर सवार हुआ और उसी समय राठौड़ हरिसिंह की हवेली पर जा पहुँचा। हरिसिंह ने उसी समय रतनसिंह कूंपावत और दूसरे सरदारों को बुलावा भेजा। इधर तो बड़ी-बड़ी मूंछों वाले ठाकुर रात की नींद त्यागकर, हरिसिंह की हवेली पर एकत्रित होने लगे और उधर खूबचंद सिंघवी, नवाब इस्माईल बेग के डेरे की तरफ भाग चला। सिंघवी के आदेश से नवाब उसी समय घोड़े कसकर और बड़ी-बड़ी मशालें जलवाकर, नगाड़े बजाता हुआ मेड़तिया दरवाजे की तरफ चल पड़ा।

 जब पूरा शहर नगाड़ों की आवाजों और घोड़ों की टापों से गूंज गया तो गुलाब की नींद टूटी। अपने महल के चारों ओर दैत्याकार मशालों के प्रकाश को लपलपाते देखा तो गुलाब कांप उठी। यह क्या हो रहा है? क्या भीमसिंह ने बाग पर हमला बोल दिया? उसने तुरंत अपने विशेष दूत को गढ़ के लिये रवाना किया कि जाकर महाराजा को बुला लाये। दूत जब मरुधरानाथ की ड्यौढ़ी पर हाजिर हुआ, मरुधरानाथ जाग ही रहा था और शरह में हो रही कार्यवाही की प्रतिक्रिया जानने की प्रतीक्षा में था। जब गुलाब को दूत आया तो वह समझ गया कि सिंघवी ने अपना खेल चालू कर दिया। मरुधरपति ने दूत से कहा-‘तू चल, मैं अभी आता हूँ।’ दूत सिर झुकाकर चला गया।

मरुधरानाथ फंस गया। इस स्थिति की तो उसने कल्पना तक नहीं की थी कि जब गुलाब उससे ही सहायता मांगेगी तब वह क्या करेगा! मरुधरानाथ को पूरा विश्वास था कि खूबचंद समझदारी से काम लेगा और गुलाब को किसी भी तरह हानि नहीं पहुँचायेगा। इसलिये उसने महल में ही रुके रहने का निर्णय लिया।

उधर गुलाब के लिये पल-पल भारी हो गया। उसे लगा कि महाराज अब आये, अब आये किंतु हर पल उसे निराश ही करता चला गया। अचानक उसने सुना कि इस्माईल बेग घुड़सवारों को लेकर चढ़ आया है। इस समाचार को सुनकर तो गुलाब का पूरा शरीर ठण्ड की रात में भी पसीने से नहा गया। जाने आज क्या होने को है! वह सुनना चाहती थी कि स्वयं भीमसिंह आया कि नहीं, किंतु भीमसिंह का कोई समाचार नहीं था।

कुँवर भीमसिंह तो इन सारी हलचलों से दूर गढ़ के भीतर अपने महल में शांति से सोया पड़ा था। उसे इन सब बातों की कोई जानकारी नहीं थी। गुलाब ने एक बार फिर अपने दूत को गढ़ के लिये दौड़ाया। अब रात्रि का अंतिम प्रहर लगने वाला था।

जब गुलाब का दूत दुबारा आया तो महाराजा अश्व पर सवार होकर गुलाब के महल की तरफ निकल लिया। इस समय कोई चोबदार तक उनके साथ नहीं था। केवल ड्यौढ़ीदार खींवसिंह ही उनका पथ प्रदर्शन कर रहा था। वह अत्यंत धीमी गति से चलता हुआ गुलाब के बाग तक पहुँचा।

महाराजा को देखते ही ठाकुरों ने बाग का मुख्य मार्ग खाली कर दिया और मुजरे के लिये झुक गये। जब गुलाब की दृष्टि महाराजा पर पड़ी तो वह चीखकर उससे लिपट गई। उसकी सिसकियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। महाराजा ने उसे सांत्वना दी और शांत रहने के लिये कहा। इसके बाद महाराजा ने सारे ठाकुरों और मिर्जा इस्माईल बेग को बाग के भीतर बुलवाया। वे सब हाथ बांधकर एक कतार में खड़े हो गये। महाराजा ने सारे ठाकुरों को जमकर तड़ी पिलाई-‘शर्म आनी चाहिये आप लोगों को, ऐसी गैर जिम्मेदाराना हरकत करते हुए।’

-‘गुस्ताखी माफ हो अन्नदाता! पासवान ने खींवा ठाकुर को कुँवर भीमसिंह की हत्या करने के आदेश दिये हैं। इसलिये विवश होकर हमें यह कार्यवाही करनी पड़ी।’ ठाकुरों ने खुलेआम पासवान पर आरोप लगाया।

-‘आप लोगों को काई गलत अंदेशा हुआ है। पासवानी ऐसा कैसे कर सकती हैं?’

-‘हम बिल्कुल सत्य कह रहे हैं स्वामी। यदि हमें समय पर सूचना नहीं मिलती तो अनर्थ हो जाता।’

-‘आप लोगों ने जो किया, सो किया, अब कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जाने किसने आप लोगों को हमारी गुलाब के विरुद्ध भड़का दिया। उस हरामखोर का नाम बताइये हमें।’ मरुधरपति ने कृत्रिम क्रोध के साथ ठाकुरों को झिड़की दी।

मरुधरपति ने कहने को कह तो दिया कि उस हरामखोर का नाम बताइये किंतु उसे स्वयं भी भय लगा कि कहीं कोई खूबचंद सिंघवी का नाम न ले दे। क्योंकि ठाकुरों को पता नहीं था कि खूबचंद को वैसे ही बीच में डाला गया है, सब करा-धरा तो महाराज का स्वयं का है।

-‘महाराज! उनका नाम तो हम नहीं बता सकते किंतु आप समझ लीजिये कि वे राज्य के बहुत ही विश्वस्त और महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं।’ हरिसिंह ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया।

-‘अच्छा अब बहुत हुआ। आप सब इसी समय बाग से दूर चले जाइये और भविष्य में ऐसा करने का प्रयास फिर कभी मत कीजिये।’ महाराजा ने बात समाप्त करते हुए आदेश दिये। सारे ठाकुर उसी समय सिर झुका कर बाग से बाहर चले गये। मिर्जा इस्माईल बेग तथा उसकी दैत्याकार मशालों ने भी इन ठाकुरों का अनुकरण किया।

इस पूरे सनसनीखेज नाटक के दौरान खूबचंद सिंघवी मूक बना हुआ महाराजा की छाया की तरह उनके पीछे खड़ा रहा। चलते समय मरुधरानाथ ने प्रसन्न होकर उसकी पीठ ठोकी। उधर मरुधरानाथ ने गढ़ के लिये प्रस्थान किया और इधर पासवान ने अपने दूत को भेजकर खींवा खीची से कहलवाया कि भेद खुल गया है इसलिये किसी भी हालत में गढ़ पर नहीं जाये। उधर खूबचंद सिंघवी भी महाराजा से कुछ दिन का अवकाश लेकर इस्माईल बेग के डेरे में जाकर बैठ गया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source