थूण दुर्ग पर विजय प्राप्त करके सवाई जयसिंह ने 2 दिसम्बर 1722 के दिन बदनसिंह के सिर पर सरदारी की पाग बंधी, राजाओं की भांति उसका तिलक किया और पांच परिधानों के साथ पचरंगी निसान देकर ठाकुर के पद से सम्मानित किया। इस प्रकार बदनसिंह कच्छवाहों का खिदमती जागीरदार बन गया। बदनसिंह को डीग का राजा घोषित किया गया तथा ब्रजराज की उपाधि दी गई। उसकी तरफ से दिल्ली के बादशाह को दिया जाने वाला वार्षिक कर निर्धारित कर दिया गया। इस प्रकार 1722 ई. में भरतपुर नामक नवीन रियासत का गठन हुआ। बदनसिंह अपने पूर्ववर्ती जाट नेताओं से चरित्र एवं स्वभाव में बिल्कुल भिन्न था। वह विनम्र तथा विश्वसनीय था इस कारण वह एक बड़े राज्य की स्थापना कर सका तथा राजा का पद पा सका। उसने अपनी राजधानी डीग में अनेक भवन, पक्का दुर्ग तथा परकोटे का निर्माण करवाया। उसने डीग, कुम्हेर, भरतपुर तथा वैर में किले बनवाये। उसने अपने राज्य को अस्सी लाख रुपये वार्षिक जमा के क्षेत्र तक पहुंचा दिया। उसने जाट, डूंग एवं पालों के सरदारों की कौमी एकता परिषद् का गठन किया तथा उनकी सहायता से शासन करने लगा। उसने अपने दरबार तथा अपनी सेना का गठन मुगल पद्धति के अनुसार किया।
राजकुमार सूरजमल का जन्म
कुछ इतिहासकार सूरजमल को बदनसिंह तथा उसकी रानी देवकी का पुत्र मानते हैं जो कामा की रहने वाली थी। जबकि कुछ अन्य इतिहासकार सूरजमल को, सूरजमल के भाई रूपसिंह की विधवा का पुत्र मानते हैं जो रूपसिंह की मृत्यु के बाद, बदनसिंह के महल में आ गई थी तथा बदनसिंह ने उससे धरेजना कर लिया था। सूरजमल का जन्म कब हुआ इसकी निश्चित तिथि नहीं मिलती है। फिर भी माना जाता है कि महाराजा सूरजमल का जन्म फरवरी 1707 में हुआ।
डीग, कुम्हेर तथा भरतपुर में नये दुर्गों का निर्माण
डीग कस्बा, आगरा तथा मथुरा के मुख्य मार्ग पर स्थित था। इस कारण डीग पर शत्रुओं के आक्रमण होते ही रहते थे। इन आक्रमणों का प्रतिरोध करने में जाटों को बहुत शक्ति लगानी पड़ती थी। इस कारण बदनसिंह ने ई.1730 में डीग कस्बे के दक्षिण में 20 फुट चौड़ी दीवारों से युक्त एक सुदृढ़ दुर्ग बनवाया। इसी वर्ष कुम्हेर में भी एक दुर्ग बनाया गया। ई.1732 में सूरजमल ने भरतपुर नगर के दक्षिणी हिस्से में लोहागढ़ नामक दुर्ग बनवाना आरम्भ किया। इस दुर्ग का निर्माण आठ साल में पूरा हुआ। राजा बदनसिंह ने ई.1738 में वैर में एक दुर्ग बनवाया। उसने सूरजमल को कुम्हेर तथा प्रतापसिंह को वैर का दुर्ग प्रदान किया ताकि दोनों भाइयों में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष न हो।
पेशवा बाजीराव को जाटों का जवाब
राजा बनने के बाद बदनसिंह प्रति वर्ष राजा जयसिंह से मिलने उसकी राजधानी जाता था जहाँ उसका, राजाओं की तरह स्वागत होता था। वह जिस स्थान पर ठहरता था, उस स्थान को बदनपुरा नाम दे दिया गया। ई.1736 में पेशवा बाजीराव जयपुर आया। पेशवा के सम्मान में महाराजा जयसिंह ने जयपुर में एक भव्य दरबार का आयोजन किया। इस दरबार में भरतपुर रियासत के राजकुमार सूरजमल को भेजा गया। इस दौरान सूरजमल का परिचय पेशवा बाजीराव से करवाया गया किंतु बाजीराव ने सूरजमल के कुल को लेकर कुछ अपमान जनक शब्द कहे। सूरजमल उस समय अपने राज्य की नजाकत को समझता था इसलिये वह तो कुछ नहीं बोला किंतु उनके साथ उपस्थित हलेना के ठाकुर शार्दूलसिंह ने पेशवा को स्मरण कराया कि क्षत्रपति शिवाजी तो इससे भी निम्न कुल के थे।
नादिरशाह का आक्रमण
1739 ई. में दिल्ली पर फारस के शाह नादिरशाह ने आक्रमण किया जिससे मुगल साम्राज्य की ताकत बहुत कमजोर हो गई और जाटों को अपना राज्य जमाने में अधिक कठिनाई नहीं आई।