जोधपुर नगर से बाहर स्थित मण्डोर उद्यान परिसर में अठारहवीं शताब्दी में निर्मित एक अद्भुत मंदिर स्थित है जिसे देवताओं की साल कहा जाता है।
साल उस गलियारे को कहा जाता है जिसका निर्माण एक लम्बे बरामदे के रूप में किया गया हो।
इस साल में देवी-देवताओं के साथ वीर-पुरुषों की भी मूर्तियां लगाई गई हैं जिन्हें लोक देवता कहा जाता है।
भारत में वीर पुरुषों को देवी-देवताओं के समकक्ष पूजे जाने की परम्परा प्राचीन समय से है। मारवाड़ राज्य में भी वीर-पुरुषों को लोक देवता मानकर उनकी पूजा की जाती थी।
गौ, स्त्री, निर्बल, ब्राह्मण, प्रजा, शरणागत एवं धरती की रक्षा करते हुए जो वीर पुरुष अपना जीवन बलिदान करते थे, उन्हें लोकदेवता की तरह पूजा जाने लगता था।
मण्डोर स्थित देवताओं की साल का निर्माण महाराजा अजीतसिंह और उनके पुत्र महाराजा अभयसिंह के शासन काल में करवाया गया।
महाजारा अजीतसिंह ने ई.1707 से ई.1724 तक तथा उनके पुत्र अभयसिंह ने ई.1724 से 1749 तक मारवाड़ राज्य पर शासन किया जिसकी राजधानी जोधपुर थी।
देवताओं की साल में बड़ी-बड़ी देव मूर्तियों को चट्टान पर उत्कीर्ण किया गया है। इन प्रतिमाओं को यहाँ उत्कीर्ण करने से पूर्व छोटे-छोटे प्रस्तर खण्डों पर इनके नमूने बनाये गये थे। ये नमूने मण्डोर के राजकीय संग्रहालय में रखे हुए हैं।
मण्डोर स्थित देवताओं की साल में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास स्थान बनाया गया है। एक विशाल चट्टान को काटकर 16 विशाल मूर्तियां बनाई गई हैं जिनमें चामुण्डा, महिषासुर मर्दिनी, जालंधर नाथ, गुसाई, रावल मल्लीनाथ, पाबूजी राठौड़, बाबा रामदेव, हड़बूजी, मांगलिया मेहा और गोगाजी आदि देवी-देवताओं, साधु-सन्यासियों और महापुरुषों को सम्मिलित किया गया है।
यह मंदिर दुनिया में अपनी तरह का अकेला मंदिर है। अठारहवीं सदी में निर्मित इस मंदिर ने लोकदेवताओं को देवी-देवताओं की श्रेणी में लाकर खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसे देखना किसी रोमांच से कम नहीं है।
इस शाला में उत्कीर्ण गणेशजी, माता पार्वती सहित भगवान शिवजी, गोवर्धनधारी श्री कृष्ण, राम दरबार, अश्वारूढ़ सूर्यदेव तथा पंचमुखी ब्रह्माजी की मूर्तियां भी अनोखी हैं। ब्रह्माजी को ब्रह्माणी के साथ दिखाया गया है जिनके दूसरी तरफ बहमाता पुत्र सहित उपस्थित हैं। बहमाता ब्रह्माणी का ही लोक रूप है।
लोक देवताओं के सिर पर अलग-अलग तरह की पगड़ियां, मुकुट आदि बनाए गए हैं। अगस्तर 2019 में जिस समय यह वीडियो शूट की गई थी, तब इन मूर्तियों पर नया रंग किया जा रहा था।
इस शाला के बिल्कुल बगल में काला-गोरा भैंरूजी का मंदिर है। ऐसा लगता है कि किसी समय काला-गोरा भैंरू मंदिर की विशालाकाय प्रतिमाएं भी देवताओं की साल का ही हिस्सा थीं। बाद में उन्हें एक मंदिर से घेर कर अलग कर दिया गया।
देवताओं की साल के सामने एक थम्बा महल है तथा कुछ ही दूरी पर जोधपुर के राजाओं के स्मारक बने हुए हैं जिन्हें देवल कहा जाता है।
–डॉ. मोहनलाल गुप्ता