Thursday, November 21, 2024
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101. करनी का फल

मरुधरानाथ से विदा लेकर कुँवर भीमसिंह सिवाना के लिये चल दिया। जब तक वह अपने साथियों के साथ चोखा होता हुआ झँवर गाँव के निकट पहुँचा, संध्या घिरने लगी। भीमसिंह ने विचार  किया कि रात्रि में यहीं रुक जाये और प्रातः होने पर सिवाना के लिये प्रस्थान करे। इसलिये उसने वहीं डेरा डालने के आदेश दिये।

सवाईसिंह के मन में खटका बना हुआ था। वह अनुमान लगा रहा था कि जब महाराज को ज्ञात होगा कि गुलाब को सरदारों ने मार डाला तो वह बिफर पड़ेगा और सारी शर्तें और संधियां भूल जायेगा। खटका तो भीमसिंह के मन में भी था फिर भी वह इसलिये निश्चिंत होकर झँवर में रुक गया कि मरुधरानाथ के सबसे विश्वस्त सरदार उसकी सुरक्षा करने के लिये जमानत के रूप में उसके साथ हैं।

अभी दिन निकला ही था और झँवर से कूच करने की तैयारियाँ हो रही थीं कि किसी ने आकर कुँवर को सूचना दी कि जोधपुर की तरफ से भड़ैत सेना तेज गति से इस तरफ बढ़ रही है। भीमसिंह ने मरुधरानाथ के सरदारों से कहा कि वे देखें कि भड़ैत सेना क्यों आ रही है? सरदारों ने भड़ैत सेना का मार्ग रोकने के लिये अपने सिपाहियों को मोर्चा बांध कर बैठने के लिये कहा। अभी भड़ैत सेना झँवर के निकट पहुँची ही थी कि किसी ने आकर सूचना दी कि पाल गाँव की तरफ से कुँवर जालिमसिंह अपने पाँच हजार सैनिकों के साथ झँवर की ओर बढ़ रहा है।

कुँवर समझ गया कि बुरा फंसा। उसने अपनी सेना को कुँवर जामिलसिंह का मार्ग रोकने के आदेश दिये। इसी बीच चण्डावल ठाकुर हरिसिंह भड़ैत सेना के मुख्यिा इमाम अली तक पहुँच गया।

-‘सेना लेकर हमारे पीछे क्यों आया है?’ ठाकुर हरिसिंह ने पूछा।

-‘महाराज ने भेजा है।’ इमाम अली ने जवाब दिया।

-‘क्यों?’

-‘उन्हें कुँवर भीमसिंह चाहिये।’

-‘किंतु यह तो वचन भंग करने वाली बात है।’

-‘यह मैं नहीं जानता, आप महाराज से बात करें।’

-‘तो तू ठहर, मैं बापजी से बात करके आता हूँ।’

-‘मैं एक ही शर्त पर ठहर सकता हूँ।’

-‘कैसी शर्त?’

-‘यदि कुँवर अपनी सेना सहित अपने स्थान पर स्थिर रहेगा। यदि वह अपने स्थान से हिला तो फिर मैं भी नहीं रुकूंगा।’

-‘ठीक है, और जालिमसिंह?’

-‘उसे रोकना मेरा काम नहीं है।’

-‘ठीक है तू तो रुक, मैं महाराज से बात करके आता हूँ।’

-‘जल्दी कीजिये, मैं आफताब के बीच आस्मां में आने तक इंतजार करूंगा।’ इमाम अली ने जवाब दिया।

ठाकुर हरिसिंह ने कुचामण ठाकुर को बुलाकर कहा कि वे कुँवर जालिमसिंह से बात करके उसे दोपहर तक रुकने को कहें मैं महाराज के पास बात करने जाता हूँ।

हरिसिंह ने सरपट अश्व दौड़ाते हुए गढ़ में प्रवेश किया और मरुधरानाथ के समक्ष उपस्थित हुआ।

-‘कुँवर को पकड़ने के लिये सेना भेजना तो वचन भंग है दाता।’ ठाकुर ने निवेदन किया।

-‘हमने कोई वचन भंग नहीं किया।’ मरुधरानाथ ने जवाब दिया।

-‘आपने कुँवर को सिवाना तक सुरक्षित जाने देने का वचन दिया था और हम जमानत के रूप में कुँवर के साथ हैं।’

-‘कुँवर को गढ़ खाली करने के बदले में सिवाना तक सुरक्षित जाने देने का वचन दिया गया था। कुँवर द्वारा क्षमा याचना करने के बदले में सिवाना की जागीर देने का वचन दिया गया था किंतु कुँवर ने तो पासवान को मार डाला। इसलिये उसे दण्डित किया जायेगा या नहीं?’

-‘यह बात पहले तय नहीं हुई थी।’

-‘पहले हमें किसी ने बताया भी नहीं था कि कुँवर गढ़ में गुलाब की हत्या करके बैठा है।’

-‘गुलाब की हत्या रूपावत सरदार ने की है, कुँवर का इसमें कोई दोष नहीं।’

-‘रूपावत को उसके किये की सजा मिलेगी। आप कहते हैं कि भीमसिंह का कोई दोष नहीं किंतु क्या भीमसिंह का यह कर्त्तव्य नहीं था कि वह रूपावत को उसके अपराध की सजा देता?’ महाराज ने रुष्ट होकर पूछा।

-‘फिर भी राजपूती शान इसी में है कि कुँवर को दिये गये वचन के अनुसार उसे सिवाना तक सुरक्षित पहुँचने दिया जाये। यदि उसे पासवान की हत्या का दण्ड देना ही है तो सिवाना पहुँचने के बाद उस पर कार्यवाही की जाये।’ हरिसिंह ने मरुधरपति को मनाने का प्रयास किया।

-‘एक बार यदि वह सिवाना पहुँच गया तो हमारे हाथ नहीं आयेगा। फिर किसे दण्डित करेंगे?’

-‘हमने कुँवर को सुरक्षित रूप से सिवाना तक पहुँचाने का जिम्मा लिया है। यदि आप उसका मार्ग रोकेंगे तो राजपूती आन के अनुसार हमें इमाम अली और कुँवर जालिमसिंह के विरुद्ध हथियार उठाने पड़ेंगे।’ हरिसिंह ने महाराजा को मनाने का अंतिम प्रयास किया।

-‘तुम्हारी मर्जी है ठाकरां। राजपूत तो पैदा ही लड़ने के लिये होते हैं। लड़ते हुए मरोगे तो स्वर्ग मिलेगा।’ मरुधरानाथ चिढ़कर कहा और मुँह फेर लिया।

हरिसिंह निराश होकर लौट गया। उसके झँवर पहुँचते ही दोनों पक्षों में युद्ध आरंभ हो गया। सगे भाई तलवारें लेकर एक दूसरे पर टूट पड़े। राठौड़ ही राठौड़ों के सिर काटने लगे। झँवर गाँव के बाहर शवों के ढेर लग गये। कायलाना की पहाड़ियों से निकलकर गिद्धों और चीलों के झुण्ड झँवर गाँव के ऊपर मण्डराने लगे।

जब भीमसिंह के पक्ष के सरदारों ने देखा कि जालिमसिंह और इमाम अली भारी पड़ रहे हैं तो उन्होंने सवाईसिंह से कहा कि वह कुँवर को लेकर युद्ध भूमि से चम्पत हो जाये। सवाईंिसंह इस काम में बड़ा कुशल था। वह कुँवर भीमसिंह को अपने एक सौ घुड़सवारों के बीच रखकर कुछ ही समय में युद्ध के मैदान से नौ दो ग्यारह हो गया। लड़ाई फिर भी जारी रही और तब तक जारी रही जब तक कि सूर्यदेव इस दृश्य पर खिन्नता व्यक्त करते हुए निस्तेज होकर अपने घर नहीं चले गये किंतु तब तक चण्डावल ठाकुर हरिसिंह, कुचामण ठाकुर सूरजमल मेड़तिया और धीरतसिंह जैसे बड़े राठौड़ सरदार वीरगति को प्राप्त हो चुके थे।

सवाईसिंह चाम्पावत कुँवर भीमसिंह को लेकर अपनी जागीर पोकरण को भाग गया। कुँवर जालिमसिंह भी गोड़वाड़ की तरफ चला गया। वह कुँवर भीमसिंह को पकड़ नहीं सका था इसलिये उसने महाराजा से मांग नहीं की कि उसे जोधपुर का राज्य दिया जाये।

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