महाराजा विजयसिंह के बख्शी भीमराज तथा जयपुर नरेश प्रतापसिंह ने दिल्ली जाकर बादशाह अली गौहर से बात की कि तैमूरशाह सिंध से निबटकर दिल्ली की ओर आने ही वाला है इसलिये हमें भी मराठों के विरुद्ध कूच करना चाहिये। अली गौहर इनके साथ रेवाड़ी तक चला आया। राजपूत राजाओं को अपनी सेवामें उपस्थित देखकर अली गौहर फूलकर कुप्पा हो गया। उसने स्वयं को अकबर और जहांगीर के समान ही शक्तिशाली मुगल बादशाह समझते हुए मरुधरानाथ को अपने हाथ से रुक्का लिखकर रेवाड़ी आने का आदेश भिजवाया तथा भावी युद्ध पर होने वाले खर्च के लिये पैसा मांगा।
अकबर से लेकर औरंगजेब तक के समय में और कुछ दिनों के लिये फर्रुखसीयर के समय में राजपूताने के समस्त राजा मुगलों के दरबार में खड़े रहते थे। खड़े-खड़े जब उनकी कमर दुख जाती थी तो उन्हें अपने पीछे बंधी हुई लकड़ी की बल्ली से केवल दो मिनट के लिये अपनी पीठ को सहारा देने की छूट थी। मरुधरानाथ अजीतसिंह ने फर्रुखसीयर की हत्या करवाई थी, उसके बाद से मारवाड़ के राजाओं ने मुगलों के दरबार में जाना छोड़ दिया था। फर्रुखसीयर के बाद मुगलों में इतनी शक्ति नहीं रही थी कि वे राजपूताने के राजाओं को अपने दरबार में बुलाकर बल्लियों के पास खड़ा कर सकें। तब से यह पहला अवसर था कि किसी मुगल बादशाह ने मरुधरानाथ को अपने हुजूर में हाजिर होने का हुक्म दिया हो।
महाराजा विजयसिंह ने आज तक किसी मुसलमान बादशाह, मराठा सरदार या ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कमाण्डर को सलाम नहीं किया था। आज तक उसे ऐसा कोई आदमी नहीं मिला था जिसका रुतबा उससे बढ़कर हो। वह पूरे जीवन में जहाँ भी उपस्थित रहा था, सबसे बड़ा और सर्वाधिक सम्माननीय वह स्वयं ही था। इसलिये महाराजा विजयसिंह ने अली गौहर को औपचारिक सा जवाब भिजवा दिया। न तो वह रेवाड़ी गया और न बादशाह को खर्च के लिये रुपया भिजवाया। इससे अली गौहर नाराज होकर फिर से दिल्ली लौट गया। मरुधरानाथ समझ गया कि अली गौहर को मराठों से कोई लेना देना नहीं था, वह तो इस बहाने से रुपया ऐंठने तथा अपना प्रभाव बढ़ाने की योजना बना रहा था।
मरुधरानाथ को आशंका थी कि जिस प्रकार मुगल बादशाह से सहायता प्राप्त करने की योजना असफल रही है। कुछ वैसे ही परिणाम तैमूरशाह से भी मिल सकते हैं। कुछ दिनों बाद मरुधरानाथ की यह आशंका सत्य सिद्ध हो गई। तैमूरशाह की सेना सिंध क्षेत्र में तालपुरों से उलझ कर रह गई और पानी की कमी का बहाना करके मराठों पर चढ़ाई करने के लिये रेगिस्तान पार करके दिल्ली की तरफ नहीं आई। इस कारण महाराजा विजयसिंह की यह योजना भी विफल हो गई। दिलावलपुर के रेतीले प्रदेश में पचास कोस तक पानी नहीं था। तैमूरशाह ने महाराजा को बारबार संदेश भेजा कि इस पचास कोस के रेगिस्तान को पार करने के लिये हमारे पास पानी तथा जानवरों के लिये घास का कोई प्रबंध नहीं है। इसलिये आप पानी और घास का प्रबंध कीजिये।
महाराजा की समझ में आ गया कि तैमूरशाह भी उसी नीति पर चल रहा है जिस नीति पर अली गौहर ने चलने का प्रयास किया था। जो बादशाह पचास कोस के रेगिस्तान के लिये पानी और घास का प्रबंध नहीं कर सकता वह मराठों से क्या खाकर लड़ेगा! इसलिये मरुधरानाथ ने तैमूरशाह की कोई सहायता नहीं करने का निर्णय लिया। तैमूरशाह कुछ दिन तक तो महाराजा की तरफ से सहायता आने की प्रतीक्षा करता रहा किंतु जब वहाँ से कोई उत्तर नहीं आया तो वह भी महाराजा से रुष्ट हो कर पीछे को लौट गया।