भवानीराम भण्डारी चाहता था कि उसे जोधपुर राज्य का दीवान बनाया जाए। उसने पासवान गुलाबराय को प्रसन्न करके अपनी उन्नति का मार्ग खोलना चाहा। पासवान तक पहुंचना आसान नहीं था इसलिए भण्डारी ने महादजी सिंधिया की शरण ली।
भवानीराम भण्डारी को पता था कि पासवान गुलाबराय अपने पुत्र शेरसिंह को जोधपुर का राजा बनाना चाहती थी। इसलिए भवानीराम भण्डारी ने लालच के धागों से एक जाल बुना ताकि उसमें न केवल महादजी सिंधिया को अपितु पासवान गुलाबराय को भी फंसाया जा सके।
उस काल में राजपूत रियासतों में ओसवाल महाजन बड़े-बड़े मंत्रियों के पद पर कार्य करते थे। वे राज्य के दीवान अर्थात् प्रधानमंत्री भी बनाए जाते थे। ओसवाल एवं महेश्वरी महाजनों को सैनिक अभियानों का नेतृत्व सौंपा जाता था। उनके नीचे राज्य के राजपूत सामंत भी नियुक्त किए जाते थे।
भवानीराम भण्डारी महादजी सिन्धिया का विश्वासपात्र बन गया। उसने जोधपुर में आकर कपट चाल चली तथा पासवान को आश्वासन दिया कि मैं आपके दत्तक पुत्र शेरसिंह से महादजी सिन्धिया की कन्या का विवाह करवा देता हूँ, इससे सिन्धिया के माध्यम से आपको राज मिल जायेगा। इस प्रस्ताव से प्रसन्न होकर पासवान ने भण्डारी को जोधपुर राज्य का दीवान नियुक्त किया।
जब यह बात महादजी सिन्धिया तक पहुँची तो महादजी बहुत बिगड़ा। उसने महाराजा से जवाब तलब किया कि भवानीराम ने यह बात गोपाल रघुनाथ की ओर से कही या अपनी ओर से? इस पर मरुधरानाथ ने जवाब भिजवाया कि हम कुछ नहीं जानते। यदि भण्डारी ने अपनी ओर से यह बात कही हो तो हमें उसकी जानकारी नहीं है।
मरुधरानाथ तो पहले ही भवानीराम भण्डारी का विश्वास नहीं करता था। वह तो भण्डारी के विश्वासघात के लिये उसके प्राण लेना चाहता था। अब महादजी सिन्धिया को भी भवानीराम का विश्वास नहीं रहा लेकिन पासवान भण्डारी से पूरी तरह प्रसन्न थी। उसके कहने पर मरुधरानाथ ने ऐेसे गद्दार को जोधपुर राज्य का दीवान बनाना स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार सवाईसिंह चाम्पावत, भवानीराम भण्डारी और भैरजी सारणी, पासवान के साथ मिलकर राज्य कार्य चलाने लगे।