हमने पिछली दो कड़ियों में चौहान-चंदेल संषर्ष पर चर्चा की थी। इस कड़ी में हम राजा परमारदी देव की ओर से लड़े दो भाइयों आल्हा-ऊदल के सम्बन्ध में लोक मान्यताओं की चर्चा करेंगे।
चौहानों तथा चंदेलों के बीच हुए युद्ध में आल्हा तथा ऊदल ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता के किस्से विगत सैंकड़ों सालों से मध्यभारत के गांवों में लोक गीतों के रूप में गाए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में आल्हा की गणना सप्त चिरंजीवियों में की जाती है।
आल्हा-ऊदल के सम्बन्ध में प्रचति सैंकड़ों लोक मान्यताओं का आधार राजा जगनिक द्वारा रचित आल्ह खण्ड अर्थात् परमाल रासो तो है ही, साथ ही पिछली नौ शताब्दियों में लोक कलाकारों, भाण्डों, गायकों आदि द्वारा बनाए गए नाटकों, गीतों एवं लोकाख्यानों के द्वारा आल्हा-ऊदल का एक अलग ही व्यक्तित्व गढ़ लिया गया है।
बुंदेलखण्ड के लोक मानस में आल्हा को महाभारत के धर्मराज युधिष्ठिर का तथा ऊदल को वीर अर्जुन का रूप माना जाता है। आल्ह-खण्ड में वर्णित 52 लड़ाइयों में से प्रत्येक लड़ाई में आल्हा की चमकती हुई तलवार, पाठक अथवा श्रोता को चमत्कृत करती है। आल्हा की तलवार में सर्वनाश करने की शक्ति है किंतु वह उस शक्ति का प्रयोग नहीं करता।
ऊदल का वास्तविक नाम उदयसिंह था, उसने अपनी मातृभूमि अर्थात् महोबा राज्य की रक्षा हेतु पृथ्वीराज चौहान की सेना से युद्ध करते हुए वीरगति पाई। यद्यपि भारत में सम्पूर्ण धरती को माता मानने तथा आसेतु हिमालय को राष्ट्र मानने की अवधारणा ऋग्वैदिक काल से ही चली आई है तथापि मध्यकाल में मातृभूमि तथा राष्ट्र का आशय एक राजा द्वारा शासित उस छोटे से राज्य से होता था जिसमें कोई व्यक्ति निवास करता था।
इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-
यद्यपि इस युद्ध में राजा पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई थी तथापि आल्हा-ऊदल द्वारा किए गए असीम शौर्य-प्रदर्शन के कारण आल्हा-ऊदल लोकाख्यानों के महानायक बन गए। बड़े भाई आल्हा तथा छोटे भाई ऊदल को लोकमानस में महानाकयकत्व की प्राप्ति जगनेर के राजा जगनिक द्वारा रचित आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य-ग्रंथ से मिली जिसे परमाल रासो भी कहा जाता है।
यह मूलतः एक मौखिक महाकाव्य है जिसकी कहानी पृथ्वीराज रासो और भाव पुराण नामक ग्रंथ की मध्यकालीन पांडुलिपियों में पाई जाती है। इसे कलियुग का महाभारत भी कहा गया है। कुछ लोगों का कहना है कि यह काव्य बुंदेलखण्ड में केवल मौखिक परम्परा से ही जीवित रहा जिसे ब्रिटिश शासन काल में एक अंग्रेज कलक्टर इलियट ने लिपिबद्ध करवाया।
इस ग्रंथ में आल्हा-ऊदल के द्वारा लड़ी गई 52 लड़ाइयों की गाथाओं का वर्णन है। राजा जगनिक वर्तमान उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में स्थित जगनेर का शासक था और आल्हा-ऊदल का मामा था। कुछ ग्रंथों में आल्ह-खण्ड के रचयिता जगनिक को राजा परमार्दी का दरबारी कवि बताया गया है।
आल्हखण्ड में ऐतिहासिकता कम और साहित्यिकता अधिक है। फिर भी लोक मानस में इस ग्रंथ के कथानक को सत्य माना जाता है। पृथ्वीराज चौहान को पराजित माना जाता है तथा आल्हा को युद्ध का विजेता एवं सप्तचिरंजीवी माना जाता है।
आल्ह-खण्ड में आल्हा-ऊदल की प्रशंसा में कहा गया है-
बड़े लड़य्या महुबे वाले जिनकी मार सही न जाए
एक के मारे दुई मरि जावैं तीसर खौफ खाय मरि जाए।
आल्हा गायकी की कई शैलियां हैं जिनमें बैसवारी शैली प्रमुख है। यह एकल गायन की शैली है। अन्य साथी वाद्यों पर संगत करते हैं। गायन अत्यधिक ओजपूर्ण होता है। गायक किसी बहादुर योद्धा की वेशभूषा में हाथ में तलवार लेकर आल्हा गाते हैं।
आल्हा और ऊदल, चंदेल राजा परमल के सेनापति दसराज के पुत्र थे। सेनापति दसराज का जन्म बनाफर वंश में हुआ था जो प्राचीन अहीर क्षत्रिय वंश की एक शाखा थी। कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि बनाफर एक वनवासी जाति थी। इस वनवासी समुदाय के लड़ाकों ने राजा पृथ्वीराज चौहान और माहिल जैसे प्रसिद्ध राजपूतों के विरुद्ध लड़ाईयाँ लड़ी थीं।
भाव पुराण नामक ग्रंथ के अनुसार आल्हा की माता, देवकी, अहीर जाति की थी। कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि उरई का राजा माहिल आल्हा-उदल का शत्रु था, जिसने कहा था कि आल्हा अलग परिवार से आया है क्योंकि उसकी माँ एक आर्य आभिरी आर्यन अहीर है।
माहिल के कहने पर राजा परमारदी देव ने आल्हा-ऊदल को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। इस कारण जिस समय राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर आक्रमण किया, उस समय आल्हा-ऊदल चंदेलों का राज्य छोड़कर कन्नौज की राजसभा में रहा करते थे किंतु जब उन्होंने सुना कि पृथ्वीराज चौहान ने उनकी मातृभूमि पर आक्रमण किया है तो वे कन्नौज से महोबा आए और उन्होंने राजा पृथ्वीराज के विरुद्ध भयानक युद्ध लड़ा।
आल्हा के शौर्य की प्रशंसा में आल्ह-खण्ड में कहा गया है-
बुंदेलखंड की सुनो कहानी बुंदेलों की बानी में
पानीदार यहां का घोड़ा, आग यहां के पानी में
पन-पन, पन-पन तीर बोलत हैं, रन में दपक-दप बोले तलवार
जा दिन जनम लिओ आल्हा ने, धरती धंसी अढ़ाई हाथ।
अगली कड़ी में देखिए- राजा पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी संयोगिता का हरण कर लिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता