-‘महाराज! दासी एक कार्य करने की अनुमति चाहती है।’ कुँवर के जाने के कुछ देर बाद गुलाब ने मरुधरानाथ से विनती की। थोड़ी देर पूर्व जो कुछ भी यहाँ हुआ था उसे देखकर गुलाब ने आने वाले दिनों की झलक पा ली थी। वह समझ चुकी थी कि यदि भीमसिंह मरुधरानाथ का उत्तराधिकारी हुआ तो गुलाब को किसी हालत में जीवित नहीं छोड़ेगा। उस दिन को आने से पहले ही रोकने के लिये वह मन ही मन बड़ा निर्णय ले चुकी थी।
-‘आपको सम्पूर्ण मारवाड़ राज्य में किसी भी कार्य को करने के लिये किसी की भी अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।’ मरुधरानाथ ने महल के भीतर बोझिल हो आये वातावरण को हल्का करने के लिये हँसकर कहा।
-‘महाराज! कुछ लोगों के प्राण संकट में हैं। मैं आपकी अनुमति से उनके प्राण बचाना चाहती हूँ।’
-‘इस अच्छे कार्य में मेरी अनुमति लेने की क्या आवश्यकता है, आप बिना हिचक इस कार्य को करें।’
-‘आपकी अनुमति के बिना यह कार्य संभव नहीं है महाराज।’
-‘किनके प्राण संकट में हैं?’
-‘कुँवर शेरसिंह के, कुँवर जोरावरसिंह के, कुँवर गुमानसिंह के, कुँवर मानसिंह के, कुँवर सूरसिंह के, अन्नदाता आपके और मेरे, इतने सारे लोगों के प्राण संकट में हैं।’
गुलाब का यह जवाब सुनकर मरुधरानाथ उसका मुँह देखता ही रह गया।
-‘क्या देख रहे हैं अन्नदाता, मेरी बात का विश्वास नहीं होता क्या?’
-‘कौन हर लेना चाहता है मेरे पूरे वंश के प्राण?’ मरुधरानाथ ने पूछा।
-‘कुँवर भीमसिंह। देखा नहीं आपने कैसी धमकी देकर गया है!’
-‘वह युवक है, शीघ्र उत्तेजित हो जाता है। उसकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिये और न उसकी बातों का यह अर्थ निकालना चाहिये।’
-‘जो मनुष्य समय रहते पाल नहीं बांधता, उसके खेत बाढ़ में बह जाते हैं महाराज!’
-‘विजयसिंह बूढ़ा भले ही हो गया हो किंतु उसका वंश किसी बाढ़ में नहीं बह सकता।’
-‘जब तक इस दासी की नसों में रक्त की एक भी बूंद शेष है, तब तक आपको कोई छू भी नहीं सकता महाराज किंतु मैं आपके लिये कम, कुंवरों के लिये अधिक चिंतित हूँ।’
-‘आप क्या करना चाहती हैं?’
-‘यदि केवल एक कुँवर के प्राण जाने से गढ़ के सारे कुँवरों के प्राण बचते हों तो……..।’
गुलाब की बात सुनकर मरुधरानाथ का पूरा शरीर सिहर गया। उसके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला।
-‘महाराज! इस दासी ने आपके लिये पूरा जीवन समर्पित किया है। श्रीनाथजी गवाह हैं, यह दासी कभी आपसे ऐसा कोई कार्य नहीं करवायेगी जिससे आपका या राठौड़ कुल का अहित हो किंतु यह राजनीति है महाराज! चाणक्य ने ……।’
इससे पहले कि गुलाब अपनी बात पूरी कर पाती, महाराज का निजी सेवक कक्ष के भीतर आ गया और गुलाब की बात अधूरी रह गई।
गुलाब जो हठ ठान लेती थी, उसे पूरा करके छोड़ती थी। इसलिये जब तीन दिन तक गुलाब बार-बार महाराजा से कुँवर भीमसिंह की हत्या करने की अनुमति मांगती रही तो महाराजा ने अत्यंत दुखी होकर उसे इस घृणित कार्य को करने की अनुमति प्रदान कर दी और स्वयं गढ़ के लिये रवाना हो गया। इधर मरुधरानाथ गढ़ को गया और उधर गुलाब ने अपने विश्वासपात्र खींवा खीची को कुँवर भीमसिंह की हत्या का दायित्व सौंपा। पासवान ने उसे आदेश दिया कि यह कार्य हर हालत में कल का सूर्य निकलने से पहले हो जाना चाहिये।