नागौर-डीडवाना मार्ग पर स्थित तरणाऊ ‘तृष्ण’ ऋषि के नाम पर बसा। इस गांव की बसावट मध्यकालीन भारतीय समाज की अनोखी झलक प्रस्तुत करती है। गांव गोलाई में बसा हुआ है। इसके दक्षिणी भाग में तेली, पूर्व में भांबी तथा हरिजन और उत्तर तथा पश्चिम में जाट रहते हैं। गांव के बीच में ब्राह्मण तथा बनियों के परिवार रहते हैं।
गांव के दक्षिण में एक गौशाला है जिसमें असहाय गायें रखी जाती हैं। गांव में आठ मंदिर है जिनमें रघुनाथ मंदिर, चारभुजा मंदिर, हनुमान मंदिर एवं रामदेव मंदिर प्रमुख हैं। गऊशाला के पास स्थित चावण्डा माता के मंदिर की भी बड़ी मान्यता है।
गांव में जब कोई नया घर बनता है तो देवी के मंदिर को एक पट्टी दी जाती है तथा जब गाय दूध देना प्रारंभ करती है तो पहले बिलोने का घी माताजी को चढ़ाया जाता है। इसी घृत से मंदिर में अखण्ड ज्योति जलती है। ग्रामवासियों की मान्यता है कि देवी बाढ़ आदि से गांव की रक्षा करती है।
विक्रम संवत 2025 एवं 2038 (ई.1968 एवं ई.1981) में जब गांव में बाढ़ का पानी चढ़ गया तो देवी के मंदिर में जाकर नगारे बजाये गये, इससे पानी भूमि में समा गया। किसी जोधपुर नरेश का झडुला भी इस मंदिर में उतरवाया गया। जगदम्बा मंदिर के निकट संत सूजाराम की समाधि बनी हुई है।
औरंगजेब के समय में इस गांव के नाग बाबा बड़े चमत्कारी जीव हुए। ये रात में सिंह बनकर घूमते थे। कहते हैं उन्होंने औरंगजेब की सेना को एक लोटा पानी में तृप्त कर दिया था। आज भी वर्षा नहीं होने पर श्रावण मास के सोमवार को दही की जावणी नागबाबा को चढ़ाई जाती है जिससे आस-पास के गांवों से बादल उड़कर गांव पर छा जाते हैं तथा अच्छी वर्षा करते हैं। गांव में चार तालाब हैं जिनमें से मालासर एवं गांधीसर तालाब पक्के हैं। किसी समय तरणाऊ में तेल निकालने की कई घाणियां थीं। अब भी बिजली से चलने वाली लगभग 15 घाणियां हैं।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



