नागौर से 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित झोरड़ा गांव बाबा हरिराम के कारण विख्यात हुआ। बाबा हरिराम का जन्म विक्रम 1959 में तथा परलोकगमन विक्रम 2000 में हुआ। मात्र 41 वर्ष के छोटे से जीवन में बाबा ने दीन-दुखियों की सेवा करके स्वयं को सामाजिक प्रतिष्ठा के उस पद पर आसीन किया जहाँ वे लोकदेवता माने जाते हैं।
दायमा ब्राह्मण परिवार में जन्मे हरिराम आजीवन ब्रह्मचारी रहे। अपना पूरा जीवन उन्होंने ईश स्मरण में निकाला। इस रेगिस्तानी क्षेत्र में सांप-बिच्छुओं की बहुतायत थी। बाबा हरिराम इन विषैले प्राणियों द्वारा डंसे गये प्राणियों को झाड़ा लगाकर ठीक कर देते थे।
बाबा हनुमानजी के उपासक थे। आज बाबा हरिराम के प्रताप से झोरड़ा गांव में सांप-बिच्छू किसी को नहीं काटते हैं। सांप-बिच्छू के डंसे हुए व्यक्ति बाबा के मंदिर में लाये जाते हैं। प्रति वर्ष भाद्रपद मास की चतुर्थी एवं पंचमी तिथि को भारी मेला लगता है जिसमें लगभग डेढ़ लाख व्यक्ति भाग लेते हैं।
इस मेले में राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली तथा पंजाब से श्रद्धालु भाग लेने आते हैं। जहाँ बाबा की झौपड़ी थी, अब पक्के-विशाल मंदिर बन गये हैं। राजस्थानी के लोकप्रिय कवि कानदान कल्पित इसी गांव के थे जिन्होंने अपने गांव की वन्दना इस प्रकार की-
मखमल बाळू रेत रमे हरिराम जठे,
मरुधर म्हारो देस झोरड़ो गांव जठे।
झोरड़ा गांव विक्रम 1695 में अमरसिंह राठौड़ ने सुन्दरदास चारण को जागीर में दिया था। कहा जाता है कि एक बार अमरसिंह के तम्बू में उसकी हत्या की नीयत से एक शत्रुसैनिक घुस गया। अमरसिंह के सेवक सुन्दरदास चारण ने उसे देख लिया तथा तलवार के एक वार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। एक दोहे में कहा गया है-
आयो चोर अमरेस री जड़ी तम्बू कनात
सिर काट्यो समसेर सूं हद सुन्दर रो हाथ।।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



