मोलासर गांव ई.986 में बणजारों ने बसाया था। ये बणजारे गजनी से आये आक्रमणकारी सुबुक्तगीन की सेना से अपनी जान बचाकर पंजाब से मारवाड़ की तरफ भाग आये थे। सुबुक्तगीन पंजाब के महाराजा जयपाल को परास्त करके जनता को लूट रहा था। बणजारों का यह काफिला भटिण्डा से भागकर इस सुनसान क्षेत्र में आया तथा कुछ दिन रहकर आगे चला गया।
यह सुनसान क्षेत्र चारों ओर जंगल से घिरा हुआ था, आक्रमणकारियों के यहाँ तक पहुंचने की संभावना कम थी। अतः कुछ बणजारे वहीं रुक गये। इनमें से मोलाराम नामक कुंभकार ने उसी स्थान पर मोलासर गांव बसाया। ई.1206 से 1406 तक गांव की जनसंख्या 125 से कम ही रही।
ई.1398 में जब तैमूरलंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो भिवानी के पास केड गांव के ब्राह्मण खीमणजी अपने परिवार की जान बचाने के लिए बलारा होते हुए मोलासर आ गये। उनके साथ बलारा गांव का एक जाट भी आया। इस गांव में रहने वाले कुम्हार मोलाराम की, ब्राह्मण खीमणजी की तथा जाट बलारा की संतानें हैं।
ई.1750 के लगभग डीडवाना से आकर गगड़ आस्पद का वैश्य परिवार भी मोलासर में आकर रहने लगा। मोलासर के सोमानी मूलतः सिंघाणा गांव के थे। ये सोमानी कचरदास की संतानें हैं जो ई.1833 में आकर इस गांव में बसीं।
ई.1561 में मोलासर पतहपुर के शाह मुजफ्फर खाँ के अधिकार में था। उसने झाड़ोद पट्टी में दौलतपुरा के ताल्लुकेदार को मोलासर दे रखा था। ई.1568 के लगभग जोधपुर के राठौड़ों ने मुसलमानों से मोलासर छीन लिया। तब से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक यह कुचामन ठिकाने के अधीन रहा। भारत के लब्धप्रतिष्ठित उद्योगपति गजाधर सोमानी इसी गांव के थे।
उनके पितामह सेठ लक्ष्मीनारायण सोमानी ने ई.1924 में मोलासर में भगवान सत्यनारायण का सुन्दर एवं भव्य मंदिर बनवाया। श्री सत्यनारायण संस्कृत विद्यालय तथा श्री सत्यनारायण भण्डार की स्थापना भी सेठ लक्ष्मीनारायण ने की। इसी सोमानी परिवार ने गांव में ब्रह्मपुरी का निर्माण करवाया जिसमें विद्वान एवं वेदपाठी ब्राह्मणों को निवास दिए गये।
ई.1940 के राष्ट्र व्यापीअकाल में सोमानी परिवार ने मोलासर में जलाशय का निर्माण करवाया। सेठ लक्ष्मीनारायण, भगवानबक्ष, हजारीमल, ओंकारमल तथा अन्य सोमानी सेठों ने इस गांव में विद्यालय, कुएं, तालाब, अतिथिशाला, गौशाला, औषधालय, छात्रावास, क्रीड़ोद्यान, सार्वजनिक उद्यान तथा विश्रामालय बनवाये।
मोलासर के सत्यनारायण मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। सोमानी परिवार की हवेली, सोमानी विद्यालय छात्रावास तथा उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन भी दर्शनीय हैं।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



