पीपलूद दुर्ग बालोतरा जिले में सिवाना से लगभग 9 किलोमीटर दूर पीपलूद गांव के समीप छप्पन की पहाड़ियों में स्थित है। गहन मरुस्थल से घिरे हुए होने के कारण यह मरु-दुर्ग श्रेणी में आता है तथा पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे गिरि-दुर्ग श्रेणी में रखा जा सकता है।
इस दुर्ग का निर्माण मारवाड़ के सेनापति वीर दुर्गादास राठौड़ ने साधारण परकोटे से सुरक्षित एक दुर्ग के रूप में करवाया था। दुर्गादास को जोधपुर के राजा अजीतसिंह की तरफ से पीपलूद की जागीर प्राप्त हुई थी। जोधपुर के अल्पवयस्क महाराजा अजीतसिंह को औंगजेब के क्रूर शिकंजे से बचाने के लिए कुछ समय इन्हीं छप्पन की पहाड़ियों का ही सहारा लिया गया था। कुछ समय के लिए जोधपुर का राजा चंद्रसेन भी अपनी राजधानी जोधपुर छिन जाने के कारण छप्पन की पहाड़ियों में रहा।
वीर दुर्गादास पीलपूद दुर्ग में वर्षों तक रहे। यहाँ आज भी पीपलूद गांव से पहाड़ की चढ़ाई और महादेव मन्दिर के बीच दुर्गादास की विशाल प्रोल विद्यमान है। किले की दीवारों के अवशेष, बारूद के भण्डार और बादशाह के पोते-पोती को सुरक्षित रखने के लिए पुगले-पुगली के नाम से बनाए गए स्थान आज भी जीर्ण-शीर्ण रूप में स्थित हैं।
मारवाड़ में मान्यता है कि जब जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने दुर्गादास राठौड़ को देश-निकाला दे दिया तब दुर्गादास जोधपुर छोड़कर मेवाड़ चले गए। वास्तव में महाराजा अजीतसिंह ने दुर्गादास को देश निकाला नहीं दिया था। अजीतसिंह से वैचारिक मतभेदों के कारण दुर्गादास स्वयं ही मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ चले गए। वहाँ भी वे अधिक समय तक नहीं रहे। अपने अंतिम दिनों में वे उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे रहते थे। वहीं पर दुर्गादास ने अपना शरीर छोड़ा। उस स्थान पर आज भी दुर्गादास की छतरी बनी हुई है।
पीपलूद दुर्ग बीते हुए समय के इतिहास के साक्षी के रूप में आज भी खड़ा है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता