किलोण दुर्ग सोलहवीं शताब्दी ईस्वी का पहाड़ी दुर्ग है। पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे पार्वत्य दुर्ग की श्रेणी में रखा जा सकता है तथा चूंकि ये पहाड़ियां दुर्गम रेगिस्तान के बीच स्थित हैं इसलिए इसे धान्वन दुर्ग की श्रेणी में भी रखा जा सकता है।
खेड़ के शासक राठौड़ सलखा के ज्येष्ठ पुत्र राव मल्लीनाथ ने मालानी क्षेत्र बसाया। उसकी चौथी पीढ़ी में जतोजी हुआ। जतोजी का पुत्र रतोजी और रतोजी का पुत्र भीमोजी हुआ। इसी भीमोजी राठौड़ ने वि.सं.1609 (ई.1552) में बाड़मेर नगर की स्थापना की तथा नगर बसाने से पूर्व इस क्षेत्र में स्थित सबसे ऊंची पहाड़ी पर किलोण नामक दुर्ग बनवाया।
किलोण दुर्ग की पहाड़ी की ऊंचाई 1383 फुट है तथा इसका नाम सुजेर भाखरी है। भीमोजी राठौड़ बहुत चतुर योद्धा था। उसने किलोण का निर्माण पहाड़ी के शीर्ष पर न करवाकर इस भाखरी पर 676 फुट की ऊंचाई पर पहाड़ियों से घिरे हुए एक सुरक्षित स्थान पर करवाया। इस दुर्ग का प्रमुख प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में खुलता था। उत्तर की बुर्ज के बीच गढ़ पोल है और पूर्व की तरफ सुरक्षा बुर्ज स्थित है।
किलोण दुर्ग की दीवारें साधारण बनाई गई क्योंकि चारों तरफ की पहाड़ियां एक प्राकृति दीवार के रूप में कार्य करती थीं तथा दुर्ग तक अचानक ही शत्रु का आ धमकना आसान नहीं था। गढ़ के नीचे पूर्व की पहाड़ी ढलान पर राजप्रासादों का निर्माण करवाया गया। मोर्चे भी निवास स्थल पर ही बनाये गये।
भीमोजी के वंशज भारोजी राठौड़ ने अपने पांच पुत्रों के लिये दुर्ग परिसर में पांच कोटड़ियां बनवाई। जो भारोणियां की कोटड़ियां कहलाती है। रावत लालसिंह के पौत्र पदमसिंह ने अपनी सुहागरात मनाने के लिये पदमसिंह महल बनवाया। प्रतापसिंह ने एक ऊंचा मोर्चा बनवाया। रावत लालसिंह की बनवाई कोटड़ी में आज भी बाड़मेर का पूर्व रावत उम्मेदसिंह निवास करता है। दुर्ग परिसर में अब केवल यही कोटड़ी ठीक अवस्था में है।
किलोण दुर्ग परिसर में जोगमाया मंदिर, जगदम्बा मंदिर तथा नागनेचिया माता के मंदिर बने हुए हैं। नागनेचिया मंदिर में एक प्राचीन शिलालेख भी लगा हुआ है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता